eMag_Jan2022_DA | Page 13

doj LVksjh

दलित समाज के लोगों के मुरिा खाते खुले , जो कुल मुरिा खातों का 57 प्रतिशत है । साथ में ह़ी नए उद्लमयों को हर संभव मदद देने के लिए अनुसूचित जाति / जनजाति हब क़ी सथापना क़ी गई । देश के सभ़ी दलित गाँवों में बिजि़ी पहुँि़ी । दलित उतप़ीडन कानून को संशोधित कर सखत बनाया और नए कानून में यह भ़ी सुनिशिलित किया गया कि आरोप-पत् दाखिल होने के 2 मह़ीने के अंदर नयाय दे दिया जाए । नए कानून के तहत दलितों को मिलने वाि़ी सहायता राशि को लसथलत के अनुसार 85,000 रुपए से बढाकर 8,25,000 रुपए तक कर दिया गया । यह सब वे चुनिंदा योजनाएँ हैं जिनहें मुखयत : दलितों के नाम पर उनहें आगे बढाने के लिहाज से शुरू किया गया । इसके अलावा योजनाएँ जिनका फायदा समसत भारत़ीयों को है उसके अंतर्गत भ़ी दलित आते हैं और वह उसका फायदा भ़ी उठाते हैं । मसलन जन धन योजना , वन धन योजना , मुफत राशन , स़ीमांत किसानों के लिए सालाना छह हजार क़ी सममान निधि , उज्जवला योजना , आयु्मान , इंरििनुष योजना , पशुधन क़ी योजनाएं प्रधानमंत्री आवास योजना वगैरह वगैरह ।
अपेक्षाओ ंपर खरवा उतरने की चुनौती
प्रधानमंत्री मोद़ी हर मंच से कहते आए हैं कि उसक़ी सरकार गऱीबों और दलितों पिछडों को समर्पित है । यह सिर्फ कहने क़ी बात नहीं है बल्क जब भ़ी उनहें मौका मिला तो उनहोंने अपऩी बातों पर खरा उतरने से गुरेज नहीं किया । इसक़ी गवाह़ी वे आंकडे भ़ी देते हैं जिसके मुताबिक अनुसूचित जातियों व जनजातियों के हित में जितना काम मोद़ी सरकार के तकऱीबन साढे सात साल के कार्यकाल में हुआ है उतना आजाद़ी के बाद से लेकर अब तक कभ़ी नहीं हुआ । लेकिन समसयाएं आज भ़ी बहुत हैं और उसे दूर करने क़ी अपेक्ाएं भ़ी प्रधानमंत्री मोद़ी से ह़ी जुड़ी हुई हैं । यह़ी वजह है कि देश के दलित वर्ग ने जो एकजुटता प्रधानमंत्री मोद़ी के नेतृति के प्रति दिखाई और उनके प्रति जितना
विशिास और समर्थन वयकत किया है उतना पहले के किस़ी भ़ी नेता को दलित समाज का स्ेह प्रापत नहीं हुआ । आज अगर देश में दलित वोटबैंक क़ी राजऩीलत करत़ी आ रह़ी लोजपा व बसपा जैस़ी ताकतें अपना अलसतति कायम रखने के लिए संघर्ष करत़ी दिखाई पड रह़ी हैं तो इसक़ी बहुत बड़ी वजह दलित समाज के मतदाताओं का प्रधानमंत्री मोद़ी के पक् में लामबंद होना ह़ी है । लेकिन जब दलित समाज इतना अधिक विशिास प्रदर्शित कर रहा है तो सिाभाविक तौर पर प्रधानमंत्री मोद़ी से उसक़ी अपेक्ाएं भ़ी जुड़ी हुई हैं और यह विशिास भ़ी जुडा हुआ है कि — ' मोद़ी है तो मुमकिन है ।'
रिक्त पदों पर नियुक्तियों की अपेक्षा
दलितों के लिए सबसे अहम है रोजगार का मामला । आरक्ि होने के बावजूद बैकलॉग का कोटा पूरा नहीं किया जा रहा है । एसस़ी-एसट़ी को सरकाऱी नौकरियों में मिलने वाला आरक्ि 22.5 प्रतिशत है । लेकिन इतने बरसों बाद भ़ी एसस़ी-एसट़ी को मिलने वाि़ी सरकाऱी नौकरियों का प्रतिशत महज 9 से 10 ह़ी है । दलितों के
लिए सरकाऱी नौकरियों में निर्धारित आरक्ि तय समय स़ीमा के अंदर पूरा कराया जाना चाहिए । आज लसथलत यह है कि विशिलिद्ािय अनुदान आयोग द्ारा सामाजिक कार्यकर्ता और दिल्ली विशिलिद्ािय के लशक्क डॉ लक्मि यादव द्ारा सूचना के अधिकार के तहत पूछे गये प्रश्न के जवाब में द़ी गई जानकाऱी के मुताबिक 40 केनरि़ीय विशिलिद्ाियों ( इनसे संबद्ध कॉलेजों के आंकडे शामिल नह़ी हैं ) में अनय पिछडा वर्ग के 96.65 %, अनुसूचित जनजाति के 93.98 % और अनुसूचित जाति के 82.82 % प्रोफ़ेसर पद रिकत हैं । इस़ी प्रकार एसोसिएट प्रोफेसर के सतर पर यह आंकडा ओब़ीस़ी 94.30 %, एसट़ी 86.1 % और एसस़ी के 76.57 % पद रिकत हैं तथा असिसटेंट प्रोफेसर के सतर पर ओब़ीस़ी 41.82 %, एसट़ी 33.47 % और एसस़ी 27.92 % पद रिकत हैं । 2021 में लोकसभा में सवाल के जवाब में शिक्ा मंत्री ने कहा था क़ी अखिल भारत़ीय प्रोद्ोलगक़ी संसथानों में अनुसूचित जनजाति 88 % और अनुसूचित जाति के 49 % पद , और इलनरिरा गाँि़ी नेशनल ओपन यूनिवर्सिट़ी , दिल्ली में अनुसूचित जनजाति 49 % और अनुसूचित जाति 45 % पद रिकत
tuojh 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 13