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जाति की ठेके दारी को जनता की ठोकर
दलों के दलदल से निकले , अब टूटेगी जाति की जंजीर
ओपीनियन पोल के ट्रेंड कर रहे इशारा
दे श की राजनीति का
लंबे सम्य से लगातार
नेतृति करने वाला उत्तर प्देश अब जातिगत राजनीति की प्रयोगशाला की परंपरागत छवि से उबरता
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हुआ दिख रहा है । ्यूपी में जमीनी सतर पर बदलाव की गाथा तो 2014 से ही चुनाव दर चुनाव लगातार लिखी जा रही है जिसके तहत सबसे पहले क्ेत्रीय दलों के प्भुति और वर्चसि को ्यहां के मतदाताओं ने पूरी तरह से जमींदोज कर मद्या । हालांकि अपना अससतति बचाने के लिए सूबे की दो बडी पामट्ट्यों सपा और बसपा ने हर तिकडम आजमा्या । ्यहां तक कि आपसी मतभेदों को भुला कर वे एक मंच पर भी आए । लेकिन ्यूपी ने एक बार इन दलों को सिरे से नकार मद्या तो फिर दोबारा सिर पर ्ढने की इजाजत नहीं दी । नतीजन बसपा ने तो सम्य के साथ अपनी अधोगति को सिीकार कर मल्या जिसके नतीजे में इस बार के चुनाव में पाटटी जमीन पर उतर कर संघर्ष करने का दिखावा
6 दलित आं दोलन पत्रिका iQjojh 2022