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मैथिली लोकगीतयों का असीम अथाह स्ंदन

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लांकि किसी भी देश , जाति , भाषा , समुदाय अ््वा क्ेरि के लोक गीतचों को चनद भागचों में ्वण्थन करना बहुत ही दुशकर कार्य होता है , खासकर जब मैथिली लोक गीतचों का वर्गीकरण करना हो तो यह कार्य असंभ्व नहीं तो दुषकर अ्वशय हो जाता है । हालांकि मैथिली लोक गीतचों को अजय कानत मिश्रा ( १९४८ ) ए्वं माखन झा ( १९७९ ) जैसे श्वद्ानचों ने वर्गीकृत करने का प्रयास किया है । बहरहाल मिथिला की प्राण्वायु में प्र्वाहित लोकगीतचों को इन सात श्रेणियचों में वर्गीकृत किया जा सकता है ।
( 1 ) जीवन चक् को दर्शातरे गीत
बहुतेरे लोक गीत जी्वन चक् के श्वशभन्न शक्या कलापचों यथा जनम , नामकरण संसकार , मुणडल संसकार , उपनयन संसकार , श्व्वाह संसकार , कुँ्वारी लड़कियचों के हेतु श्वशभन्न अनुषठाशनक संसकार इतयाशद में गाये जाते हैं । ग्ामीण ललनाएँ बच्े के जनम के छठें दिन पर सोहर गाकर मातपृ दे्वी षष्टि के प्रति अपना धन्यवाद ज्ञापित करती है । सोहर गीतचों को सामानय रुप से दो भागचों में श्वभकत किया जा सकता है । जनम से स्बलनधत सोहर और कभी- कभी धार्मिक सोहर । उपनयन मुणडन ए्वं श्व्वाह संसकार में सोहर भी गाया जाता है । सोहर की ही तरह कुछ बालगीत ्व लोरी बच्चों को खुश करने के लिए महिलाओं द्ारा गाया जाता है । इसके अला्वा श्व्वाह संसकार से जुडे सुहाग से समदान या श्वदाई के गीत हैं जो श्व्वाह के तीन चार दिन पू्व्थ से लेकर शद्रागमन के चार-पाँच दिन पशचात तक श्वशभन्न चरणचों में गाए जाते हैं ।
( 2 ) वातरटिक डक्या कलाप को दर्शानरे वािरे गीत
मिथिला के लोग साल भर श्वशभन्न व्रत , तयौहार ए्वं अनय उतस्वचों का आयोजन बड़े ही धूमधाम ए्वं अनुषठाशनक कृत्यों के द्ारा किया करते हैं । मिथिला के तयौहारचों में प्रमुख हैं- रामन्वमी , जुडिशीतल , ्व्टसावित्री , नागपञ्चमी , मधु श्रा्वणी , दुर्गापूजा , कोजागरा , दीपा्वली , सामाचके्वा , तुसारी , भ्रातशद्तीया , दाहा इतयाशद । इन तयौहारचों में श्वशभन्न प्रकार के गीत गाए जाते हैं । ऐसे गीत ग्ामीण जी्वन में श्वशभन्न ॠतुओं के महत्व को दर्शाने का काम करते हैं । इसके अला्वा कृषि से स्बंशधत गीत भी हैं तो कृषि के श्वशभन्न चरणचों यथा खेत की जुताई , बोआई , बीज का छिड़का्व , फसलचों का का्टना इतयाशद के समय में गाये जाते हैं । इस तरह के गीत ग्ामीण किसानचों ए्वं महिलाओं का प्रकृति के साथ तारत्य स्ाशपत करने में मदद करते हैं ।
( 3 ) ॠतुओं सरे सम्ंधित गीत
मैथिली लोकगीतचों में ्वष्थ के हर महीने या फिर हर अ्वस्ा का ्वण्थन श्वशभन्न संदभभों में किया गया है । इन गीतचों में निराशा या पयार में श्वरलता , सामानयतया प्रेमी या पति के अनुपलस्ती के कारण की अधिकता होती है । ॠतु गीतचों को सामानयतया बारहमासा , छैमासा , ए्वं चौमासा तीन श्रेणियचों में गाया जाता है । बारहमासा में बारह महिने का , छैमासा में छै महिने का ए्वं चौमासा में चार महिने का ्वण्थन होता है । प्रेम , करुणा , श्वरह , अभिसार , नचोंक- झचोंक , भलकत , ज्ञान , इतयाशद सभी चीजचों का समा्वेश इन गीतचों से होता है ।
( 4 ) ज्ानपरक गीत
मैथिल लोक कश्वयचों ने लोकगीतचों से समाज में ज्ञान को अक्ुणण बनाने में अपना योगदान दिया है । ऐसे प्रतयेक गीत में ज्ञान के तत्व विद्यमान होते हैं । मिथिला में असंखय लोक गीत ऐसे हैं जो लोगचों को दिशा-शनदजेिन करने के
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