eMag_Jan2022_DA | Page 7

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देश क़ी सामाजिक-सांसकृलतक वसतुगत लसथलत का सह़ी और साफ आंकलन किया है । उनहोंने कहा कि भारत में किस़ी भ़ी आर्थिक-राजऩीलतक क्रांति से पहले एक सामाजिक-सांसकृलतक क्रांति क़ी दरकार है । पंडित द़ीनदयाल उपाधयाय ने भ़ी अपऩी विचारधारा में ‘ अंतयोदय ’ क़ी बात कह़ी है । अंतयोदय यानि समाज क़ी अंतिम स़ीढ़ी पर जो बैठा हुआ है , सबसे पहले उसका उदय होना चाहिए । किस़ी भ़ी रा्ट्र का विकास तभ़ी अर्थपूर्ण हो सकता है जब भौतिक प्रगति के साथ साथ आधयालतमक मू्यों का भ़ी संगम हो । जहां तक भारत क़ी विशेषता , और संसकृलत का सवाल है तो यह विशि क़ी बेहतर संसकृलत है । भारत़ीय संसकृलत को समृद् और श्े्ठ बनाने में सबसे बडा योगदान दलित समाज के लोगों का है । इस देश महान आदि कवि कहलाने का सममान केवल महर्षि वाल्मक़ी को है , शासत्ों के ज्ाता का सममान वेदवयास को है । भारत़ीय संविधान क़ी रचना का श्ेय अमबेडकर को जाता है ।
डॉ शासत्री ने इतिहास के तथयों को सामने रखते हुए कहा कि दलित समसया को समग् भाव में समझने के लिए आर्याव्रत याऩी अखंड भारत के भौगोलिक सिरूप पर दृष्टपात आवशयक हैं । भारत़ीय उपमहाद्वीप देश में नेपाल , श्रीलंका , अफगानिसतान , पाकिसतान , बांगिादेश , इंडोनेशिया , वर्मा , बाि़ी , सुमात्ा इतयालद देश को माना जाता हैं । विदेश़ी आक्रांताओं के आक्रमण के समय हिनदुसतान में धर्म एवं संसकृलत
संरक्ि का उत्रदायिति ब्ाह्मणों पर एवं देश क़ी भौगोलिक स़ीमा एवं जन-धन क़ी रक्ा का उत्रदायिति क्लत्यों पर था । क्लत्य एवं राजपूत जातियां ह़ी प्रमुखता के साथ विदेश़ी आक्रांताओं एवं उनके आक्रमण का उत्र भयानक प्रतिशोध के रूप में युद्ध से देते थेI परिणामसिरूप उन विदेश़ी तुर्क , मुलसिम और मुग़ल आक्रांता शासकों के आक्रोश , अनयाय , अतयािार एवं शत्ुता का प्रमुख शिकार यह़ी धर्म और संसकृलत रक्क ब्ाह्मण एवं रा्ट्र रक्क क्लत्यों को होना पड़ता थाI वासति में विदेश़ी आक्रांताओं क़ी प्रचंड घृणा एवं आक्रोश के कारण परासत होने पर ब्ाह्मण एवं क्लत्यों को खोज-खोज कर उत्पीड़ित किया जाता था । उनके बहू-बेटियों क़ी मर्यादा लूटने एवं लाखों क़ी संखया में हिनदू महिलाओं को दास बनाकर अरब क़ी सड़कों एवं गलियों में कौड़ियों के दाम पर ऩीिाम किया जाता था ।
उनहोंने बताया कि विदेश़ी आक्रांता शासकों के शासन क़ी झलकियां विलभन् इतिहासकारों क़ी कृतियों में देखा जा सकता हैं । के . एस . लाल ने अपऩी पुसतक ‘ ट्ििाइ्स आफ द़ी सु्तान ’ के पृ्ठ 65 पर लिखा है कि- ‘ मुलसिम सामंतों के भय से धऩी हिनदू नगरों में निर्धनों क़ी तरह रहते थे I ’ के . एस . लाल ने अपऩी एक अनय पुसतक ‘ सटड़ीज इन मैंडिवल हिस्ट्री ’ के पृ्ठ 90 एवं 91 पर लिखा है कि- ‘ गयासुद्दीन क़ी सोच थ़ी कि हिनदू ग्ाम़ीिों के पास में उतना
ह़ी धन रहे , जिससे वह द़ीन-हीं बनकर रहे I ’ ईशिऱी प्रसाद ने ‘ हिस्ट्री ऑफ़ करोना ट्रकस ’ के पृ्ठ 67 एवं 74 पर लिखा है कि- ‘ मुहममद तुगलक ने ग्ाम़ीिों पर इतने अतयािार किये कि वह गांव छोड़कर भाग जाते थे एवं तब उनकों ( हिनदुओं ) आखेट करके ( जानवरों क़ी तरह ) मार डाला जाता थाI ’ ईसिऱी प्रसाद ने ‘ मधय युग का इतिहास ’ के पृ्ठ 255 पर उ्िेख किया है कि- ‘ परनतु हिंदुओं के प्रति उस समय भ़ी अलाउद्दीन क़ी ह़ी ऩीलत का अनुसरण किया गया था । ताकि वे ( हिनदू ) धनवान न हो सके और द़ीन-ह़ीन बनकर ज़ीिन यापन करने के लिए बाधय रहे I ’ अब इन सथालपत इतिहासकारों द्ारा प्रमाणित और बेहद संवेदनश़ीि तथयों के आलोक में मधयकाल का विशिेषण होना चाहिए । मधयकाल क़ी काि़ी रालत् हिनदुओं के लिए बेहद दुखदाय़ी थ़ी तो यह सप्ट करना ह़ी होगा कि हमारे महान इतिहासकारों क़ी दृलसट में मधयकाल हिनदुसथान के लिए सिलि्थम काल कैसे हो सकता है ? ----कैसे--- ?
डॉ शासत्री के अनुसार हिनदुसथान के इतिहास का मूल श्ोत या तो समय-समय पर हिनदुसथान के बारे में जानकाऱी एवं पर्यटन क़ी दृष्ट से आये विदेश़ी यात्री के संसमरणों पर या मधयकाल के विदेश़ी तुर्क , मुलसिम या मुग़ल आक्रांता शासकों क़ी चाटुकारिता में लिखे गए प्रशलसतपत् पर आधारित है । चाटुकारिता एवं प्रशलसतगान करने वाले चाटुकारों ने तो अपने अपने नवाबों
tuojh 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 7