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मायार्ती का ऊहापोह : रणनीक्त या मजबदूरी सिलसिलेवार हार से दिशा भटक चुकरी बसपा वैचारिक भटकाव है दयनीय स्थिति करी वजह
अनिल बंसल
बहुजन समाज पाटटी और उसक़ी मुखिया मायावत़ी क़ी ऊहापोह को लेकर उनके समर्थक दलितों में भ़ी इस बार बेचैऩी दिख रह़ी है । बहिनज़ी के नाम से लोकप्रिय मायावत़ी अपने त़ीन दशक के सियास़ी ज़ीिन के सबसे कठिन दौर का सामना कर रह़ी हैं । भाजपा , सपा और कांग्ेस , त़ीनों पार्टियां चुनाि़ी जंग में पहले ह़ी कूद चुक़ी हैं । पर चुनाि़ी पटल से बसपा अभ़ी तक नदारद है । मायावत़ी ने अभ़ी
तक तो अपऩी एक भ़ी रैि़ी का एलान नहीं किया है । उधर उनके नेताओं में पाटटी छोड़ने क़ी भगदड़ दिख रह़ी है ।
मुकवाबले से पहले मैदवान से नदवारद
पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा को 19 स़ीटें लमि़ी थीं । रितेश पांडे बाद में 2019 में लोकसभा चुनाव ज़ीत गए तो उनहें विधानसभा स़ीट से इस्तीफा देना पड़ा । उपचुनाव में यह
स़ीट सपा ने ज़ीत ि़ी । बि़ी 18 में से फिलहाल पाटटी क़ी सदसय संखया विधानसभा में त़ीन रह गई है । पिछले लोकसभा चुनाव में उनहोंने 1993 का इतिहास दोहराते हुए समाजवाद़ी पाटटी के साथ गठबंधन किया था । यह गठबंधन अपेलक्त नत़ीजे तो बेशक नहीं दे पाया था पर मायावत़ी को इसका फायदा ह़ी हुआ था । लोकसभा के 2014 के चुनाव में जहां उनका खाता भ़ी नहीं खुल पाया था , वहीं पिछले चुनाव में उनहें दस स़ीटें मिल गई थ़ी । लेकिन चुनाव परिणाम क़ी
38 दलित आं दोलन पत्रिका tuojh 2022