इसीलिए मौर्य का प्रबल श्वरोध भी हो रहा है । उनकी पार्टी के ही लोग उनके श्वचारचों से सहमत नहीं हैं ।
भारतीय राजनीति का यह दुर्भागय रहा है कि उससे जुड़े राजनेता अकसर श्व्वादित बयानचों से अपनी राजनीति चमकाने की कुचेष्टा करते रहे हैं । लेकिन समझदार ए्वं अनुभ्वी राजनेता धार्मिक आस्ाओं पर चो्ट करने से बचते रहे हैं । मौर्य ने रामचरित मानस पर श्व्वादित श्टपपणी कर न सिर्फ अपनी अपरिपक्व राजनीतिक सोच का परिचय दिया है बल्क करोडचों हिंदुओं की भा्वनाओं को आहत किया है । बल्क अपने सनातन संसकारचों को भी तिरसकृत किया है । यह श्वड्बना है कि राजनेता इस बात की कतई पर्वाह नहीं करते कि उनके शब्दों का जनमानस पर कया प्रभा्व पड़ेगा । रामचरित मानस पर तथाकथित प्रगतिशील पहले भी अधकचरी श्टपपशणयां करते रहे हैं लेकिन इससे इस ग्ं् की स्व्थस्वीकार्यता , प्रतिषठा ए्वं उपयोगिता पर कोई असर नहीं पड़ा , ना ही गोस्वामी तुलसीदास के प्रति लोगचों की श्रधिा कम हुई । स्वामी प्रसाद ने यदि कुछ चौपाइयचों पर आपत्ति जताई है तो या तो उन्होंने मानस का अधययन नहीं किया या फिर उन्होंने जानबूझकर यह श्वतंडा खड़ा किया । रामचरित
मानस के महानायक श्रीराम के चरररि पर श्व्वाद उठाने ्वाले ्वपृहद रूप से श्रीराम को नहीं समझते हैं । कया कोई यह जानने का प्रयास नहीं करता कि श्रीराम ने शबरी के झूठे बेर खाए थे और के्व्ट को गले लगाकर अपना परम शमरि बनाया था । उन्होंने ही तो शगधि का अपने पिता के सामान श्राधि किया था । ्वे कोल , भील , किरात , आशद्वासी , ्वन्वासी , गिरी्वासी , कपिश अनय कई जातियचों के साथ जंगल में रहे और उनहीं के दम पर उन्होंने रा्वण को हराया भी था तब उस महानायक को क्यों जाति के खंडचों में बां्टा जा रहा है ?
सा्व्थजनिक जी्वन श्विेषकर राजनीति में धर्म ए्वं उससे जुड़े श्वषयचों के बारे में शबद प्रयोगचों में मर्यादाओं का अशतक्मण कई कारणचों से चर्चा में रहता है । ऐसे नेताओं से मतभेद , असहमति स्वाभाश्वक है । श्वचारधारा के सतर पर ्टकरा्व और संघर्ष भी अस्वाभाश्वक नहीं है । किंतु शबद और व्यवहार की मर्यादा ही लोकतांशरिक समाज की सच्ी पहचान है । इसी तरह राजनीतिक पदचों पर आसीन या सा्व्थजनिक जी्वन में महत्वपूर्ण वयलकतयचों को ऐसे धार्मिक श्व्वाद खड़े करने के पहले उसके तथ्यों की पूरी छानबीन करनी चाहिए , उससे होने ्वाले नफा-नुकसान को मापना चाहिए । ऐसा नहीं
करने का अर्थ है , एक नेता होने की जिम्मेवारी को आप नहीं समझते या पालन नहीं करते । नेताओं के आधे-अधूरे श्व्वादासपद बयानचों की सूची बनाएं , तो शायद कई भागचों में मो्टी पुसतकें तैयार हो जाएं ।
भारतीय राजनीति में पनप रही बडबोलेपन ए्वं श्व्वाद खड़े करने की इस रिासद लस्शत को हर हाल में बदलने ए्वं नियंशरित करने की आ्वशयकता है । हमारे देश में वयापक राजनीतिक सुधार की आ्वशयकता है । यह सभी दलचों और उनके नेतपृत्व ्वग्थ की जिम्मेवारी है । धर्म ए्वं उसके प्रतीकचों पर श्व्वाद खड़े करने ्वाले राजनेता राजनीतिक धर्म का अनादर करते हैं , ऐसे लोग ही भारत की संसकृशत के प्रतीक ग्ं् रामचरित मानस की गरिमा ए्वं गौर्व को धु ंधलाने के लिये ऐसे घश्टया ए्वं अराजक कदम उठाते हैं । उनहें ज्ञात होना चाहिए कि रामचरित मानस धर्म ही नहीं , जी्वन है , स्वभा्व है , स्बल है , करूणा है , दया है , शांति है , अहिंसा है । ऐसे महान ग्ं् को राजनीति बना एक रिासदी है । जो मान्वीय है , उसको जाति बना दिया । इस तरह का तुष्टिकरण ह्टे और उनमादी सोच घ्टे । यदि स्व्थधर्म समभा्व की भा्वना को पुनः प्रशतलषठत नहीं किया तो यह हम सबका दुर्भागय होगा । �
iQjojh 2023 13