eMag_Feb 2023_DA | Page 12

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सरकार से दुर्भागयपूर्ण ए्वं हासयासपद यह मांग कर दी है कि इस रचना में से कुछ पंलकतयचों को ह्टा दिया जाए या फिर यह पूरी रचना को ही पाबंद कर दिया जाये । यह मांग बताती है कि कोई बहस श्व्वेक के धागे से बंधी न रहे तो ्वह किस हासयासपद लस्शत तक पहुंच सकती है । भले ही यह श्व्वाद बिहार के शिक्ा मंरिी और आरजेडी नेता चंद्रशेखर के इस बयान से शुरू हुआ कि रामचरितमानस के कुछ दोहे समाज के कुछ खास तबकचों के खिलाफ हैं ।
देखा जाए तो रामचरितमानस के कई दोहचों पर बहस बहुत पहले से चली आ रही है । उनमें से कुछ को दलित श्वरोधी बताया जाता है तो कुछ को सरिी श्वरोधी । इसके पक्-श्वपक् में लंबी-चौड़ी दलीलें दी जाती रही हैं । लेकिन सैंकडचों वर्षों से घर-घर में मलनदर की भांति पूजनीय यह कोरा ग्ं् नहीं है बल्क एक स्पूण्थ जी्वनशैली है । संसकारचों ए्वं मूल्यों की पाठशाला है । रामचरितमानस में भले रामकथा हो , किनतु कश्व का मूल उद्ेशय श्रीराम के चरररि के माधयम से नैतिकता ए्वं सदाचार की शिक्ा देना रहा है । रामचरितमानस भारतीय संसकृशत का ्वाहक
महाकावय ही नहीं अपितु श्वश्वजनीन आचारशासरि का बोधक महान् ग्न् भी है । यह मान्व धर्म के शसधिान्तों के प्रयोगातमक पक् का आदर्श रूप प्रसतुत करने ्वाला ग्न् है ।
रामचरित मानस हिंदुओं के लिए सिर्फ धार्मिक ग्ं् ही नहीं , बल्क जी्वन दर्शन है और संसकारचों से जुड़ा हुआ है । मानस कोई पुसतक नहीं , बल्क मनुषय के चरररि निर्माण का श्वश्वश्वद्ालय है और लोगचों के कार्य व्यवहार में इसे सपष्टता से देखा जा सकता है । यह मानने की बात नहीं कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने जी्वन में मानस की चौपाइयचों और दोहचों का पाठ न किया हो । इसलिए कहा जा सकता है कि राजनीति में इस समय हाशिये पर चल रहे मौर्य ने चर्चा में रहने के लिए एक बे्वजह का श्व्वाद खड़ा किया है । राजनीतिक लाभ के लिए जनभा्वनाओं का अपमान ए्वं तिरसकार करना किसी भी कोण से उचित नहीं ।
12 iQjojh 2023