इसका कोई शनलशचत नियम नहीं होता है बल्क इसे इस प्रकार से गाया जाता है कि जनमानस के होठचों पर सजकर , आतमा में बस जाए । मैथिली लोक गीतचों में जयादातर दे्वी दे्वताओं , प्व्थ तयोहारचों , प्रकृति श्विेष , पौराणिक चरित्रों को जैसे बाबा श्वद्ापति , आचार्य सुमन , स्ेहलता , बाबा लक्मीनाथ गोसाई , काशीनाथ झा मधूप , के साथ मन की सारी भा्वनाओं आदि की वयाखया होती है । कई ऐसे गीत होते जो जनमानस की जुबान पर बसे होते हैं लेकिन लेखक का नाम किसी को पता नही होता है । इसके द्ारा जी्वन में बीत
रहे हर एक पल को भी दर्शाया जाता है जैसे , प्रेम गीत , श्व्वाह गीत , श्वरह गीत , कृषि प्रधान गीत इतयाशद ।
लोकगीतों का बहुआयामी प्भाव
मैथिली लोकगीतचों में श्वशभन्न प्रकार के ्वाद् यंरि जैसे ढोल , बांसुरी , झांझर , हारमोनियम , तबला का प्रयोग किया जाता है । यह पूर्णतः जनमानस का गीत है , इसके स्वर लय ताल पारंपरिक होते हैं , इसे गाते हुए आधयालतमक और सामाजिक प्रथाओं का ज्ञान और अपनेपन का एहसास होता है । यह जनमानस के ह्रदय प्टल पर सहज और सुलभ रेखांकित हो जाता है । मैथिली लोक संगीत का मुखय उद्ेशय जनमानस का मनोरंजन ही नहीं बल्क हर एक अ्वसर पर उ्लास , उमंग , करुणा , सुख-दुख की कहानी को शचशरित करना है । संगीत का प्रभा्व तो श्वश्ववयापी है जिसे सब ने देखा है कि संगीत के लहर पर कैसे श्वषधर भी सपेरे के ्वि में हो जाते हैं । इसी प्रकार लोकगीत इंसान के
मानसिक लस्शत को स्वस् बनाने में पूर्ण योगदान देती है । अब तो असपतालचों में भी यह प्रमाणित कर दिया गया है कि गीत संगीत से असाधय रोगचों में भी फर्क आने लगा है l लोकगीतचों के द्ारा श्रमिकचों का की कार्य क्मता भी बढाई जा सकती है , कल कारखानचों में श्टशरन के छुट्ी के समय अकसर लोकगीत सुनकर ही अपना समय बिताते हैं और थकान दूर करते हैं । लोकगीत से चित्त को बहुत ही शांति मिलती है । मैथिली लोक गीतचों में जनमानस के हृदय की भा्वना इस तरह से उभर कर आती है कि श्वरह ्वेदना और खुशी के पल नजर के सामने घूमने लगते हैं , ऐसा लगता है की इंसान प्रतयक् गीतचों को अपने जी्वन में जी रहा हो ।
लोकगीतों में अपनापन का जुड़ाव
इसमें सामाजिक कोई भी दूरियां नहीं रह जाती हैं और लोग एक दूसरे से संगीत के माधयम से जुड जाते हैं । इस तरह हम कह सकते हैं कि लोकगीत बहुत ही िलकतिाली है और सभी भा्वनातमक समसयाओं के लिए सकारातमक संदेश पहुंचाती है । इसमें कोई किसी से कुछ नहीं पूछता और इसके माधयम से सब कुछ कह जाता है । हृदय के माधुर्य को कायम रखते हुए सभी नकारातमक श्वचारचों को ह्टाकर मनुषय की एकाग्ता की िलकत को जागपृत करता है । इस श्वधा से सबसे प्रिय वयलकत के साथ बिताए गए सभी यादचों को पुनः प्रतयक् अनुभ्व किया जा सकता है । इसकी कोई सीमा बाधा और नियम शनदजेशिका नहीं है यह के्वल लगन है , श्रधिा है जिसे सुनकर महसूस ही किया जा सकता है और भा्वश्वभोर हुआ जा सकता है । ्वास्तव में मैथिली लोकगीत तो दैश्वक ्वरदान जैसा है तो सामाजिक शचरिण और भा्वाभिवयलकत का सशकत माधयम होने के साथ ही आधयालतमक चेतना , सांसकृशतक समृद्धि ए्वं सत — चित — आनंद का संदेश देता है । ्वैसे भी मैथिली बहुत ही मधुर भाषा है और इसके लोकगीतचों का असीमित , सनातन से प्र्वाहित और सपंशदत बहुआयामी श्वसतार आतमा और परमातमा के बीच की कडी से कम नहीं है । यह समाज में
योग की तरह है जो इंसान के हामवोन संतुलन को बनाए रखता है । इसके साथ ही शरीर ्व मलसतषक को आराम ्व प्रफु्लता देने का कार्य भी करता है ।
परिवर्तन को समरेटना परम्परा की विशरेरता
कभी-कभी बदलते परर्वेश को देखकर कुछ लोग श्वचलित हो जाते हैं । उनहें कुछ क्ण के लिए ऐसी संभा्वनाएँ दिखाई देने लगती हैं कि शर्मी गीत के युग में और गाँ्व से शहरचों में पलायन के रफतार में कहीं लोकगीत समापत न हो जाए लेकिन ऐसी बात नहीं है । पर्परा तो पर्परा है । पर्परा प्रतयेक काल मे जीश्वत रहती है । परर्वत्थन को समे्ट लेना पर्परा की श्विेषता है लोक गीतचों की पर्परा को समझने ्वके लिए भाग्वत गीता का ्वह कथय जब अर् जुन भग्वान कृषण से पूछते है कि हे प्रभो ये भाग्वत गीता का कथय जो आप मुझे समझा रहे हैं ्वह कया है ? भग्वान कृषण इस पर बहुत ही सहजभा्व से अपने सखा ए्वं भकत अर् जुन को समझाते हैं : हे अर् जुन ! यह योग का श्वधान अर्थात भाग्वत् गीता स्व्थप्रथम सूर्यदे्व को बतलाया गया भग्वान सूर्यदे्व ने इसे मनु को बताया , मनु ने पुन : इक््वाकू को समझाया , और इस तरह एक के बाद दूसरे द्ारा एक ्वकता से दूसरे ्वकता में यह आता रहा । किनतु समय के चलते प्र्वाह में यह आता रहा । किनतु समय के चलते प्र्वाह में यह कहीं कुछ क्ण के लिए खो गया और इस तरह से श्रीकृषण को एक बार पुन : कुरुक्ेरि के मैदान में अर् जुन से इस योग को कहना पड़ा । मैथिली लोग गीतचों की अ्वस्ा भी यही है । लोक गीतचों का चरररि ही ऐसा होता है कि इसे कोई चाहकर भी समापत नहीं कर सकता । इतिहास के पन्नचों पर काइयाँ पुत जाएँगी , युग-युग के संसकार धुल जाएँगे और तकदीर की लिपि भी शम्ट जाएगी लेकिन लोक-हृदय की सं्वेदनशील ्वाणी युग-युग तक अमर रहेगी । आज मिथिला के तमाम बुशधिजीश्वयचों ए्वं सामानय नर-नारी को इसके बारे में श्वचार करना है । और पर्परा को जीश्वत रखना है । ्वैसे पर्परा अभी भी अक्ुणण है । �
iQjojh 2023 33