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‘ जय भीम ’ फिलम , फिलम त्विा के साथ नयाय करती है । सतही सं्वादों , अतिनाटकीय कहानी और अतिमान्वीय नायकत्व या खलनायकत्व कको सथातपत किए बिना ही एक सतय घटना कको रमृजनातमक कलपना के कुछ तत्वों का इसतेमाल करते हतुए किसी समतुदाय , परर्वार वयपक्त या क्ेत्र त्वशेष के सच कको भारतीय समाज का एक प्तिनिधिक सच बना देती है और पूरी भारतीय सामाजिक संरचना , राजय की बतुना्वट , नौकरशाही की काय्सप्णाली , पतुतिसिया तंत्र में संरचनागत तौर पर निहित ्वण्स-जातत्वादी , मेहनतकश त्वरकोिी और लैंगिक मानसिकता तथा इसे जनित हिंसा कको उजागर करती है । यह
फिलम इस संभा्वना कको भी तचपनहत करती है कि संत्विान ए्वं कानून का उपयकोग जनशक्ति के माधयम और वयपक्तगत प्यासों से नयाय के लिए किया जा सकता है और किया जाना चाहिए । हम तब तक हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे रह सकते , जब तक पूरी व्यवसथा में कांतिकारी बदला्व न आ जाए । कांतिकारी बदला्व के नाम पर नयाय के पक् में ततकाि खड़े हकोने के दायित्व से बचना एक तरह का अ्वरर्वाद है , जिसमें तथाकथित प्गतिशील मधयमवर्गीय वयपक्त खतरों ए्वं कुर्बानियों से खतुद के बचा्व का रासता निकाल लेता है । ‘ जय भीम ’ फिलम जहां सामूहिक सतर , बड़े सतर के आमूल-चूल बदला्व
की जरूरत की ओर इशारा करती है , ्वहीं नयाय के पक्िर हर वयपक्त कको इस बात के लिए प्ेरित करती है कि ्वह ‘ जय भीम ’ फिलम के मतुखय नायक चंद्रू एिको्वकोकेट ( सूर्या ), तशतक्का मैत्रेया और ईमानदार पतुतिस अधिकारी ( प्काश राज ) आदि की तरह नयाय के पक् में पूरी तरह खड़ा हको और इससे जुड़े जकोतखम उठाए । फिलम के ये मधयमवर्गीय बतुतदजी्वी चरित्र िरॉ . आंबेडकर के इस त्वचार कको चरितार्थ करते हैं कि बतुतदजी्वी का मतुखय कार्य नयाय के पक् में खड़े हकोना और अनयाय के शिकार समतुदाय ए्वं वयपक्त की अपनी पूरी क्मता के साथ पैर्वी करना है । इतना ही नहीं , इस फिलम के दको केंद्रीय पात्र आतद्वासी ईरुला जनजाति के दंपतत् सेंगई और राजकन्नू त्वपरीत पररपसथयों के सामने समर्पण नहीं करते हैं , ्वे अपनी जिंदगी कको बेहतर बनाने और अपने बच्ों की जिंदगी कको खूबसूरत बनाने और उनहें तशतक्त करने का सपना देखते हैं और उसे चरितार्थ करने की जी-जान से ककोतशश करते हैं । राजकन्नू अपनी पत्नी सेंगई के लिए पक्का मकान बनाने के सपने के साथ ईंट भट्टे पर ईंट पाथने की मजदूरी करने जाता है । पतुतिस द्ारा टार्चर में राजकन्नू की हतया के बाद भी उसकी गभ्स्वती पत्नी सारे पतुतिसिया दमन और भय का सामना करते हतुए और व्यवसथा से टकराते हतुए राजकन्नू के लिए नयाय हासिल करने तथा उसके हतयारों कको दंड दिलाने के लिए संघर्ष करती है और सफल भी हकोती है ।
दमित वर्ग के विमर्श को नया आयाम
' जय भीम ' में दिखाया गया आतद्वासी दंपतत् का यह संघर्ष इस आंबेडकर्वादी सं्वेदना ए्वं चेतना की अभिवयपक्त करता है कि हर त्वपरीत पररपसथति में भी अपने लिए और औरों के लिए समाज ए्वं जिंदगी कको बेहतर बनाने के लिए संघर्ष जारी रखना चाहिए । यह आंबेडकर्वादी चेतना का एक महत्वपूर्ण तत्व है । स्वयं आंबेडकर का जी्वन इसका सबूत प्स्तुत करता है कि कैसे त्वपरीत ए्वं असहनीय सी दिखती पररपसथति में एक वयपक्त अपने जजबे ए्वं संकलप
fnlacj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 45