eMag_Feb2022_DA | Page 34

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आंबेडकर का , अपनी पहचान का और उन अधिकारों का जश्न मनाते हैं , जो संविधान ने उनहें दिए हैं । उनके सभी वीमड्योज़ उतपीडन के बारे में नहीं हैं । उनके इंसटारिाम अकाउं्स में उनहें मोटरसाइकिल चलाते , मज़े करते और अपने ना्यकों का जश्न मनाते दिखा्या जाता है । रामदेव मेघवाल जिनहोंने जेएनवी जोधपुर से एलएलबी पास मक्या है , ने कहा , ‘ मैं इतने सारे रिुपस के साथ जुडा हूं , जिनमें दूसरी जामत्यों के लोग भी शामिल हैं । उनके चुटकुलों तथा देध और चमार जैसे जातिसूचक अपमान के बीच , मैं जान बूझकर आंबेडकर के जनम दिवस की बधाइ्यां भेजता हूं ।’
लॉकडाउन में जातिगत तनाव गहराया
राष्ट्रीय अपराध रिकॉरस्ण ब्यूरो के अनुसार , 2020 में राजसथान में अनुसूचित जामत्यों के खिलाफ उतपीडन के 7,017 मामले दर्ज किए गए । साल 2019 में , राज्य में ऐसे 6,794 मामले सामने आए जबकि 2018 में ्ये संख्या 4,607 थी । 2018 से 2020 के बीच इनमें लगभग 52 प्मतशत की वृमद देखी गई । भंवर मेघवंशी जो एक सामाजिक का्य्णकर्ता और सोशल मीमड्या की ताकतवर आवाज़ हैं , कहते हैं कि आंकडों से संकेत मिलता है कि जहां एक ओर वैसशिक महामारी थी , वहीं उनका राज्य एक और महामारी का सामना कर रहा
था और वो थी- जातिगत प्ताडना । 2011 की जनगणना के अनुसार , राजसथान में अनुसूचित जामत्यां- जैसे मेघवाल , वालमीमक , जाटव , बैरवा , खटीक , कोली , और सरगारा आदि , कुल आबादी का करीब 17.83 प्मतशत हैं , जबकि राजपूत और ब्ाह्मण क्रमश : 9 और 7 प्मतशत हैं । जातिगत टकराव की स्थितियां भी अलग-अलग होती है । पसश्मी राजसथान में मुख्य टकराव मेघवालों और राजपूतों तथा प्मुख ओबीसीज़ के बीच है । पाली , बाडमेर , जालौर , सिरोही और नागौर जाति उतपीडन के वा्यरल वीमड्योज़ का मुख्य केंद्र बने हुए हैं । प्िासी मज़दूरों के अपने गांवों को लौटने के साथ लॉकडाउन के दौरान जामत्यों के बीच तनाव और बढ ग्या । लेकिन बढते तनाव के साथ ही समुदा्य बेहतर ढंग से संगठित हुआ है और जिला प्शासन तक उसकी पहुंच भी बेहतर हुई है । जैसा कि जैसलमेर में हरीश मेघवाल कहते हैं , ‘ हम वीमड्योज़ को एसपी और डीएम को भेजते हैं । कम से कम उनहें घटना का पता चल जाता है । मेरे पिता ्या दादा में तो अधिकारर्यों तक जाने का आतममिशिास भी नहीं होता था । एसपी तथा डीएम तक पहुंच से हमें बहुत हौसला मिलता है ।’
बेहतर पुलिसिंग की जरूरत लेकिन मामलों के बेहतर ढंग से दर्ज होने
का मतलब बेहतर पुलिसिंग नहीं होता । राज्य पुलिस के डेटा से पता चलता है कि करीब 50 प्मतशत मामलों में प्ामधकारी चार्जशीट ही दाखिल नहीं कर पाए । 2021 में , राज्य में 3,087 मामलों में आरोप पत् दाखिल किए गए , जबकि एमसी-एसटी ( अत्याचार निवारण ) अमधमन्यम , के तहत 7,524 मामले दर्ज किए गए थे । 2020 में , कुल 7,017 मामलों में से पुलिस ने 2,929 मामलों में आरोप पत् दाखिल किए । 2019 में कुल 6,794 मामलों में राज्य पुलिस ने केवल 2,919 मामलों में चार्जशीट दाखिल की थी । प्देश डीजीपी मोहन लाल लाठर इसे समझाते हुए कहते हैं कि पहले दलित लोग अपनी शिका्यतें दर्ज भी नहीं कराते थे । ‘ एफआईआर के बारे में राज्य की नई नीति के साथ ही अब हम उनहें आगे आता हुआ देख रहे हैं ।’ लेकिन पुलिस अधिकारर्यों का कहना है कि वीमड्योज़ हमेशा ही प्या्णपत साक््य नहीं होते । एडीजी कानून व्यवसथा रवि प्काश कहते हैं , कि घटना सथल , अमभ्युकत और पीमडतों की पहचान करना एक विसतृत प्रक्रिया होती है । वो कहते हैं , ‘ 2019 के बाद से हमने अपने सिपामह्यों को एक अनिवा्य्ण कोर्स और परीक्ा की ट्रेनिंग भी देनी शुरू कर दी है , ताकि पुलिस विभाग में हमारे पास जांच अधिकारर्यों की संख्या बढ जाए ।’ सबूत पेश करने के नए तरीकों के लिए मामले सुलझाने की नई तकनीक की भी जरूरत है । �
34 दलित आं दोलन पत्रिका iQjojh 2022