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अनुसूचित जाति और जनजाति को प्मतमनमधति मिलना त्य है लेकिन जाति की राजनीति करने वालों की ्यहां दाल नहीं गलने वाली । इसकी सबसे बडी वजह है कि दलित व आदिवासी समाज के उममीदवारों में से ही किसी एक का ््यन करने के अलावा सभी जामत्यों के मतदाताओं के पास दूसरा कोई विकलप नहीं है जिसके कारण इन सीटों पर जात — पात से ऊपर उठकर ही मतदाताओं को वोट करना होगा । ्यानी प्देश के मतदाताओं विारा जाति विशेष की ठेकेदारी को ठोकर मारे जाने और जाति की जकडन से बाहर निकलने की शुरूआत रिजर्व कोटे की आरमक्त सीटों से ही होगी ।
सामाजिक समरसता में वृद्धि का संके त
2014 से देश में जो मोदी लहर चली , उसका असर उत्तर प्देश में भी देखने को मिला है । ्यूपी में बीजेपी के पक् में पहले से ज्यादा
दलित समाज के वोट जाने लगे हैं । जाटव समाज में भी बिखराव देखने को मिला है , जो बहुजन समाज पाटटी के लिए खतरे की घंटी है । 2022 के चुनाव में बसपा के चुनावी अमभ्यान में पहले जैसी गमटी नहीं दिखाई पड रही है । वजह ्यही है कि उममीदवारों के बीच अब बसपा के लिए पहले जैसा आकर्षण नहीं रहा है । एक वजह ्यह भी है कि दलित वोटरों कि बीएसपी के लिए पहले जैसी गोलबंदी नहीं दिख रही है । हालांकि , बसपा की तरफ से ्यह सफाई कई मौकों पर आ चुकी है कि उनका वोटर मुखर नहीं है । आर्थिक रूप से कमजोर है । इसलिए , बसपा का चुनावी अमभ्यान कम अन्य दलों को कमजोर दिख रहा है । लेकिन जिस तरह से चुनाव दर चुनाव बसपा का जनाधार कमजोर हुआ है और इस बार के सभी ओपीमन्यन पोल बसपा के सीटों की तादाद इकाई के अंक में सिमट जाने की भविष्यवाणी कर रहे हैं उससे साफ है कि दलित समाज
अब किसी का बंधुआ वोट बैंक बन कर रहने का इच्छुक नहीं है । ्यही हालत जाट समाज की भी है जो किसी जमाने में रालोद का वोट बैंक समझा जाता था लेकिन जिस तरह से भाजपा ने बीते तीन चुनावों में जाट लैंड कहे जाने वाले पसश्मी ्यूपी के इलाकों में कलीन सिीप करते हुए जीत का परचम लहरा्या है और जाट लैंड में रालोद का अससतति दांव पर लग ग्या है उससे सप्ट है कि जाटों ने भी जातिगत राजनीति से तौबा कर ली है ।
सांप्रदायिक ध्ुरीकरण नहीं चाहती भाजपा उत्तर प्देश में भाजपा ने जो उममीदवारों
की सूची जारी की है उससे साफ है कि पाटटी
10 दलित आं दोलन पत्रिका iQjojh 2022