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माममटिक क्ण
जनजातीय समुदायचों के बलिदानचों ए्वं योगदानचों को स्मान देते हुए , भारत सरकार ने 15 न्वंबर को जनजातीय गौर्व शद्वस के रूप में घोषित किया है । इस तिथि को भग्वान बिरसा मुंडा की जयंती होती है । यह ्वाकई जनजातीय समुदायचों के लिए एक मार्मिक क्ण है जब देश भर में जनजातीय समुदायचों के बहादुर स्वतंरिता सेनानियचों के संघर्ष को आखिरकार स्वीकार कर लिया गया है । इन गुमनाम ्वीरचों की ्वीरता की गाथाएं आखिरकार दुनिया के सामने लाई जायेंगी । देश के श्वशभन्न हिस्सों में 15 न्वंबर से लेकर 22 न्वंबर तक सपताह भर चलने ्वाले समारोहचों के दौरान बडी संखया में गशतश्वशधयचों का आयोजन किया गया है ताकि इस प्रशतलषठत सपताह के दौरान देश के उन महान गुमनाम आशद्वासी नायकचों , जिन्होंने अपने जी्वन का बलिदान दिया , को याद किया जा सके । जनजातीय गौर्व शद्वस मनाने के इस ऐतिहासिक अ्वसर पर , यह देश
श्वशभन्न इलाकचों से संबंध रखने ्वाले अपने उन नेताओं ए्वं योधिाओं को याद करता है , जिन्होंने औपशन्वेशिक शासन के खिलाफ बहादुरी से लडाई लडी और अपने प्राणचों की आहुति दी । हम सभी देश के लिए उनकी निःस्वार्थ से्वा और बलिदान को सलाम करते हैं ।
जनजातीय नायकों करे प्ति कृ तज् है दरेश
बिरसा मुंडा का नाम हमेशा भारत के स्वतंरिता संग्ाम के सभी महान श्वभूतियचों की तरह ही स्मान के साथ लिया जाएगा । 25 साल की छो्टी सी उम् में उन्होंने जो उपललबधयां हासिल कीं , ्वैसा कर पाना साधारण आदमी के लिए असंभ्व था । उन्होंने अंग्ेजचों के खिलाफ आशद्वासी समुदाय को लामबंद करते हुए आशद्वासियचों के भूमि अधिकारचों की रक्ा करने ्वाले कानूनचों को लागू करने के लिए औपशन्वेशिक शासकचों को मजबूर किया । भले ही उनका जी्वन छो्टा था , लेकिन उनके द्ारा जलाई गई सामाजिक ए्वं सांसकृशतक क्ांशत की लौ ने देश के जनजातीय समुदायचों के जी्वन में मौलिक परर्वत्थन लाए । ब्रिटिश दमन के खिलाफ सिसरि स्वतंरिता संग्ाम ने राषट्र्वाद की भा्वना को उभारा । समूचा भारत इस ्वष्थ भारत की आजादी के 75्वें ्वष्थ के उपलक्य में " आजादी का अमपृत महोत्सव " मना रहा है और यह आयोजन उन असंखय जनजातीय समुदाय के लोगचों ए्वं नायकचों के योगदान को याद किए और उनहें स्मान दिए बिना पूरा नहीं होगा , जिन्होंने मातपृभूमि के लिए अपने प्राण नयौ्ा्वर कर दिए । उन्होंने लंबे समय तक चलने ्वाले स्वतंरिता संग्ाम की नीं्व रखी । 1857 के स्वतंरिता संग्ाम से बहुत पहले , जनजातीय समुदाय के लोगचों और उनके नेताओं ने अपनी मातपृभूमि और स्वतंरिता ए्वं अधिकारचों की रक्ा के लिए औपशन्वेशिक िलकत के खिलाफ श्वद्रोह किया ।
पीडढ़यों को प्रेरणा दरेगा
जनजातियों का संघर्ष
चुआर और हलबा समुदाय के लोग 1770 के दशक की शुरुआत में उठ खड़े हुए और भारत द्ारा स्वतंरिता हासिल करने तक देश भर के जनजातीय समुदाय के लोग अपने-अपने तरीके से अंग्ेजचों से लडते रहे । चाहे ्वो पूर्वी क्ेरि में संथाल , कोल , हो , पहाशडया , मुंडा , उरां्व , चेरो , लेपचा , भूश्टया , भुइयां जनजाति के लोग हचों या पूर्वोत्तर क्ेरि में खासी , नागा , अहोम , मेमारिया , अबोर , नयािी , जयंतिया , गारो , मिजो , सिंघपो , कुकी और लुशाई आदि जनजाति के लोग हचों या दशक्ण में पद्गार , कुरिचय , बेडा , गचोंड और महान अंडमानी जनजाति के लोग हचों या मधय भारत में हलबा , कोल , मुरिया , कोई जनजाति के लोग हचों या फिर पलशचम में डांग भील , मैर , नाइका , कोली , मीना , दुबला जनजाति के लोग हचों , इन सबने अपने दुससाहसी हमलचों और शनभगीक लड़ाइयचों के माधयम से ब्रिटिश राज को असमंजस में डाले रखा । हमारी आशद्वासी माताओं और बहनचों ने भी दिलेरी और साहस भरे आंदोलनचों का नेतपृत्व किया । रानी गैडिन्यू , फूलो ए्वं झानो मुर्मू , हेलेन लेपचा ए्वं पुतली माया तमांग के योगदान आने ्वाली पीशढयचों को प्रेरित करेंगे ।
राष्ट्र करे प्ति समर्पण का समारोह
15 न्वंबर से लेकर 22 न्वंबर , 2021 ्वाले सपताह के दौरान , श्वशभन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेिचों द्ारा हमारे जनजातीय समुदाय के महान स्वतंरिता सेनानियचों की यादचों के प्रति स्मान के तौर पर आशद्वासी नपृतय उतस्वचों , शि्प मेलचों , शचरिकला प्रतियोगिताओं , आशद्वासी उपललबधयचों का स्मान करने , कार्यशालाओं , रकतदान शिश्वरचों और महान आशद्वासी स्वतंरिता सेनानियचों को श्रधिांजलि देने जैसी गशतश्वशधयचों की एक श्वस्तृत श्रपृंखला का आयोजन किया गया है । यह जनजातीय समुदाय के बहादुर स्वतंरिता सेनानियचों के जी्वन को तहेदिल से याद करने और खुद को राषट्र के लिए समर्पित करने का एक अ्वसर है । �
iQjojh 2023 47