mŸkj izns ' k fo / kkulHkk pquko
परिवार में टिकट की रेवड़ी न मिलना था , जिसके कारण नेता जी नाराज होकर विरोधी खेमे में बैठ गए हैं । जनता को ्यह भी समझ आ ग्या कि पांच वर्ष तक भाजपा सरकार का हिससा रहने के बाद चुनाव से ठीक पहले सरकार को दलित , पिछड़ा और गरीब विरोधी बताने वाले ्यह सभी पूर्व नेता अपने हितों को पूरा न होने
की ससथमत में पाटटी को छोड़कर चले गए हैं और अर्थहीन आरोपों का सहारा लेकर अपना चेहरा बचाए रखने से जुडी चुनौमत्यों से जूझ रहे हैं ।
ऐसे तमाम दलित नेता जनता के बीच अपने कथित तनाव के तहत ्यह प््ारित करने का प्रयास 2014 के बाद से लगातार करते आ रहे हैं कि भाजपा नेता और प्धानमंत्ी नरेंद्र मोदी
के राज में दलित , पिछड़े और गरीब सुरमक्त नहीं हैं और अगर इस वर्ग का कल्याण करना है तो मोदी सरकार को सत्ता से दूर करना होगा । प््ार तंत् में मोहरा बनकर राजनीतिक रूप से अधिकतर वही चेहरे सामने आते हैं , जो िषषों से अपनी जाति , उपजाति ्या वर्ग के हितों के नाम पर सिर्फ अपना और परिवार का समपूर्ण हित साधने में जुटे हैं । वैसे ्यह सिलसिला न्या नहीं है । सितंत् भारत में शुरू हुई लोकतांमत्क प्रक्रिया में दशकों तक दलित और पिछड़ो को कांरिेस के पारमपरिक वोट बैंक के रूप में देखा जाता रहा । दलित-पिछड़ो के साथ ही मुससलमों को डरा-समझा कर वोट हासिल करने और फिर सत्ता सुख उठाने वाली कांरिेस ने , दोनों िगषों का दशकों तक शोषण मक्या । सम्य परिवर्तन के साथ दलित-पिछड़ा वोट बैंक अपने वासतमिक हितों के लिए कांरिेस से टूट कर , उन दूसरे दलों के पास पहुंच ग्या , जो कि राजनीति में जाति , उपजाति ्या वर्ग के हितों के नाम पर सम्य के साथ सामने आ्ये । ऐसे तमाम दलों ने भी दलितों , पिछड़ो और गरीबों का सिर्फ वोट बैंक के रूप में इसतेमाल मक्या और सिमहतों के साथ ही विकास की राजनीति को अवैध कमाई और धन हासिल करने का माध्यम बना मल्या । सच ्यह भी है कि सिमहतों के लिए बाबा साहब डॉ आंबेडकर के नाम का इसतेमाल अपनी सुविधानुसार मक्या जा रहा है ।
1990 से पहले प्देश में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में जाति , उपजाति ्या वर्ग की भूमिका का उतना प्भाव नहीं था । मंडल कमीशन की रिपोर्ट के बाद राजनीति में पिछडों और दलित जाति का प्िेश हुआ और चुनावी जीत का फार्मूला हासिल करने के लिए मुससलम समुदा्य को साथ में जोड़ा ग्या । प्देश में लगभग ढाई दशक तक राजनीति और सरकार की रणनीति जाति , उपजाति और वर्ग के दा्यरे में ही सिमटी रही । 2014 का लोकसभा चुनाव देश में ही नहीं , बसलक जातिगत राजनीति में बदलाव के नए सनदेश को लेकर आ्या । केंद्र में सत्तारूढ़ होने के बाद प्धानमंत्ी नरेंद्र मोदी ने जाति , उपजाति और वर्ग की उन सीमाओं को
iQjojh 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 13