fo ' ks " k
पर उसे जको पता चला ्वको ्वाकई में चौंकाने ्वाला था । उससे पहले ही पतुतिस उसके गां्व पहतुंच कर इस बात की सूचना दे चतुकी थी कि राजकन्नी र्वा चार बजे हिरासत से भाग गया ।
पुलिस — प्रशासन की संवेदनहीन कू रता
सेंगई कको इस बात की हैरान थी कि तीन घंटे पहले जको शखर पैरों पर खड़ा हकोने की पसथति में नहीं था ्वको भला हिरासत से कैसे भाग सकता है ? अगले दिन यानी 22 मार्च , 1993 कको मीनरतुरुट्टी पतुतिस सटेशन के इलाके में एक श्व
हतुआ कि पतुतिस डायरी में दर्ज रिपकोट्ड बदल दी गई थी और पतुतिस ने जाली दस्तावेज़ तैयार किए थे । इस केस पर फैसला आने और दकोतरयों कको सजा मिलने में 13 साल का समय लग गया । दकोरी पतुतिसकर्मियों कको आजी्वन कारा्वास और एक िरॉक्टर जिसने पतुतिस के कहने पर झूठी ग्वाही दी थी , कको तीन साल जेल की सज़ा रतुनाई गई । सामानय मतुंबइया फिलमें से त्वपरीत यह फिलम बिना की किसी प्ेम कहानी , रकोमांटिक नाच-गानों और नायकों के असंभ्व से दिखते कारनामों के बिना भारतीय समाज के एक प्तिनिधिक सच कको कह देती है ।
छत नहीं है । पते का उनका ककोई प्माण नहीं है , लिहाज़ा उनके पास राशन कार्ड नहीं है । इसलिए ्वे ्वकोट नहीं डाल सकते । आपकको उनके लिए कुछ करना चाहिए ।” ्वास्तव में दलित-आतद्वासी सिर्फ भौतिक सतर पर ्वंचित नहीं है । पूरी राजय मशीनरी की मानसिकता उनके खिलाफ है । फिलम का बड़े हिसरे में इसी मानसिकता कको उजागर किया गया है । नौकरशाही , पतुतिसिया तंत्र , समाज का अभिजातय हिसरा और एक हद पूरा तंत्र उनके प्ति पूर्वाग्रह से ग्तरत है । फिलम में एक पात्र जको कि नेता है , यहां तक कहता है कि – “ उनहें
बरामद हतुआ जिसके शरीर पर मारपीट के गहरे निशान थे और उसकी पसलियां टूटी हतुई थीं । सेंगई कको अब अपने पति के लिए नयाय चाहिए था और इस मामले में नयाय दिलाने में उनकी मदद की चेन्नई के एक ्वकील जपसटर चंद्रू ने । फिलम में जपसटर चंद्रू का किरदार सूर्या ने निभाया है । उन दिनों जपसटर चंद्रू एक ्वकील थे । उनहोंने सेंगई की पूरी कहानी रतुन कर उसका केस लड़ने के लिए हां कर दी । इसके बाद उनहोंने मद्रास हाईककोट्ड में हेबियस करॉरपस ( बंदी प्तयक्ीकरण ) की रिट याचिका दायर की । बता दें कि इसका इसतेमाल प्शासन की गिरफ़त में मौजूद किसी शखऱ कको अदालत में पेश करने के लिए किया जाता है । काफी उतार चढ़ा्व के बाद आखिरकार जपसटर चंद्रू की जीत हतुई और सेंगई कको नयाय मिल गया । 2006 में मद्रास हाईककोट्ड ने राजकन्नू की मौत के लिए पांच पतुतिसकर्मियों कको दकोरी करार दिया । ये भी साबित
बहुजन वैचारिकी की बुनियादी समझ
फिलम ‘ जय भीम ’ नाम इन अथथों में भी सार्थक है कि ्वह बहतुजन ्वैचारिकी के इस बतुतनयादी समझ कको सथातपत करती है कि भारतीय में अनयाय का मतुखय आधार श्ेणीकम आधारित सामाजिक बंट्वारा है , जिसकी सबसे अंतिम पायदान पर दलित ए्वं आतद्वासी ( एससी-एसटी ) हैं । इस अनयाय का भौतिक और मानसिक दकोनों आधार है । जिस आतद्वासी जनजाति की इस फिलम में कहानी कही गई है , उसके पास न तको ककोई जमीन है , पक्का पता है और ना ही उनका नाम मतदाता सूची में है और न ही राशन कार्ड । इस तथ्य का खतुिासा आतद्वासियों की मदद करने ्वाली तशतक्का और एक नेता के सं्वाद से इस तरह उजागर हकोता है – “ िकोगों के सिर पर रहने की
[ ईरुला जनजाति ] ्वकोट डालने का हक क्यों हकोना चाहिए ? हमें कल इनके आगे ्वकोट के लिए भीख मांगनी हकोगी । हमें ्वयसकों कको तशतक्त करने के बेकार काय्सकम कको बंद करने की ज़रूरत है , ताकि इन बक्वासों पर रकोक लग सके ।” बहरहाल , पेरियार की भूमि तमिलनाडु में बनी फिलम ‘ जय भीम ’ दरअसल ‘ कर्णन ’, ‘ जलीकट्टू ’, ‘ अरतुरन ’ और ‘ काला ’ जैसी फिलमों की ही एक अगली कड़ी है , जको फिलमों के बहतुजन यतुग की धमाकेदार शतुरूआत है और ये फिलमें इस तथ्य कको भी रेखांकित कर रही हैं कि ऐसी फिलमों का एक बहतुत बड़ा देशवयापी बहतुजन दर्शक ्वग्स है । ‘ जय भीम ’ फिलम हर इंसाफ पसंद वयपक्त कको जरूर देखनी चाहिए और उममीद की जानी चाहिए कि दलितों ्व आतद्वासियों के साथ अनयाय ्व उनके उतपीड़न के खिलाफ देश में माहौल बने और जनचेतना का सतर ऊपर उठ सके । �
fnlacj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 47