eMag_Jan2022_DA | Page 14

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हैं । उच् लशक्ि संसथानों में यह ररलकतयां सामाजिक नयाय क़ी अवधारणा के पूऱी तरह प्रतिकूल है । लिहाजा दलित समाज क़ी मोद़ी सरकार से अपेक्ा है कि इन ररलकतयों को यथाश़ीघ्र समापत किया जाए । यह़ी नहीं , निगराऩी के लिए एक आयोग भ़ी गठित होना चाहिए जो हर साल दलितों को द़ी जाने वाि़ी नौकरियों क़ी सम़ीक्ा करे और जहां स़ीटें रिकत हैं वहां बैकलॉग के माधयम से स़ीि़ी भतटी करे । जो संसथान या प्रलत्ठान आरलक्त स़ीटों को जानबूझकर रिकत रखते हैं उन पर आयोग कानूऩी कार्रवाई करे । निज़ी क्ेत्ों के साथ सभ़ी सार्वजनिक क्ेत्ों के ‘ संसाधनों ’ में दलितों क़ी भाग़ीदाऱी सुलनलशित किया जाना आवशयक है । एक सिसथ समाज के लिए ऐसा करना जरूऱी है । सभ़ी क्ेत्ों में प्रतिनिधिति सुलनलशित करके ह़ी सह़ी अथमों में दलितों को मुखयिारा से जोडा जा सकता है ।
मनरेगवा की समस्याएं सुलझवानवा जरूरी
साल में सौ दिन रोजगार क़ी गारंट़ी देने वाले कानून का सबसे अधिक लाभ दलित व जनजात़ीय लोगों को ह़ी मिलने क़ी अपेक्ा क़ी गई थ़ी । लेकिन मौजूदा सूरतेहाल ऐसा है कि इसमें दलितों क़ी भाग़ीदाऱी लगातार कम होत़ी
हुई दिखाई पड रह़ी है । झारखंड से जो सूचना प्रापत हुई है उसके मुताबिक 2015-16 में अनुसूचित जातियों और जनजातियों क़ी मनरेगा में भाग़ीदाऱी 51.20 प्रतिशत थ़ी , वह घट कर 2019-20 में महज 35.79 रह गई । इसके अलावा मनरेगा के तहत तय किए जाने वाले काम — काज में ग्ाम सभाओं क़ी सलाह को दरकिनार किया जाना भ़ी एक बड़ी समसया है । कायदे से तो ग्ाम सभा को ह़ी यह तय करने का अधिकार होना चाहिए कि सथाऩीय सतर पर मनरेगा के तहत कया काम कराया जाए लेकिन इसका फैसला उच् सतर से लिया जा रहा है जिसके चलते योजना का पूरा लाभ सथाऩीय सतर पर नहीं मिल पा रहा है । खास तौर से झारखंड क़ी बात करें तो वहां ग्ाम सभाओं ने अपने गांवों के लिए विलभन् प्रकार क़ी दस लाख से जयादा योजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर चयन किया था । लेकिन राजय सरकार कानून लागू होने के समय से ह़ी योजनाओं को ग्ाम़ीिों पर ऊपर से थोपने का काम करत़ी रह़ी है । संविधानिक संसथा ग्ाम सभा के भावनाओं का इस तरह सरकार ठेस पहुंचाएग़ी तो ऊपर से थोप़ी गई योजनाओं के साथ जनता खुद को जोड नहीं पात़ी है और ऐस़ी मनरेगा योजनाएं बिचैलियों क़ी योजना बनकर रह जात़ी हैं । साथ ह़ी मनरेगा के तहत मजदूऱी क़ी दर में समय —
समय पर संशोधन क़ी पारदशटी वयिसथा बनाए जाने क़ी जरूरत है । इसके अलावा नियम के तहत जिला सतर पर मनरेगा लोकपालों क़ी नियुलकत अनिवार्य क़ी गई है , लेकिन अकसर देखा जाता है कि कई जगह लोकपाल के पद खाि़ी पडे रहते हैं । यहां तक कि मजदूऱी भुगतान लंबित रहने क़ी शिकायतें भ़ी अकसर सामने आत़ी हैं । दलित समाज को उम्मीद है कि इस मामले में भ़ी प्रधानमंत्री मोद़ी अवशय ह़ी जल्दी धयान देंगे ।
समस्याओ ंकवा स्थायी समवाधवान अपेलक्ि
दलित वर्ग को सशकत बनाने और हर सतर पर उनहें बराबऱी का अधिकार व सममान दिलाने के प्रति प्रधानमंत्री मोद़ी क़ी प्रतिबद्धता पर कतई संदेह नहीं किया जा सकता है । लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि आज भ़ी दलित समाज को भेदभाव और गैर — बराबऱी क़ी समसयाओं से जूझना पड रहा है । नयाय पालिका से लेकर उच् लशक्ि संसथान ह़ी नहीं बल्क अनय क्ेत्ों में भ़ी अविि तो उनहें सथान देने में भेदभाव किया जाता है और जब वे येन — केन प्रकारेण अपना सथान पा भ़ी लेते हैं तो उनहें हेय दृष्ट और गैर — बराबऱी के हालातों से दो — चार होना पडता है । लनलशित तौर पर इस दिशा में सरकार को मजबूत इचछाशलकत के साथ दलितों के हित में ढाि बनकर खडा होना पडेगा । समसयाएं निज़ी क्ेत् में आरक्ि लागू नहीं होने से लेकर प्रमोशन में आरक्ि तक क़ी है और सृजित पदों का बैकलॉग भ़ी एक बड़ी समसया है । कागज पर हक मिलना एक बात है और वयािहारिक तौर पर उसका लागू होना लब्कूि दूसऱी बात है । लनलशित तौर पर इसके लिए इचछाशलकत भ़ी दिखाऩी होग़ी और लोगों को जागरूक भ़ी करना होगा । हालांकि प्रधानमंत्री मोद़ी पहले ह़ी कह चुके हैं कि उनका दूसरा कार्यकाल जनअपेक्ाओं को पूरा करने पर केलनरित रहेगा । ऐसे में यह उम्मीद करना कतई गलत नहीं होगा कि दलित वर्ग क़ी अपेक्ाएं भ़ी प्रधानमंत्री अवशय ह़ी पूरा करेंगे । �
14 दलित आं दोलन पत्रिका tuojh 2022