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डेसमंड टूटू का जाना
एक योद्ा संत का अं त नस्लभेद के खिलाफ आजीवन संघर्षरत रहे टूटू भारत के साथ था टूटू का वैचारिक गर्भनाल जुड़ाि
कुमार प्रशांत
आज के इस बौने दौर में डेसमंड टूटू जैसे किसी आदमकद का जाना बहुत कुछ वैसे ही सालाता है जैसे तेज आंधी में उस आखिरी वृक् का उखड जाना जिससे अपनी झोंपडी पर सा्या हुआ करता था । जब तेज धूप में अट्हास करती प्ेत छा्याओं की चीख-पुकार की सि्णत् गूंजती हो तब वे सब लोग खास अपने लगने लगते हैं जो संसार के किसी भी कोने में हों लेकिन मनुष्यता का मंदिर गढने में लगे थे , लगे रहे और मंदिर गढते-गढते ही विदा हो गए । ्यह वह मंदिर है जो मन-मंदिर में अवससथत होता है ; और एक बार बैठ ग्या तो फिर आपको चैन नहीं लेने देता है । गांधी ने अपने हिंद-सिराज्य में लिखा ही है न , “ एक बार इस सत्य की प्तीति हो जाए तो इसे दूसरों तक पहुंचाए बिना हम रह ही कैसे सकते हैं !”
नेल्सन मंडेला के सिपाही
डेसमंड टूटू एंगलिकन ईसाई पादरी थे लेकिन ईसाइ्यों की तमाम दुमन्या में उन जैसा पादरी गिनती का भी नहीं है ; डेसमंड टूटू अशिेत थे लेकिन उन जैसा शुभ्र व्यसकतति खोजे भी न मिलेगा ; डेसमंड टूटू शांतिवादी थे लेकिन उन जैसा ्योदा उंगमल्यों पर गिना जा सकता है । थे तो वे दमक्र अफ्ीका जैसे सुदूर देश के लेकिन
हमें वे बेहद अपने लगते थे क्योंकि गांधी के भारत से और भारत के गांधी से उनका गर्भनाल वैसे ही जुडा था जैसे उनके समकालीन साथी व सिपाही नेलसन मंडेला का । इस गांधी का ्यह कमाल ही है कि उसके अपने रकत-परिवार का
हमें पता हो कि न हो , उसका तति-परिवार सारे संसार में इस कदर फैला है कि वह हमेशा जीवंत चर्चा के बीच जिंदा रहता है । गांधी के हत्यारों की ्यही तो परेशानी है कि लंबे षड्ंत् और कई असफल कोशिशों के बाद के , 30 जनवरी 1948
iQjojh 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 41