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मष्हिा सशक्तिकरण की हो रही ठोस पहल
चंचल ढ़ींगरा lk
माजिक परर्वेश में लंबे समय से महिला सिलकतकरण का श्वषय छाया हुआ है और इस श्वषय को कानूनी संरक्ण भी भली भांति प्रापत हुआ है । समय समय पर महिलाओं को सशकत बनाने और उनहें अधिकार स्पन्न करने के लिए बहुत से कानून बनाए गए । लेकिन यदि इस प्रश्न पर गहराई से श्वचार करें कि कया उनहें , जो जनसंखया का 50 प्रतिशत हैं , उनका पूरा हक कया मिल पा रहा है , तो अफसोस के साथ ज्वाब नकारातमक ही सामने आता है ।
लोक र्वहार में लागू नहीं हो रहरे कानून
भारतीय समाज का ढाँचा इस तरह से निर्मित है कि आज इस क्पयू्टर युग में भी पारर्वारिक सतर पर महिलाओं के साथ होने ्वाला भेदभा्व बदसतूर जारी है । ्वह भी तब जबकि नियमचों की बात कही जाए तो कानूनन पिता की स्पशत पर उसकी बे्टी का अधिकार शादी के उपरांत भी है । लेकिन होता यह है कि माता पिता शादी श्व्वाह पर जो भी खर्च करते हैं , ्वही उनकी ओर से लडकी के प्रति अंतिम बडा खर्च होता है । उसके बाद ्वह घर उसका नहीं रह जाता जहां ्वह पैदा हुई और पली — बढी । श्व्वाह के बाद पिता के घर से उसका के्वल भा्वनातमक रिशता ही रह जाता है । उसको घर के निजी श्वषयचों में शामिल नहीं किया जाता । स्पशत के ब्ट्वारे से पहले ही उस पर मानसिक दबाब बनाकर एनओसी पर साईन कर्वा लिए जाते हैं और यदि ्वह ऐसा करने के लिए मना करती है तब उसे घर से रिशता खतम करने के लिए कहा जाता है । ऐसे में बे्टी का कर्तवय निभाते हुए पिता की स्पशत्त पर से अपना हक छोडने के अला्वा एक महिला के पास दूसरा कोई श्वक्प ही नहीं रह जाता है । इसमें भी यदि कोई सरिी अपने अधिकारचों को हासिल करने के लिए
को ्ट — कचहरी का सहारा लेती है तो इसमें सामाजिक सहयोग प्रापत नहीं होता , अलबत्ता उसे जग — हंसाई का ही सामना करना पडता है । यहां तक कि कई मामलचों में तो अपने हक के लिए कानूनी लडाई की राह अलखतयार करने ्वाली महिला को मायके में सामाजिक बहिषकार भी झेलना पड जाता है । जबकि आदर्श लस्शत तो यह होती कि घर में यदि एक बे्टी और एक बहू , दोनचों को ही अपना पूर्ण अधिकार प्रापत हो , तब सचमुच महिलाओं का आर्थिक सतर ऊँचा होगा और ्वह अपने फैसले लेने के लिए भी स्वतंरिता का अनुभ्व कर सकेगी ।
सम्पचति पर अधिकार सरे वंचित महिलाएं
बीते दिन लखनऊ में आजादी के अमपृत महोत्सव के काय्थक्म में प्रधानमंरिी नरेनद्र मोदी ने महिला सिलकतकरण की दिशा में एक सुदपृढ पहल की घोषणा की जिसके तहत प्रदेश के 75 जिलचों के 75000 लाभाथियचों को प्रधानमंरिी आ्वास योजना के तहत दिये गये घरचों का मालकिना हक औरतचों के नाम पर ही किए जाने की बात कही गई । इस घोषणा के अर्थ बहुत गहरे हैं । ्वास्तव में देखें तो समाज का शिशक्त ्वग्थ हो या फिर अशिशक्त तबका , किसी भी ्वग्थ के लोग सामानय लस्शत में औरतचों के नाम अपनी स्पशत्त नहीं करना चाहते । उदाहरण के तौर पर राजस्ान के आंकड़ों को देखें तो अप्रैल से सित्बर 2021 के बीच प्रदेश में 2471 करोड की अचल स्पशत्त का क्य — विक्रय हुआ जिसमें महिलाओं के नाम पर खरीदी गई स्पशत्त महज 16.5 प्रतिशत थी । यह लस्शत तब है जबकि स्टा्प डयू्टी पर औरतचों को छू्ट हासिल है । महिलाओं का स्पशत्त पर अधिकार उनहें आर्थिक रुप से मजबूत बनाता है और उनहें अपने श्वचारचों को वयकत करने की आजादी के साथ ही निर्णय लेने का आत्मविश्वास जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है । लेकिन दुर्भाग्यवश समाज
में वयापत लैंगिक आधार पर भेदभा्वपूर्ण मापदणड महिलाओं और स्पशत्त के बीच मजबूत दी्वार बनकर अडा — खडा है । इसके अला्वा स्पशत्त पर महिलाओं का अधिकार नहीं हो पाने की कई अनय ्वजहचों में नीतियचों का आधे — अधूरे मान से शक्यान्वयन , नियम — कानूनचों के बारे में लोगचों की कम जानकारी और कई तरह का सामाजिक दबा्व भी शामिल है ।
पितृसतिात्मक ढ़ांचा है बड़ी बाधा
महिला सिलकतकरण की राह में एक अनय बडी बाधा हमारा पितपृसत्तातमक समाजिक ढांचा भी है जो महिलाओं को स्पशत का अधिकारी नहीं मानता बल्क उनहें परर्वार में पराया धन ही माना जाता है । बेश्टयचों को पराया धन मानने की यह पुरातनपंथी सोच औरतचों को पुरुषचों के मुकाबले बराबरी पर नहीं आने देती बल्क दोयम दजजे पर ही आंकती है । भारत में श्व्वाहित महिलाओं के 22 प्रतिशत की तुलना में 66 प्रतिशत श्व्वाहित पुरुषचों को संपत्ति का मालिकाना अधिकार प्रापत है । भारत दुनिया के उन चुनिंदा देिचों में से एक है जहां सं्वैधानिक कानूनचों के बा्वजूद भी महिलाएं अपने अधिकारचों से ्वंचित हैं । इसका मुखय कारण सामाजिक दबा्व और पारर्वारिक दबा्व है । जिसके कारण महिलाए
30 iQjojh 2023