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कबीर और अं बेडकरवादियों की साजिश !!!
अरुण लवानिया
और 22 प्मतज्ाओं वाले अंबेडकरवामद्यों की छटपटाहट बामसेमफ्यों
मोदी के सत्तासीन होने के बाद और ही बढ़ ग्यी है । जितने भी ईशिरवादी संत हैं उनहें एक-एक कर नाससतक , हिंदू द्रोही , डा . अंबेडकर के विचारों और बुधद के समीप ्या बौधद साबित करने का कुचक्र भी जोर-शोर से चल रहा है । बामसेमफ्यों की प््ार साममरि्यों , पुसतकों और भाषणों में डा . अंबेडकर और बुधद के साथ इन संतों को भी जोड़ा जाना आम बात है । कबीर दास जी ऐसे ही एक संत हैं जिनकी छवि इन मूलनिवासीवादी चिंतकों विारा छल कपट का सहारा लेकर नाससतक और हिंदू द्रोही बनाने का प्रयास वृहद् सतर पर मक्या जा रहा है ।
लेकिन सत्य क्या है ्यह जानने का प्रयास संत कबीर दास की वाणी से ही मक्या जा सकता है । ्यह भी ध्यान रखना होगा कि धर्म में पाखंड का विरोध करने से कोई नाससतक नहीं हो जाता है । ्यमद कबीर ने हिंदू धर्म में व्यापत कुरीमत्यों की आलोचना की तो गलत नहीं मक्या । अनेक महापुरुषों ने ऐसा मक्या है फिर भी आससतक ही रहे । धर्म नहीं छोड़ा । इसमल्ये अंबेडकरवामद्यों का ्यह कहना कि हिंदू धर्म में व्यापत कुरीमत्यों पर प्हार करने वाला हर व्यसकत अंबेडकरवादी , नाससत्तक , नवबौधद और हिंदू द्रोही है हास्यासपद तर्क है । ्यह सत्य है कि कबीर ने धर्म में प््मलत कुप्थाओं पर प्हार मक्या लेकिन राम और हरि पर अटूट आसथा भी बना्ये रखी , तथा नरक और आतमा पर विशिास भी व्यकत मक्या ।। उनकी चंद सामख्यां नीचे दी जा रही हैं जो साबित करती हैं कि वो डा . अंबेडकर के नूतन धर्म , दर्शन , मान्यताओं और नाससतकता से कोसों दूर थे । साथ में कबीरपंथी विविानों की लिखित उस पुसतक का हवाला भी है जिससे ्ये सामख्यां ली ग्यी हैं । पढ़ें और अंबेडकरवामद्यों को आइना दिखा्यें । 1- कबीर कूता राम का , मुमत्या मेरा नाऊं । गले राम की जेवड़ी , जित खैवें तित जाऊं ।।
अर्थ : कबीर दास कहते हैं कि मैं तो राम का ही कुत्ता हूं और नाम मेरा मुमत्या ( मोती ) है । गले में राम नाम की जंजीर पड़ी हु्यी है । मैं उधर ही चला जाता हूं जिधर मेरा राम मुझे ले जाता है । 2- मेरे संगी दोई जण , एक वै्रों एक राम । वो है दाता मुकति का , वो सुमिरावै नाम ।। अर्थ : कबीर साहिब कहते हैं कि मेरे तो दो ही संगी साथी हैं- एक वै्रि और दूसरा राम । राम जहां मुसकतदाता हैं वहीं वै्रि नाम समरण कराता है । ्यहां भी डा . अंबेडकर और संत कबीर
विपरीत ध्ुिों पर खड़े साबित होते हैं ।
3- सबै रसा्यन मैं मक्या , हरि सा और ना कोई । तिल इक घट में संचरे , तौ सब तन कंचन होई ।
अर्थ : कबीर कहते हैं मैंने सभी रसा्यनों का सेवन कर मल्या मगर हरि रस जैसा कोई अन्य रसा्यन नहीं मिला । ्यमद ्यह एक तिल भी घट में , शरीर में पहुंच जा्ये तो संपूर्ण तन कंचन में बदल जाता है । वासनाओं का मैल जल जाता है और जीवन अत्यंत निर्मल हो जाता है ।
4-कबीर हरि रस ्यौं मप्या , बाकी रही न
थाकि । पाका कलस कुंभार का , बहूरि चढ़ी न चाकि ।। अर्थ : कबीर दास कहते हैं कि श्ी हरि का प्ेम रस ऐसा छककर मप्या है कि कोई अन्य रस पीना बाकी नहीं रहा । कुमहार बना्या हुआ जो घड़ा पक ग्या वो दोबारा चाक पर नहीं चढ़ता है । 5- क्यूं नृप-नारी नींमद्ये , क्यूं पनिहारिन कौ मान । मांग संवारै पील कौ , ्या नित उठि सुमिरै राम ।। अर्थ : कबीर साहिब कहते हैं कि रानी को ्यह नीचा
सथान क्यूं मद्या ग्या और पनिहारिन को इतना ऊंचा सथान क्यूं मद्या ग्या ? इसमल्ये कि रानी तो अपने राजा को रिझाने के मल्ये मांग संवारती है , श्ृंगार करती है लेकिन वह पनिहारिन नित्य उठकर अपने राम का सुमिरन करती है । 6-दुमख्या भूखा दुख कौं , सुमख्या सुख कौं झूरि । सदा अजंदी राम के , जिनि सुखदुख गेलहे दूरि ।। अर्थ : कबीर कहते हैं कि दुमख्या भी मर रहा है और सुमख्या भी- एक बहुत अधिक दुख के कारण और अधिक सुख के कारण । लेकिन रामजन सदा ही आनंद
... सत्य क्ा है यह जानने का प्रयास संत कबमीर दास की वाणमी से हमी किया जा सकता है । यह भमी ध्ान रखना होगा कि धर्म में पाखंड का विरोध करने से कोई नास्तिक नहीं हो जाता है ।
में रहते हैं । क्योंकि उनहोंने सुख और दुख दोनों को दूर
कर मद्या है । 7- कबीर का तू चिंतवे , का तेरा च्यंत्या होई । अणचंत्या हरि जी करै , जो तोहि च्यंत न होई ।। अर्थ : कबीर साहिब कहते हैं तू क्यों बेकार की चिंता कर रहा है , चिंता करने से होगा क्या ? जिस बात को तूने कभी सोचा ही नहीं उसे अचिंतित को भी तेरा हरि पूरा करेगा । 8- कबीर सब जग हंमड्या , मांदल कंधि चढ़ाइ । हरि बिन अपना कोऊ नहीं , देखे ठोंकि बजाइ ।। अर्थ : संत कहते हैं मैं सारे संसार में एक मंदिर से दूसरे मंदिर का चककर काटता फिरा । बहुत भटका । कंधे पर कांवड़ रख पूजा की सामरिी के साथ । सभी देवी-देवताओं को देख मल्या , ठोक-बजाकर परख मल्या । लेकिन हरि को छोड़कर ऐसा कोई नहीं मिला जिसे मैं अपना कह सकूं । 9- कबीर संसा कोउ नहीं , हरि सूं लाग्या हेत । काम क्रोध सूं झूझड़ा , चौड़े मांड्ा खेत ।। अर्थ : कबीर कहते हैं कि मेरे चित्त में कुछ भी संश्य नहीं रहा , हरि से लगन जुड़ ग्यी । इसीमल्ये चौड़े में आकर रणक्ेत् में काम और क्रोध से जूझ रहा हूं ।
iQjojh 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 5