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दलित जागरूकता को भुना रहा सिने जगत
सर््खहारा र्ग्ख को कथानक के के न्द्र में रखकर रची जा रहे फिल्ें क्ेत्ीय सिनेमा से शुरू होकर मुख्यधारा करी ओर बढ़ रहा दलित तर्मर्श
सपना कुमारी
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से शिक्ा के क्ेरि में कम हो रही गैर — बराबरी का असर कहें या सोशल मीडिया के दौर में अभिवयलकत की आजादी के नतीजे में सैधिांशतक — ्वैचारिक धरातल पर लोगचों की बढ रही करीबी और जगरूकता को इसकी ्वजह बताएं । कारण कुछ भी हो , लेकिन इस सच को नकारा नहीं जा सकता कि समाज का दमित — दलित ्वग्थ अब मुखर भी हो रहा है और जागरूक भी । नतीजन समाज के हर क्ेरि में इसका असर भी दिख रहा है । फिर मनोरंजन के साथ ही समाज की नबज को ्ट्टोलती — कुरेदती सिनेमा पर भी स्व्थकालिक अधिकतम दलित जागरूकता का सपष्ट प्रभा्व दिखना स्वाभाश्वक ही है । यही ्वजह है कि दलित चिंतन को आधार बनाकर
रची — बुनी गई शर्में बन भी रही हैं और सफलता के नए कीर्तिमान भी गढ रही हैं ।
सफलता का रिकॉर्ड बना रही फिल्ें
इसकी ताजा मिसाल ' जय भीम ' शर्म की ऐतिहासिक सफलता है जिसके बारे में बताया जा रहा है कि तमिल भाषा में बनी इस शफ़्म को सिनेमा से जुडे आँकडे बताने ्वाली साइ्ट आईएमडीबी पर सबसे बशढया रैंकिंग मिली है । इसकी 9.6 की यूजर रेश्टंग ने इसे नंबर एक की रैंकिंग पर पहुँचा दिया है । इस शफ़्म को दर्शकचों ने भी ' द शॉशांक रिडेंपशन ' और ' द गॉडफादर ' जैसे कलाशसक सिनेमा पर तरजीह दी है । हिंदू धर्म की सख़त जाति व्यवस्ा में सबसे निचले पायदान पर मौजूद दलितचों के शख़लाफ़ होने ्वाले
दमन की कहानी बयां कर रही यह शर्म गंभीर भारतीय शफ़्मचों की कडी में सबसे नई है । यह हमें बताता है कि देश के छो्टे शहरचों और गाँ्वचों में हाशिए पर मौजूद लोगचों ख़ासकर दलितचों का जी्वन बेहद अशनलशचत है ।
आगरे आ रहरे युवा निर्माता
भारत की कुल आबादी में दलित क़रीब 20 फ़ीसदी हैं और क़ानून होने के बा्वजूद उनहें लगातार भेदभा्व और हिंसा का सामना करना पडता है । इस शफ़्म के नाम ' जय भीम ' का मतलब " भीम अमर रहें " होता है । यह लोकप्रिय नारा देश के संश्वधान निर्माता बाबा साहब भीमरा्व आंबेडकर को अपना आदर्श मानने ्वाले लोगचों ने दिया है । ' जय भीम ' तमिल सिनेमा में एक नए आंदोलन का हिससा है । इसके तहत
48 iQjojh 2023