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रामचरितमानस ष्हंदुओ ंके लिए सिर्फ धाष्ममिक ग्ंथ नहीं , जीवन दर्शन भी है

ललित गर्ग

श में अनेक राजनीति ए्वं गैरns

राजनीतिक स्वा्भों से प्रेरित
अराषट्र्वादी ए्वं अराजक िलकतयां हैं जो अपने तथाकथित संकीर्ण ए्वं देश तोड़क बयानचों से देश की एकता , शांति ए्वं अमन-चैन को छीनने के लिये ततपर रहती हैं , ऐसी ही िलकतयचों में शुमार बिहार के शिक्ा मंरिी श्री चनद्रशेखर ए्वं समाज्वादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने हिनदू धर्म की आस्ा को आहत करने ्वाले बयान दिये हैं , संत शिरोमणि तुलसीदास रचित रामचरितमानस की कुछ पंलकतयचों को लेकर उन्होंने तथयहीन , घश्टया , शसधिानतहीन ए्वं हासयासपद श्टपपणी करके धर्म-श्विेष की आस्ा को आहत करते हुए
श्व्वाद को जनम दिया है । हालांकि सपा ने मौर्य की इस श्टपपणी से खुद को यह कहते हुए अलग कर लिया है कि यह उनकी वयलकतगत श्टपपणी थी । लेकिन दुर्भागयपूर्ण तो यह है कि देश के प्रमुख राजनेता ने सच्ाई को जानते हुए जानबूझकर भड़काऊ ए्वं उनमादी बयानचों से देश की मिली-जुली संसकृशत को झुलसाने का काम किया है । मौर्य के ऐसे हिंसक ए्वं उनमादी श्वचारचों को कया हिनदू हाथ पर हाथ धरे देखते रहेंगे ? क्यों ऐसे बयानचों से देश की एकता ए्वं स्व्थधर्म संसकृशत को तोड़ने की कुचेषठाएं की जाती हैं ? रामचरितमानस को पिछले करीब पांच सौ वर्षों में स्पूण्थ भारत के करोडचों लोग जिस श्रधिा और प्रेम से पाठ करते रहे हैं , ्वह इसका दर्जा बहुत ऊंचा कर देता है । अब इस तरह इस
अमर कृति का अनादर ए्वं बे्वजह का श्व्वाद खड़ा करना समझ से परे हैं ।
आखिर बहुसंखय हिनदू समाज कब तक सहिषणु बन ऐसे हमलचों को सहता रहेगा ? कब तक ‘ स्व्थधर्म समभा्व ’ के नाम पर बहुसंखय समाज ऐसे अपमान के घूं्ट पीता रहेगा ? राजनीतिक दलचों में एक ्वग्थ-श्विेष के प्रति बढ़ते धार्मिक उनमाद पर तुरनत नियनरिण किये जाने की जरूरत है क्योंकि अभी यदि इसे नियंशरित नहीं किया गया तो उसके भयंकर परिणाम हो सकते हैं जिनसे राषट्रीय एकता को ही गंभीर खतरा पैदा हो सकता है । रामचरितमानस हिनदू धर्म के अनुयायियचों का सर्वोच् आस्ा ग्ं् है । करोडचों लोग इस ग्ं् का हर दिन स्वाधयाय करते हैं । मौर्य ने इस ग्ं् को लेकर
iQjojh 2023 11