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कई यतु्वा तफलम निर्माता दलितों के तखिाफ दमन की कहानियों कको तफलमों के ज़रिए पेश कर रहे हैं । तफलम इतिहासकार एस थियकोिकोर भासकरन इस बारे में बताते हैं , " 1991 में बाबासाहब आंबेडकर की जनमशती मनाने के बाद से तमिलनाडु में दलित आंदकोिन लगातार ज़कोर पकड़ रहा है ।" भासकरन कहते हैं , " 20्वीं सदी के भूले हतुए दलित त्वचारकों कको अतीत से लेकर आया गया । पिछले दशक में कई लेखकों ने सिनेमा के क्ेत्र में अपने कदम रखे और कई तफलमें बनाईं , लेकिन उनहोंने प्चलित चीज़ों जैसे गाने , मारधाड़ और मेिकोड्रामा का इसतेमाल
किया ।"
अं तर्राष्ट्रीय स्तर का सि्षशेष् सिनेमा
अब दलित अफरानों कको अनय भारतीय भाषाओं में स्वतंत्र या हिंदी तफलमों में भी जगह मिल रही है । इनमें ' अनहे गकोरहे दा दान ' ( पंजाबी ) जैसी तफलमें हैं , जिसमें दलित सिखों की ज़िंदगी कको दिखाया गया है । मसान ( हिंदी ) में शमशान में लाश जलाने ्वाले परर्वार के एक िड़के और उच् जाति की एक िड़की के बीच का रकोमांस दिखाया गया । फैंड्री और सैराट ( दकोनों
मराठी ) भी ऐसी ही तफलम हैं । इसका तनददेशन दलित जाति के नागराज मंजतुिे ने किया है । फैंड्री एक यतु्वा िड़के की कहानी है । उसका परर्वार गां्व में सूअर पकड़ता है । उसे उच् जाति की एक िड़की से एकतरफा ्यार हकोता है । सैराट एक अंतरजातीय रकोमांटिक तफलम है जको बरॉक्र ऑतफर पर काफी रफि रही । इस सूची में तमिल में बनी पेबलर ( कूझंगल ) भी है । यह 2022 के ऑसकर अ्वरॉि्ड के लिए र्व्सश्े्ठ अंतररा्ट्ीय तफलम की श्ेणी में भारत से भेजी गई आधिकारिक तफलम है ।
कहानी के के न्द्र में दलित
38 दलित आं दोलन पत्रिका fnlacj 2021