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उसे अपना मानती हैं और उसके साथ उसके उस तरह से अंतसयंबंधों में जाती है , ्यह जाति है ।’ मैं खुद को जाति मुकत मान लूं इससे मेरा जाति मुकत होना संपन्न नहीं होगा क्योंकि कोई जाति होगी जो मुझे अपना मानती होगी और उसके साथ अंतसयंबंधों में जुडा `रहता हूं तो तो मेरा जाति मुकत होना पूरा नहीं होता है ।
कविकर्म पर भी जाति हावी
मुसकतबोध को जब मैं कुशवाहा लिख रहा था तो मुझे इस बात का अंदाजा था कि इस पर कैसी प्रतिक्रिया होगी और बिलकुल वही प्रतिक्रिया हुई । उस जाति ने मुसकतबोध को अपनी जाति का कलेम मक्या , उसके लिए सारे जतन किए , सारे प्रयास किए , उनके बेटे से बात की । केवल ्यह नहीं पता मक्या कि वह ब्ाह्मण हैं बसलक ्यह ्यह भी पता मक्या कि वे किस कुल खानदान के ब्ाह्मण हैं , किस राज्य के ब्ाह्मण हैं । सब कुछ पता मक्या और बाका्यदा उसे लेखनीबद करके बता्या । मुसकतबोध का कवि होना और उनके कविकर्म के लिए कतई जरूरी नहीं था कि आप उनकी जाति बताते , लेकिन वह जाति इतनी बेचैन हो गई कि आनन-फानन में सात दिन के अंदर पूरी जाति की वंशावली खोल के रख दी । हम ्यहां के थे , हम देशसथ थे आदि । अंततः मेरा वह पोसट अपने उद्ेश्य में काम्याब रहा जिसका उद्ेश्य ्यह बताना था कि भारत में जाति कैसे काम करती है और एक समाजशासत् के विद्याथटी के नाते मेरी जो परिकलपना थी वह तथ्यों के आधार पर प्माणित हुई । अंततः उस जाति ने सिीकार कर मल्या कि मुसकतबोध कुशवाहा नहीं थे , कुमटी नहीं थे , ्यादव नहीं थे , जाटव नहीं थे , वालमीमक नहीं थे , ब्ाह्मण थे ।
जातिमुति होना सहज नहीं
इस तरह से मैंने मुसकतबोध की जाति नहीं बताई बसलक आप देखेंगे कि उस जाति ने बता्या कि मुसकतबोध हमारे हैं । ्यह एक बहुत महतिपूर्ण उद्ेश्य मेरे उस फेसबुक पोसट ने
हासिल मक्या । ्यह बात कतई मा्यने नहीं रखती कि मुझे पता था ्या नहीं । अभी अगर मैं ्यह कह भी दूं कि मुझे पता था ्या मैं कहूं कि नहीं पता था , इससे उस पूरी प्रक्रिया पर कोई फर्क नहीं पडता । आज की तारीख में जिन लोगों को नहीं भी पता था उन सब को बता मद्या ग्या है कि मुसकतबोध उनके थे । मोटी बात ्ये है कि मेरा उद्ेश्य ्यह सथामपत करना था कि जाति मुकत होना इतनी सरल और सहज प्रक्रिया नहीं है । कोई व्यसकत खुद को जाति मुकत बता भी ले तो कोई जाति फिर उन पर कलेम करके उनकी जाति को लेकर सारा कुछ खोदकर बाहर निकाल देगी । उद्ेश्य ्यह नहीं था कि उनकी जाति का पता चले , बडा उद्ेश्य ्यह था कि भारत में जाति की संरचना कैसे काम करती है । जिस व्यसकत की
जाति नहीं बताई गई ्या गलत बताई गई उसकी सही जाति बताने के लिए इतने लोग बेचैन क्यों हुए । जो लोग कह रहे हैं कि मुसकतबोध को उनके रचना कर्म से आंकिए न कि उनकी जाति से , वे ्यह बताने के लिए बेसब् क्यों हैं कि मुसकतबोध ब्ाह्मण थे । अगर रचना कर्म से ही आंकना था तो फिर मेरे कुशवाहा बोलने से क्या फर्क पडता है , उनके रचना कर्म से तौमल्ये । ्यादव होंगे , सैनी होंगे , मललाह होंगे , कुछ भी हो सकते हैं , जुलाहा होंगे । वह ्ये बताने के लिए क्यों बेचैन हैं कि नहीं वह तो देशसथ ब्ाह्मण थे ?
मुततिबोध की जाति विवाद का दायरा मैं समाजशासत् और मास कम्युनिकेशन का
44 दलित आं दोलन पत्रिका iQjojh 2022