eMag_Dec_2021-DA | Page 37

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दलित जागरूकता को भुना रहा सिने जगत

सर्वहारा वर्ग को कथानक के के न्द्र में रखकर रची जा रहे फिल्ें षिेत्ीय क्सनेमा से शुरू होकर मुख्यधारा की ओर बढ़ रहा दलित विमर्श

सपना कुमाररी

से शिक्ा के क्ेत्र में कम हको रही गैर — बराबरी का असर कहें या रकोशल मीडिया के दौर में अभिवयपक्त की आजादी के नतीजे में सैदांतिक — ्वैचारिक धरातल पर िकोगों की बढ़ रही करीबी और जगरूकता कको इसकी ्वजह बताएं । कारण कुछ भी हको , लेकिन इस सच कको नकारा नहीं जा सकता कि समाज का दमित — दलित ्वग्स अब मतुखर भी हको रहा है और जागरूक भी । नतीजन समाज के हर क्ेत्र में इसका असर भी दिख रहा है । फिर मनकोरंजन के साथ ही समाज की न्ज कको टटकोिती — कुरेदती सिनेमा पर भी र्व्सकालिक अधिकतम दलित जागरूकता का सप्ट प्भा्व दिखना स्वाभात्वक ही है । यही ्वजह है कि दलित चिंतन कको आधार बनाकर रची — बतुनी गई फिलमें बन

भी रही हैं और सफलता के नए कीर्तिमान भी गढ़ रही हैं ।
सफलता का रिकॉर्ड बना रही फिल्ें
इसकी ताजा मिसाल ' जय भीम ' फिलम की ऐतिहासिक सफलता है जिसके बारे में बताया जा रहा है कि तमिल भाषा में बनी इस तफलम कको सिनेमा से जुड़े आँकड़े बताने ्वाली साइट आईएमडीबी पर सबसे बतढ़या रैंकिंग मिली है । इसकी 9.6 की यूजर रेटिंग ने इसे नंबर एक की रैंकिंग पर पहतुँचा दिया है । इस तफलम कको दर्शकों ने भी ' द शरॉशांक रिडेंपशन ' और ' द गरॉिरादर ' जैसे क्लासिक सिनेमा पर तरजीह दी है । हिंदू धर्म की सख़त जाति व्यवसथा में सबसे निचले पायदान पर मौजूद दलितों के तखिाफ हकोने ्वाले
दमन की कहानी बयां कर रही यह फिलम गंभीर भारतीय तफलमों की कड़ी में सबसे नई है । यह हमें बताता है कि देश के छकोटे शहरों और गाँ्वों में हाशिए पर मौजूद िकोगों खारकर दलितों का जी्वन बेहद अतनपशचत है ।
आगे आ रहे युवा निर्माता
भारत की कुल आबादी में दलित करीब 20 फीरदी हैं और कानून हकोने के बा्वजूद उनहें लगातार भेदभा्व और हिंसा का सामना करना पड़ता है । इस तफलम के नाम ' जय भीम ' का मतलब " भीम अमर रहें " हकोता है । यह िकोकतप्य नारा देश के संत्विान निर्माता बाबा साहब भीमरा्व आंबेडकर कको अपना आदर्श मानने ्वाले िकोगों ने दिया है । ' जय भीम ' तमिल सिनेमा में एक नए आंदकोिन का हिसरा है । इसके तहत
fnlacj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 37