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उनके पास यज्ञ की सामग्ी कभी कम न पड़े और यह भी धयान रखना कि ्वे नियमित रूप से यज्ञ कर रहे हों । ्वह यज्ञ भग्वान की प्ाप्त के लिए नहीं किया जा रहा है , ्वह किया जा रहा है पया्स्वरण की शतुदता के लिए । तको पया्स्वरण की चिंता राजय कर रहा है । श्ीराम के समय में ककोरागार है , अधि्वक्ता हैं , सेनाएं हैं । लेकिन हमारे श्ीराम मंदिरों में बंद हैं । हमारे पास उनकी पूजा करने के लिए 5 , 11 , 51 दीपक रामन्वमी तयौहार आदि तको हैं , परंततु उनके त्वचारको पर चिंतन करने की प्तकया नहीं है । श्ीराम की पूजा हमें करनी चाहिए . आखिर हम उनकी पूजा नहीं करेंगे तको किनकी करेंगे , परंततु उनके
प्शासनिक सिदांतों पर भी हमें धयान देना चाहिए ।
अन्तोदय थी शीराम के प्रशासन की विशेषता
श्ीराम के प्शासन की त्वशेषता क्या थी ? अनतयकोदय । एक सामानय से िकोबी की बात कको भी सम्राट रतुनता था । आज ्वह व्यवसथा क्यों नहीं लागू हको सकती ? आज रड़कों पर धरने प्दर्शन हको रहे हैं । उनमें त्वद्रकोह और अरतुरक्ा
की भा्वना उतपन्न हकोती है और उससे राजय व्यवसथा क्ीण हकोती है । अगर हमारे शासक जनता में ककोि न पनपने दें , तको यह उस समय की व्यवसथा कको लागू करना ही तको हतुआ । दूसरी बात , राजा या उसके प्तिनिधि ्वेष बदल कर राजय में घूमा करते थे । जिस मकान में प्काश दिखाई देता था , ्वहाँ की बात छिप कर रतुनते थे कि ककोई भूखा तको नहीं रको रहा है । भूखे के लिए भकोजन व्यवसथा करना यह राजय का कर्तवय था हमारे यहाँ । आज जबकि अपने देश में जिममेदार प्शासन है , िकोककलयाणकारी िकोकतंत्र है , यह सिदांत लागू क्यों नहीं ? यह तको हमारी व्यवसथा में तको सहज ही हकोना चाहिए
था । इसके लिए त्विेयक लाना पड़े , यह तको हमारे लिए शर्म की बात हकोनी चाहिए ।
रामायण के राजनीतिक सिदांत भी प्रासंगिक
रामायण के सौ्वें सर्ग में लिखा है कि भरत जब श्ीराम से दंडकारणय में मिलने आए हैं तको श्ीराम उनसे कह रहे हैं कि राजा कको अपरानि में अचछे कपड़े पहन कर राजय की मतुखय रड़कों पर घूमना चाहिए और िकोगों से मिलना चाहिए ।
्वे बात कर रहे हैं कि आपके भीतर का दतुख- क्लेश प्जा कको नहीं दिखे । आपके वयपक्तत्व से प्जा प्भात्वत हको और आप प्जा से बात कर सकें । जब राजा प्जा से सीधे बात करेगा तको बीच के अधिकारी बीच में डंडी नहीं मार सकते । आज का राजा प्जा से सीधे सं्वाद नहीं करते । ्वे के्वि मंच से बात करते हैं । राजा और प्जा में पतुि का काम करते हैं अधिकारीगण , पार्टियों के कार्यकर्ता आदि । ये राजा कको जको समझाते हैं , राजा उस हिसाब से चलता है । यह हमारी व्यवसथा नहीं रही है । हमारे यहाँ प्शासन में जनता से सीधा सं्वाद करना हकोता था , जिसे हमने आितुतनक भारत में नहीं माना । रामायण के सौ्वें सर्ग में और भी बहतुत कुछ है । ककोराधयक् बनाने की यकोगयता क्यको हको , यह तक लिखा है । श्ीराम भरत से कहते हैं कि जहाँ खदानों में खतुदाइयां हकोती हैं , या जको दंड के सथान हैं , जको कारागार हैं , ्वहाँ नियतुक्त किये जाने ्वाले िकोगों पर धयान रखको कि कृत्रिम चरित्र के िकोग ्वहाँ सथान नहीं पाएं । श्ीराम भ्र्टाचार हकोने के बाद नहीं , पहले से रतकय राजा हैं । भ्र्टाचार हकोने से पहले ही निगाह रखने के लिए कह रहे हैं । ्वे कहते हैं कि निगाह रखको कि ककोई पैसे लेकर काम न कर रहा हको । क्या प्ाचीन भारत के इन राजनीतिक सिदांतों कको आज लागू करन की आ्वशयकता नहीं है ?
प्राचीन ज्ञान — विज्ञान के उपयोग से होगी उन्नति
इसी प्कार हमारे यहाँ आयतु्वदेद में जको नियम बताए गए हैं , हमने उनकी उपेक्ा की हतुई है , इससे आज हम बीमार पड़ रहे हैं । हम सूर्य की उपासना इसलिए करते थे क्योंकि सूर्य हमारी अधिकांश बीमारियों कको ठीक करता है । ऐसे और भी ज्ञान-त्वज्ञान के त्वरय हैं जिनका यदि आज उपयकोग किया जाए तको देश का काफी त्वकास हको सकता है , िकोगों का काफी कलयाण हको सकता है । शारीरिक स्वास्थय से लेकर भौतिक उन्नति तक सभी कुछ मिल सकता है और ्वह सब कुछ सामाजिक सद्भाव और प्ाकृतिक पया्स्वरण कको बचाते हतुए । �
50 दलित आं दोलन पत्रिका fnlacj 2021