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अब मतुखयिारा के तमिल सिनेमा में ऐसे कई तफलमकार हैं , जिनके नायक दलित हैं जको अब पहले से चले आ रहे भेदभा्व के तखिाफ और अपने अधिकारों के लिए िड़ रहे हैं । जब ककोई कानूनी रासता उनकी पीड़ा खतम नहीं कर पाता तको ्वे शारीरिक रूप से िड़ने कको तैयार रहते हैं । ऐसे तनददेशकों में पतुराने तफलम निर्माता ्वेतट्मारन भी हैं । उनहोंने पड़ोसी राजय आंध्र प्देश में तमिल प्रवासियों की दतुद्सशा पर 2015 में त्वरारनई तफलम बनाई । उनहोंने दलितों के नरसंहार पर अरतुरन बनाई । तनददेशक मारी सेल्वराज और पा रंजीत ने ऐसी कहानियों पर
तफलमें बनाईं , जिसके मतुखय किरदार दलित हैं । दलित तफलमकार रंजीत ने , जिनहें अक्सर तमिल तफलम जगत का सपाइक ली कहा जाता है , एक नयूज़ ्वेबसाइट कको 2020 में दिए एक साक्ातकार में पहले की तमिल तफलमों के बारे में बताया , " दलित पात्रों कको जैसे दिखाया जाता था ्वको दर्दनाक था । या तको उनकी चर्चा ही नहीं हकोती थी या कहानी में उनके शामिल हकोने भर कको ही ' कांतिकारी ' मान लिया जाता था ।" रंजीत ने बताया था , " इस बारे में , मतुझे ये रकोचना था कि मेरी कहानियां क्या कह सकती हैं । मैं दिखाना चाहता था कि मेरी संसकृति ही भेदभा्व और हिंसा पर आधारित रही है ... और आज दलित किरदारों कको लिखते ्वक़त तनददेशक ज़़यादा जागरूक रहते हैं ।"
दलित चेतना का हो रहा विस्तार
रंजीत ने तनददेशक मारी सेल्वराज की पहली तफलम पेरियारम पेरुमल कको प्रोड्ूर किया । यह तफलम एक कार्ड जिस पर लिखा हकोता है " जाति और धर्म मान्वता के तखिाफ हैं " से शतुरू हकोती है । इस तफलम का नायक बाबा साहब आंबेडकर की तरह ही ्वकील बनना चाहता है । इस तफलम में एक सीन है , जिसमें 1983 के तफलमी गीत पकोरादादा पर कुछ मर्द नाच रहे हैं । इस गाने का संगीत महान संगीतकार और ख़ुद एक दलित इलैयाराजा ने दिया है । गाने के बकोि हैं , " हम आपका सिंहासन संभालेंगे /... जीत के लिए हमारी पतुकार रतुनी जाएगी / हमारी रकोशनी इस दतुतनया कको चकाचौंध कर देगी / हम र्व्सहारा हैं तको िड़ेंगे ।" यही गीत सेल्वराज की तफलम कर्णन ( 2021 ) की पृष्ठभूमि में भी बजता है । अब यह ' दलित गीत ' के रूप में जाना जा रहा है ।
सुपरस्ार भी हो रहे आकर्षित और प्रभावित
तमिल सिनेमा के रतुपरसटार रजनीकांत का रंजीत की तफलमों कको हिट करने में बड़ा यकोगदान रहा । रजनीकांत इन तफलमों की कहानियों से
प्भात्वत हकोकर लीड रकोि करने कको राज़ी हतुए । उनहोंने कबाली ( यह मलेशिया के एक तमिल प्रवासी गैंगसटर की कहानी है ) और काला ( यह तफलम एशिया के सबसे बड़े सिम की कहानी है , जहाँ बड़ी तादाद में तमिल प्रवासी रहते हैं ) में काम किया । और नई तफलम सरपट्टा परंबराई में रंजीत ने चेन्नई के दलितों के बीच मतुक्केबाज़ी संसकृति कको खकोजा , जको मकोहममद अली से गहराई से प्भात्वत था । ्वे के्वि उनके खेल से ही नहीं बपलक त्वयतनाम यतुद से लेकर अमेरिका में नसिभेद के तखिाफ उनके संघर्ष से भी प्भात्वत थे ।
दलित चिंतन की धुरी पर नाच रहा सिनेमा
हालांकि कई िकोग ऐसे भी हैं जको मानते हैं कि मौजूदा दौर की फिलमों के सारे दलित किरदार तारीफ के कातबि नहीं हैं । 2019 में आई तफलम ' मादाथी : एन अनफेयरी टेल ' की तनददेशक लीना मणिमेकलई का मानना है कि नए सिनेमा ने ककोई खार बदला्व नहीं किया है । ्वको कहती हैं कि नई तफलमों के नायक , उनकी खातरयतें और कहानी का मूल सब पहले जैसा ही है । ्वको कहती हैं कि महिला किरदारों की भूमिकाएं भी पहले जैसी ही हैं । लेकिन इस बात से ककोई इनकार नहीं कर रहा कि अब दलित चिंतन काफी तेजी से मतुखयिारा की सिनेमा पर हा्वी हको रहा है । हालांकि इस भेड़चाल में ऐसी फिलमें भी बन रही हैं जिसे देखकर ऐसा लगता है मानको पतुरानी बकोतल में इस तरह की नई शराब भरी जा रही है जिसके केनद्र में दलित चिंतन रहता है । तनपशचत तौर पर यह तको कहा ही जा सकता है कि यह दलित समाज की मतुखरता और जागरूकता ही नहीं बपलक एकजतुटता और सशक्तता का भी प्तीक है कि प्बतुद ्वग्स कको केनद्र में रखकर घूमता आ रहा सिनेमा अब दलित चिंतन के कले्वर की ितुरी पर नाचता दिख रहा है । ्वास्तविकता यही है कि तमाम कमियों ्व खामियों के बाद भी दलित चिंतन की ितुरी पर केपनद्रत फिलमों का बनना आ्वशयक भी है और अपेतक्त भी । �
fnlacj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 39