[ kcj
घोषणा के तुरंत बाद मायावत़ी ने सपा से गठबंधन यह कहकर तोड़ दिया था कि ऐसा करना उनक़ी भूल थ़ी । पिछले दिनों विधायक दल के नेता शाह आलम उर्फ गुडडू जमाि़ी ने बसपा से इस्तीफा देकर हर किस़ी को चौंकाया था । पाटटी छोड़ने के बाद जमाि़ी क़ी प्रतिक्रिया थ़ी कि बसपा इस बार चुनाि़ी मुकाबले में कहीं है ह़ी नहीं । मुकाबला भाजपा और समाजवाद़ी पाटटी के ब़ीि है ।
नीतिगत बदिवाि कवा खवामियवाजवा
इस दयऩीय लसथलत के प़ीछे वजह तो भाजपा के प्रति मायावत़ी का लगातार नजर आया नरम रवैया भ़ी कहीं ना कहीं बड़ी भूमिका निभा रहा
सिंह यादव और फिर रितेश पांडेय को उनक़ी जगह नेता बनाकर मायावत़ी ने मुसलमानों और पिछड़ों को और नाराज किया था । मायावत़ी के बारे में यह धारणा पिछड़ों और मुसलमानों में ह़ी नहीं बल्क दलितों में भ़ी पनपने लग़ी है कि या तो भाजपा से उनका अनुराग है या वे डर रह़ी हैं । डर अपने भाई आनंद क़ी कंपनियों के खिलाफ चल रह़ी आयकर और प्रवर्तन निदेशालय जैस़ी केंद्रीय एजंसियों क़ी जांच क़ी फिलहाल सुसत दिख रह़ी ।
ऐतिहवाचसक भूलों की कीमत चुकवाने की विवशिवा
वैसे भाजपा से मायावत़ी का सारा विरोध
बसपा ने इस चुनाव में नारा भ़ी दिया था-ब्ाह्मण शंख बजाएगा , हाथ़ी दिल्ली जाएगा । लेकिन 2014 के चुनाि़ी नत़ीजे ने उनके इस सपने को चकनाचूर कर दिया था । मायावत़ी का सियास़ी सफर 1984 में बसपा क़ी सथापना के साथ कैराना लोकसभा स़ीट के उपचुनाव से शुरू हुआ था । फिर वे बिजनौर और हरिद्ार लोकसभा स़ीट के उपचुनाव में भ़ी सामने आई । पर कामयाब़ी पहि़ी बार 1989 के लोकसभा चुनाव में उनहें बिजनौर में लमि़ी । इस ब़ीि 1993 में सपा से तो 1996 में पाटटी ने कांग्ेस से विधानसभा चुनाव का समझौता भ़ी किया । भाजपा के उभार ने न केवल उनसे अगड़े वोट बैंक को छ़ीन लिया बल्क अति पिछड़े वोट बैंक में भ़ी सेंध लगा द़ी । इस़ी दौरान लालज़ी
है । लोकसभा चुनाव के बाद से मायावत़ी ने केंरि और उत्र प्रदेश क़ी भाजपा सरकारों के खिलाफ कोई आंदोलन तक नहीं किया ना ह़ी त़ीख़ी बयानबाज़ी क़ी । इसके उलट वे समाजवाद़ी पाटटी और कांग्ेस पर हमले करत़ी रहीं । अगर उत्र प्रदेश क़ी सत्ा में वापस़ी कर पांिि़ी बार मुखयमंत्री बनना उनका मिशन होता तो विपक् के बजाय निशाने पर सत्ा पक् को रखतीं । लोकसभा में अपने दल के नेता कुंवर दानिश अि़ी को हटाकर पहले शयाम
अत़ीत में भ़ी चुनाव पूर्व तक ह़ी रहा । चुनाव के बाद शुरुआत़ी त़ीन अवसरों पर तो वे सूबे क़ी सत्ा के सिंहासन पर भाजपा क़ी मदद से ह़ी बैठ़ी थीं । अलबत्ा 2007 में बहुजन के बजाय सर्वजन के समर्थन का उनका फार्मूला सफल हुआ था । विधानसभा क़ी 403 में से 206 स़ीट ज़ीतकर उनहोंने न केवल सूबे में अपने बूते सरकार बनाई थ़ी बल्क 2009 के लोकसभा चुनाव में 21 स़ीटें ज़ीतने के बाद तो वे प्रधानमंत्री पद का सपना भ़ी देखने लग़ी थीं ।
वर्मा , नस़ीमुद्दीन सिद्दीक़ी , रामब़ीर उपाधयाय , रामअचल राजभर , बरखूराम वर्मा और बाबू सिंह कुशवाह जैसे पाटटी के तमाम कद्ािर नेता मायावत़ी का साथ छोड़ गए । पुराने नेताओं में उनके साथ सत़ीश चंरि लमश् ह़ी बचे हैं । जिनहोंने पिछले दिनों ब्ाह्मण सममेिन कर दलित वोट के साथ उनहें जोड़ने का 2007 का सफल प्रयोग फिर दोहराना चाहा था । लेकिन उनके सममेिनों के प्रति ब्ाह्मणों में कोई उतसुकता नहीं दिख़ी तो वे भ़ी खामोश बैठ गए । �
tuojh 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 39