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सामाजिक समरसता के संवाहक : मैथिली लोकगीत
समाज , जीर्न , प्रकृ ति और कालचरि का हर पहलू है समाहित मिथिला में सनातन से प्रतर्त है लोकगीतयों करी धारा
सोनी चौधरी lk
हितय को समाज का दर्पण कहा गया है तो लोक संगीत को धडकन । लोकगीत , लोक जी्वन का प्राण है । कोई भी मनुषय ऐसा नहीं है जिसे गाना गाना या कम से कम गुनगुनाना न आता हो । दर्द और प्रीति की अधिकता को सहजता से उढेलने का काम अगर कोई करता है तो ्वह है गीत गाना । लोक गीत के्वल गीत ही नहीं है । सामाजिक व्यवस्ा को संचरित करने का एक प्रमुख आधार भी है । लोक गीत के्वल अनुषठाशनक , संसकार , खुशी , उमंग ए्वं ्वेदना में गाने या गुनगुनाने ्वाली चीज नहीं एक समाज की समसत जी्वन शैली का दपंण भी है । अगर लोक गीत को सही ढंग से श्व्वेचन किया जाए तो इतिहास , राजनीति , धर्म , दर्शन , पारर्वारिक स्बनध , ज्ञान-श्वज्ञान , संसकार इतयाशद सभी चीज की जानकारी लोक गीत के द्ारा किया जा सकता है । मैथिल लोगचों में लोकगीत हमेशा एक महत्वपूर्ण पक् रहा है जो समृद्ध सांसकृशतक श्वश्वधता में एकता का प्रतीक है । यह प्रतयेक क्ेरि की उतकृष्टता
को दर्शाता है । एक पीढी से दूसरी पीढी तक परंपराओं को पहुंचाने का काम करता है जिसे निरंतर आगे बढाने की जरूरत है ।
अनरेकता में एकता का पहलू
कहने को तो दशक्ण में गंगा , पूरब में कोसी , पलशचम में गंडकी और उत्तर में हिमालय के बीच का पूरा भू — भाग मिथिलांचल है । लेकिन यहां भाषाई और सांसकृशतक ही नहीं बल्क प्राकृतिक श्वश्वधता भी ऐसी है जिसके बारे में कहा्वत है कि चार कोस पर पानी बदले , आठ कोस पर ्वाणी । इन श्वशधताओं को जिन तत्वचों ने एकता के धागे में समे्टा हुआ है उसमें शनलशचत तौर पर सबसे प्रमुख यहां के लोकगीत ही हैं । मिथिला के लोकगीत सामाजिक समरसता के भी सं्वाहक हैं और महिला सिलकतकरण की अ्वधारणा के साथ भी गहराई से जुडे हुए हैं । चुंकि मिथिला के जन — जी्वन और संसकारचों को लोकगीत की पुलषपत — पल्लवित और सपंशदत करते हैं लिहाजा इन लोकगीतचों पर महिलाओं के एकाधिकार के कारण समाज और परर्वार में महिलाओं को एक व्यावहारिक ्वच्थस्व स्वत : ही हासिल हो जाता है । इसके अला्वा लोकगीतचों में जाति की ्वह दी्वार भी कहीं नहीं दिखती जिसे तोडने का उपक्म तो हमेशा से होता रहा है लेकिन आज तक तोडा नहीं जा सका है । यहां तक कि मिथिला में सांप्रदायिकता के खांचचों में भी लोकगीतचों को समे्टा नहीं जा सकता है क्योंकि सोहर से लेकर
समदाउन तक ही नहीं बल्क बारहमासा , छहासा , चौमासा , चैता और ब्टग्वनी जैसे गीत जितना हिनदुओं द्ारा गाया जाता है उससे जरा भी कम मुसलमानचों द्ारा भी नहीं गाया जाता ।
होठों पर सजकर आत्मा में बस जाए
मैथिली लोकगीतचों में अकसर मिथिला का इतिहास जो अति प्राचीन है और ग्ामीण जनजी्वन की झलक मिलती है । जनक नंदनी सीता की जनमस्ली मिथिला के लोकगीतचों में अधिकतर हर बे्टी में सीता और दामाद में राम की ्श्व देखी जाती है जिससे श्व्वाह के गीतचों की उतकृष्टता चरम पर होती है । श्वशभन्न ऋतु के हिसाब से भी इसका ्वण्थन किया जाता है जो उस क्ेरि की सभयता संसकृशत को दर्शाता है । इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि मैथिली लोकगीत मिथिला श्विेष होता है जो एक पीढी से दूसरी पीढी तक मैथिल परंपरा , संसकार , जी्वन , मरण और सामाजिक समरसता का संदेश देता है ।
32 iQjojh 2023