eMag_Feb2022_DA | Page 23

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सरोकारों को ढंग से बता सकते हैं । फिर भी फोटो खिंचवाने की बारी आती है तो हमारे नेता और उनकी मीमड्या टीमें सबसे कमजोर और वंचित दलित परिवारों में पहुंचते हैं और उनके परिवार पर एहसान का वह बोझ लाद देते हैं , जिसे उनहोंने कभी मांगा ही नहीं होता है । लिहाजा विचारणी्य होना चाहिए कि कैसे इस झूठी उदारता , कमजोरी और अपमान की छवि को दलित वोटर सिीकार कर पाते हैं ?
जमीनी हकीकत की तस्ीर
‘ दलितों ’ की छवि का ऑनलाइन सर्च दिल
दहलाने वाली तसिीरें सामने ला देती है । असहा्यता , अपमान और अछूत होने की छवि्यां ; क्त-विक्त , उतपीडन की शिकार और अपमानित
शवों की छवि्यां ; मानव जीवन से गरिमा छीन लेने और जाति व्यवसथा को जबरन सिवोच्च ठहराने की छवि्यां ही देखने को मिलेंगी । दलित जुडाि के नाम पर हमारे चालबाज नेताओं की तसिीर खिंचाना भी इसी दा्यरे में आता है । आज के दौर और दिन भी कथित ऊंची जामत्यों में ढेरों लोग दलितों को समान मनुष्य नहीं मानते । उनके संकुचित नजरिए में दलित उनके सामने टेबल पर नहीं बैठ सकते , सममामनत तरीके से खाना नहीं खा सकते ्या रोजाना की बातचीत में उनसे बराबरी की बात नहीं कर सकते । ऊंची जामत्यों का नजरर्या उममीद करता है कि दलित जमीन पर बैठें , वे आएं तो खडे हो जाएं , जब पूछा जाए तभी बोलें , जो कहा जाए वही करें , और जो मद्या जाए वह चुपचाप ले लें । इसी वजह से जब भी दलित आकांमक्त समाज व्यवसथा को चुनौती देने की जुर्रत करते हैं , ऊंची जामत्यां अपने मन्यम-का्यदों को लागू करने के लिए हिंसा पर उतर आती हैं । इन सामाजिक सच्चाइ्यों के मद्ेनजर , ऊंची जाति के उदार नेताओं की किसी कमजोर दलित परिवार के घर खाना खाने की तसिीरें इरादतन लगती हैं ।
दलितों के मामले में दिखावे का बोलबाला
किसी ऊंची जाति के आदमी की दलित आदमी से मेल-जोल की फोटो जाति विशेषधिकार को खतरे में डालती , वह जाति व्यवसथा को नीचा नहीं दिखाती , इससे जाति नहीं टूटती । वह तसिीर सत्ता और ताकत का इजहार करती हैं , जो ऊंची जामत्यों की विशाल बहुसंख्या को सिीका्य्ण हैं । ्ये लोग अपनी ऊंची जाति की पूंजी पर ही जिंदगी जीते हैं । उरि जातिवामद्यों के लिए ्ये तसिीरें जाति की सिवोच्चता का्यम रहने का संकेत हैं और उदार जातिवामद्यों को ्ये रक्क होने का एहसास दिलाती हैं , जिससे उनकी नैतिक सिवोच्चता का्यम रहती है । दलितों के लिए , इसका इरादा ्यह ्याद दिलाने का होता है कि जाति में बंटे समाज में उनकी जगह क्या है , ्यानी वे
सामाजिक पिरामिड के सबसे नीचे हैं , ऊंची जामत्यों की सेवा के लिए हैं और उनका वजूद ऊंची जामत्यों के एहसान पर आधारित है ।
असली जुड़ाव क्ा होगा
बाबा साहेब आमबेडकर की सबसे प्मसद छवि नीले रंग के पहनावे में एक हाथ में भारती्य संविधान और दूसरे हाथ को आगे उठाए हुए है । उनकी ्यही छवि अनगिनत मूमत्ण्यों में दोहराई गई है , जो देशभर में , संसद से सडकों तक की शोभा बढाती है । आज , दलित फिलमकार , कलाकार , लेखक और एसकटमिसट हैं , जो ऐसी छवि बनाते हैं कि दलित अब असहा्य नहीं , बसलक ऊपर उठता समुदा्य है । देश के कई हिससों में खास तरह से कपडे पहनने से भी दलितों की हत्या हो सकती है , ऐसे में दलित नौजवान अपने हक-हुकूक को हासिल करने का जजबा दिखा रहे हैं । तो , फिर हमारे नेता क्यों दलित जुडाि के नाम पर वही अभिन्य करते हैं ? हर चुनाव के दौर में एक जैसी ही तसिीरों की कलपना , प््ार और बार- बार दोहरा्या क्यों जाता है ? कहने का मतलब ्यह नहीं है कि गरीब और वंचितों को हाई प्ोफाइल तसिीरों में आने का हक नहीं है , लेकिन उनके साथ उस गरिमा से तो जुमडए , जिसके वे हकदार हैं ।
बनावटी नहीं वास्तविक हो जुड़ाव
दलित जुडाि सिर्फ एकतरफा नहीं होना चाहिए । राज्य विशिमिद्याल्यों में दलित छात्ों से बात कीजिए कि कैसे सरकार उनके अकादमिक करिअर में मदद कर सकती है ; दलित लड़कियों और महिलाओं से बात कीजिए कि कैसे जीवन में हर मोड पर उनके सामने खतरे और चुनौमत्यां होती हैं ; दलित किसानों से वादा किए गए जमीन के पट्ों के बारे में बात कीजिए ; सरकारी और निजी क्ेत् में दलित पेशेवरों से उनके मौकों के बारे में बात कीजिए । दलित समुदा्य को बराबरी के आधार पर जोमडए सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए नहीं । �
iQjojh 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 23