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लोककल्ाणकारी है प्राचीन भारतीय त्वज्ान

शास्तों को ज्ान-विज्ान की पुस्तकों की तरह देखना होगा भारतीय ज्ान सांपदा के वैज्ानिक विश्ेषण की आवश्यकता

डॉ . पवन सिन्हा

दि मैं ्वत्समान हूँ तको मैं अपने इतिहास का उतपाद हूँ । इसका अर्थ है कि मेरा इतिहास ही मतुझे बता रहा है कि आज मैं क्या हूँ और उसी इतिहास के आधार पर मैं यह तय करूँगा कि मैं कल क्या बनतुंगा । हर मनुष्य के माता-पिता , दादा-दादी , नाना-नानी , जिनके बारे में ्वह जानना चाहता है , ्वह उसके लिए उसका इतिहास हैं । हर मनुष्य की जाति उसका इतिहास बताती है । उसका घर , उसका मकोहलिा एक इतिहास हकोता है । हमें हमेशा यह बताया गया है कि हमारा देश काफी महान था , परंततु ्वह महान क्यों था , यह हमें सप्ट नहीं है । क्या हम मंदिरों के कारण महान थे , क्या हम पूजा-पाठ , रामायण , महाभारत के कारण महान थे ? हमारा देश रकोने की चिडिय़ा था तको कैसे ? क्या मंदिरों में बहतुत रकोना था इसलिए ? इन सभी का गंभीर त्वशिेरण करने की आ्वशयकता है । इसके बिना हम भारत कको समझ नहीं सकते ।

हर क्षेत्र में विशेषज्ञता के कारण विश्गुरु था भारत
हम कहते हैं कि भारत पहले त्वश्वगतुरु था । भारत त्वश्वगतुरु किसी एक क्ेत्र में त्वशेषज्ञता के कारण नहीं था । भारत यदि त्वश्वगतुरु था तको रसायनों के क्ेत्र में भी त्वश्वगतुरु था , भौतिकी , धाततुकर्म , गणित , रिह्मांि त्वज्ञान , शरीरत्वज्ञान ,
राजय व्यवसथा आदि सभी क्ेत्रों में भारत त्वश्वगतुरु था । भारत में अहिंसा की बातें की गईं , परंततु भारत युद्धविद्या में भी त्वश्वगतुरु था । भारत की बनी ति्वारें दतुतनयाभर के आकर्षण का केंद्र थीं । यहाँ की ति्वारें अरब में जरबे हिंद कहलाती थीं । हम हथियारों के निर्माण में भी सबसे आगे थे । क्या हमने रकोचा है कि आज हम जिस हरी मिर्च कको बड़ी ही सहजता से खाते हैं , उसकी खकोज कैसे हतुई हकोगी ? रकोच कर देखिए । उस
समय हरी मिर्च तको एक जंगली पौधा ही रही हकोगी । उस समय तको और भी पौधे रहे होंगे । िकोगों ने कैसे समझा हकोगा कि इसे खाना चाहिए और इसके खाने से लाभ है । तब आज की भांति प्यकोगशालाएं तको थीं नहीं । आज हमें पता है कि उसमें त्वटामिन सी है , तब कैसे पता चला हकोगा ? इससे पता चलता है कि भारत का प्ाचीन ज्ञान- त्वज्ञान कितना महान रहा हकोगा । मनुष्य के जी्वन के जितने भी आयाम हको सकते हैं , उन सभी में
48 दलित आं दोलन पत्रिका fnlacj 2021