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जा सकती थी । आईआईटी रुडकी से रिेजुएट सुरेश जोगेश , जो अब एक सामाजिक का्य्णकर्ता हैं , कहते हैं कि ्युवा दलित अब मुखर हो गए हैं । वो कहते हैं , ‘ वो फेसबुक पर हैं और अगर कोई अधिकारी बदसलूकी करता है , तो वो बस अपने फेसबुक अकाउंट खोलते हैं और पूरे एपिसोड को सट्रीम कर देते हैं ।’
दबे रह जाते हैं कई मामले
सोशल मीमड्या के इस दौर में भी सारी हिंसा वा्यरल नहीं होती । अंतर बहुत सप्ट है । गिराब की घटना से एक दिन पहले , बाडमेर के छोटन बलॉक में , एक और दलित पिता-पुत् पर दबंग जामत्यों ने हमला मक्या । गोहद-का-ताला गांव में 75 प्मतशत निवासी दलित हैं । मेघवाल- राजपूत संघर्ष शराब के एक पुराने मुद्े पर भडक
ग्या था । रा्य्ंद मेघवाल ने कहा , ‘ वो मेरे बेटे रमेश को किसी अज्ात जगह ले गए और वहां उसे अपना पेशाब पीने पर मजबूर मक्या ।’ छह महीने बीत जाने के बाद भी सामाजिक संगठन से जुडा होने के बावजूद वो लाचार महसूस करते हैं । वो कहते हैं , ‘ जो घटित हो रहा था उसे किसी ने रिकॉर्ड नहीं मक्या । ्यहां तक कि दलित भी मूक दर्शक बने देखते रहे । उनके पास मोबाइलस थे लेकिन किसी में उसे रिकॉर्ड करने की हिममत नहीं थी । सभी अमभ्युकत अब ज़मानत पर बाहर हैं । ्ये केस अब बरसों तक चलता रहेगा ।’
सामाजिक असंतुलन में सुधार र्ुरू टेक्ोलॉजी अब राजसथान में जामत्यों के
प्मतमनमधति के गहरे असंतुलन को ठीक कर रही है । जोधपुर , जैसलमेर , बाडमेर , और पाली मज़लों में सार्वजनिक क्ेत् में दलितों की गैर- मौजूदगी काफी सप्ट है । दुकानों , पोसटरों और बिल बोरस्ण पर करटी सेना और राजपूताना जैसे नाम खूब मिल जाएंगे । दबंग जामत्यों को आमतौर पर बन्ना ्या हुकुम कहकर संबोधित मक्या जाता है , जबकि दलितों को अपमानजनक उपनाम दिए जाते हैं- अशोक को अशोमक्या कहा जाता है , जबकि मांगेलाल मांग्या बन जाता है । कपडों से लेकर सथानी्य लोक कथाओं और घरों के निर्माण तक हर चीज़ से दबंग जामत्यों और दलितों के बीच का अंतर साफ उभर कर आता है । इसलिए दलित अपनी मफमज़कल गैर- मौजूदगी को डिजिटल मौजूदगी में तबदील कर रहे हैं । अपने वहा्सएप समूहों में वो बीआर
iQjojh 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 33