eMag_Feb2022_DA | Page 45

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विद्याथटी हूं । मेरा जो प्श्न है उसका दा्यरा मुसकतबोध का रचनाकर्म नहीं है । वह साहित्य के छात् का दा्यरा है । मेरा क्ेत् भारती्य समाज और उसके का्य्ण करने की पदमत और उसका अध्य्यन है । मैंने बहुत सीमित उद्ेश्य के साथ इस बात को लिखा और मेरी परिकलपना को लोगों ने सही साबित कर मद्या कि एक जाति ने मुसकतबोध पर अपना दावा कर मद्या । अगर वो जातिमुकत थे तो इसकी कोई जरूरत नहीं थी । वह देशसथ ब्ाह्मण थे ्यह बताने की जरूरत क्यों पडी ? किसी को कुशवाहा बोल मद्या क्या फर्क पडता है , किसी ने लोहार बोल मद्या क्या फर्क पडता है , कुमहार बोल मद्या , बोलने दीजिए , क्या फर्क पडता है । लेकिन फर्क पडता है । फर्क नहीं पडता तो कुछ लोग दौडे-दौडे उनके बेटे के पास ्यह पूछने क्यों
जाते । मैंने तो नहीं बता्या था कि मुसकतबोध ब्ाह्मण हैं । ब्ाह्मण हैं ्यह किसने बता्या ? जिन लोगों को मुसकतबोध की जाति नहीं पता थी उनको भी उनकी जाति के बारे में किसने बता्या ? मैंने तो नहीं बता्या । मैंने तो गलत बता्या था । सही किसने बता्या ? ्यह बताना ्यमद बुरा काम है तो ्यह बुरा काम किसने मक्या ? मैंने तो नहीं मक्या । जिन लोगों ने ्यह काम मक्या उनसे पूछा जाना चाहिए कि किसी ने गलत ्या सही बता्या भी तो आपको इतनी बेसब्ी ्या चिंता क्यों थी मुसकतबोध की जनम कुंडली खोलने की ?
सामाजिक तथ्य की हुई जांच और पुदटि मैं जो कह रहा हूं , ्यही मेरा उद्ेश्य था और
तब तक इसे ही मेरा उद्ेश्य माना जा्य जब तक कि कोई इसे प्माणित न कर दे कि मेरा उद्ेश्य कुछ और था । एक सामाजिक तथ्य की जांच करनी थी , पुष्ट करनी थी । जब तक मेरे इस वकतव्य का खंडन करने के लिए कोई और तथ्य न हो तब तक ्यही मानना होगा कि मैं सही बोल रहा हूं । कर्म से आकलन को लेकर अर्जुन सिंह ्या वीपी सिंह का जिक्र मक्या जा रहा है । जो उनका राजनीतिक जीवन है उसके आधार पर ही उनको तौला जाना चाहिए । जिस तरह से मुसकतबोध को उनके रचनाकर्म के आधार पर । वीपी सिंह ने जब मंडल कमीशन लागू मक्या तब बहुत सारे लोगों ने इस तरह के पोसटस्ण लगाए कि वो किसी दलित मां की संतान हैं । इस तरह के पोसटस्ण उनहें अपमानित करने के लिए लगाए गए थे । तमाम मीमड्या हाउस में भी उनहें गामल्यां दी गई । गिने-चुने पत्कारों ने मंडल कमीशन का समर्थन मक्या था । वीपी सिंह को भी तमाम दलित जामत्यों के नाम जोडकर चिन्हंत मक्या ग्या ्यानी दलित जामत्यों के नाम भी गाली हैं । जाति जानने की उत्ं ठा क्ों
जिन लोगों ने एकशन मल्या इससे क्या फर्क पडता है कि उनकी जाति क्या है । वीपी सिंह ने जो मक्या उनका कर्म है । अगर आज की तारीख में कोई कहे कि वो ओबीसी थे इसलिए उनहोंने ऐसा मक्या और इस पर बाद में कोई कूद पडे कि नहीं वह तो ठाकुर थे । तो समस्या उनकी है न जो उनकी जाति पर ततकाल सफाई देने कूद पडे । उनकी समस्या थोडी है जो ्यह बोल रहे हैं कि नहीं उनका कर्म तो ओबीसी ्या दलितों की तरह था । प्श्न ्यही है कि मुसकतबोध की सही जाति बताने की इतनी उतकंठा क्यों है , इतनी लालसा क्यों है ? क्या इसलिए कि मुसकतबोध विविान कवि थे तो उनको ब्ाह्मण साबित करना ही पडेगा । ्यह क्यों जरूरी है ? क्या इनहें ्यह बताना जरूरी लगता है कि कोई कुशवाहा अचछा रचनाकर्म नहीं कर सकता ? �
iQjojh 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 45