bfrgkl
भारत अग्णी था । चाहे ्वह शिक्ा का आयाम हको या फिर शरीर रचना का हको , मपसत्क का आयाम हको , कृषि का हको , राजस्व का हको या फिर प्शासन का हको । सभी राजनीतिक , सामाजिक , आर्थिक और यहाँ तक कि त्वदेशनीति संबंधित ज्ञान भी भारत में था । श्ीकृ्ण त्वदेशनीति पढ़ते थे । चंद्रगुप्त मौर्य ने त्वदेशनीति पढ़ी थी , श्ीराम कको त्वदेशनीति पता थी ।
वर्तमान में परिलक्षित नहीं प्राचीन मान्ताएं अब बात यह है कि के्वि यह कहने से कि
भारत काफी महान था , मतुझ जैसे िकोग संतुष्ट नहीं हको सकते । हमने पचास-सौ ग्ंथ और 15- 20 त्वरय गिन्वा दिये कि यह सब कुछ भारत में था , परंततु यह बात अधूरी है । चूँकि प्ाचीन महानता ्वत्समान में पररितक्त नहीं हको रही और इसलिए भविष्य में ्वह हमारे साथ नहीं जाएगी । प्ाचीन मानयताएं आज से दको-चार सौ ्वर्ष पहले ्वत्समान में पररितक्त नहीं हतुईं और इसलिए उस ्वक्त का ्वत्समान हमारे साथ नहीं आया , ्वहीं
छूट गया । हमारे पास आयतु्वदेद में इतना ज्ञान था , आज कहाँ है ? हमारे पास आड पाइथागकोरस प्मेय है , परंततु हमारी अपनी मय दान्व का प्मेय कहाँ है , बकोिायन का प्मेय का कहाँ है ? मेरा मानना है कि जको भारतीय ज्ञान संपदा है , उसका ्वैज्ञानिक त्वशिेरण किए जाने की आ्वशयकता है । हमें भारत के शासत्रों कको धार्मिक शासत्र कहना बंद करना हकोगा । जैसे ही हम धर्म की बात करते हैं , मन पूजा-अर्चना की ओर चला जाता है जिससे शासत्रों में छिपा त्वज्ञान कहीं पीछे छूट जाएगा । भा्वकोपक्त तको आ जाएगी , लेकिन उसका भा्व गायब हको जाएगा । हम उसकी भक्ति तको
करेंगे , परंततु उस भक्ति का आधार हमसे छूट जाएगा । हमें अपने शासत्रों कको ज्ञान-त्वज्ञान की पतुसतकों की तरह देखना हकोगा । हमें अपनी चीजों कको त्वज्ञान की दमृप्ट से देखने का स्वभा्व त्वकसित करना हकोगा ।
धर्म और आध्ात्म में निहित विज्ञान मैं भकोजपतुर गया था । ्वहाँ राजा भकोज द्ारा
बन्वाया गया एक मंदिर है । 18 फीट ऊँचा तश्वतिंग है ्वहाँ । ्वहाँ मैंने पूजा की और धयान लगाया , जको कि हमें करना ही चाहिए । परंततु मैंने ्वहाँ निहित त्वज्ञान कको भी जानने का प्यास किया । पतथर का बना तश्वतिंग आज भी चमक रहा है , जबकि ्वह हजार ्वर्ष से अधिक पतुराना था । कैसे चमक रहा है । आज हम मकानों कको चमकाने के लिए पेंट लगाते हैं और ्वह पेंट 3-4 ्वर्ष में फीका पड़ जाता है । फिर ्वह तश्वतिंग हजार ्वर्ष से कैसे चमक रहा है ? पूछताछ करने पर पता चला कि उस पर एक प्कार का लेप चढ़ाया हतुआ है । रकोचने की बात यह है कि हमें आज से हजार ्वर्ष पहले ्वह कला आती थी जिसमें पतथर पर ऐसी परत चढ़ाई जा सकती थी , जको हजारों ्वर्ष तक उसे चमकीला बनाए रखे । आज उस कला का पता चले तको उसका कितना लाभ हमें हको सकता है ? इसी प्कार अपने यहाँ िकोहे पर ऐसी परत चढ़ाई जाती थी कि उस पर जंग नहीं लगता था । आज ्वह तकनीक हमारे उद्यकोग जगत कको मिल जाए तको रकोतचए क्या हको सकता है ? जंगरकोिक कहने की आ्वशयकता ही समा्त हको जाएगी । भारत का िकोहा है , तको जंग नहीं लगेगा , यह त्वश्वास दतुतनया के मन में जम जाएगा । त्वश्वगतुरु कहने की पहल ऐसे हकोती है ।
प्रशासनिक व राजनीतिक सिदांतों को समझना जरूरी यदि हम राजनीतिक सिदांतों की बात करें
तको हमारे यहाँ रामराजय की संकलपना त्वकसित हतुई है । रामराजय की बात करते ही एक भा्व मन में आता है कि ऐसा राजय जहाँ ककोई दतुखी नहीं , सब रतुखी हकोते थे । परंततु ऐसा तको था नहीं । रामायण कको यदि हम पढ़ें तको उसमें दतुखी और बहतुत दतुखी िकोग भी हैं । ्वहाँ उन्नति भी है और अशांति भी है । श्ीराम यह सब कैसे संभालते हैं ? यदि हम उनके राजनीतिक सिदांतों कको समझ लें तको हमारी आज की बहतुत सारी परेशानियाँ दूर हको सकती हैं । श्ी राम राजा भरत कको कहते हैं कि पतुरकोतहतों का धयान रखना कि
fnlacj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 49