eMag_Feb2022_DA | Page 22

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सामाजिक समरसता का साइड इफे क्ट दलितों को गरीब दिखाना जरूरी क्ों ? दिखावे के बजाय वास्तविक जुड़ाि की जरूरत

बेनसन नीतिपुडी

स 26 जनवरी 2022 को भारत ने अपना 73वां गणतंत् दिवस मना्या है । भारत के संविधान को लागू हुए और सभी नागरिकों के लिए न्या्य , आजादी , समानता और भाईचारे का महौल दिलाने के वादे को 73 साल हो गए । गणतंत् दिवस की धूमधाम की गदवो-गुबार के बैठने के दो हफते बाद से पांच राज्यों के वोटर त्य कर रहे हैं कि संविधान के वादे को पूरा करने में उनके निर्वाचित प्रतिनिधियों ने कैसा कामकाज मक्या । लगभग सभी पामट्ट्यों के नेता अपने चुनावी अमभ्यान के तहत दलितों से मेल-जोल के का्य्णक्रम पहले ही शुरू कर चुके हैं । इसका एक आम नजारा किसी दलित के घर फर्श पर बैठकर भोजन करते फोटो खिंचवाने का है । हम उस दलित परिवार के ब्यौरे-उनका नाम , पेशा , आकांक्ाएं ्या सरकार से उनकी उममीदों वगैरह के बारे में कभी नहीं जान पाते । न ही हम ्यह जान पाते हैं कि किसने खाना बना्या , खाना खाते वकत क्या बातचीत हुई ( अगर हुई हो तो ) ्या इससे क्या उनकी जिंदगी में कुछ बदला । हम बस ्यही जान पाते हैं कि नेता जी दलित भाई / बहन / बेटी के घर पहुंचे ।

ओहदेदार दलितों से दूरी क्ों ? ्यह संभावना काफी है कि नेताओं के करीबी
दा्यरे में दलित समुदा्य के कई प्ोफेशनल हों ।
देशभर में ज्यादातर राज्य सरकारों में दलित अफसर , इंजीमन्यर , डॉकटर , मशक्क , पुलिस वाले , सिासर्यकमटी और राज्य के दूसरे विभागों
के कर्मचारी होते हैं । अगर रिामीण दलित वोट हासिल करने का लक््य है तो दलित सरपंच और जमीनी सतर के नेता होते हैं , जो सुमदा्य के
22 दलित आं दोलन पत्रिका iQjojh 2022