eMag_Dec_2021-DA | Page 36

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तथाकथित ए्वं प्ायकोतजत दलित हिन्दुओं की एक समसया है । चूँकि कभी भारत और नेपाल एक रा्ट् के अंतर्गत आने ्वाले ही राजय थे । इसीलिए दलित हिन्दुओं ्वाली समसया भी एक ही ढांचे में है । ऐसे में भारत में दलित उतथान के समपूण्स प्यास नेपाल के लिए भी समतुतचत हैं । नेपाल में लगभग तीस लाख दलित हिनदू समाज के िकोग हैं । यह एक बड़ी संखया है । इतनी बड़ी जनसंखया का समतुतचत त्वकास अति आ्वशयक है । नेपाल के दलित हिन्दुओं के त्वकास का अर्थ है नेपाल का त्वकास और उसकी आतमतनभ्सरता । िरॉ भीम रा्व रामजी आंबेडकर का कहना था कि ्वत्समान समय में हिंदतुसतान के दलितों की पसथति प्ाचीनकाल के शूद्रों , अनतयजों ए्वं चाणिािों से बदतर है क्योंकि कम से कम ्वको अछूत तको नहीं थे । ्वास्तव में हिनदू समाज में तथाकथित निम्न जाति के नाम पर मधय काल में दलितों के जिस ्वग्स कको ततकािीन समाज में उतपन्न किया गया , उस ्वग्स की लमबे समय तक दयनीय पसथति , तिरसकृत जी्वन ए्वं हिनदू समाज में उनके प्ति अस्पृशयता का पूर्वाग्रहयतुक्त सथातपत मानसिकता , िरॉ आंबेडकर के चिंतन कको आज भी सतयातपत
करता है । दलित ्वग्स के साथ अस्पृशयता , उनके दयनीय दशा ए्वं उनके प्ति पूर्वाग्रहयतुक्त सथातपत मानसिकता की समसया के समाधान हेततु गत कई दशकों के अंतराल में जको भी प्यास हतुए , उनके प्तिफल अपेक्ा के अनतुरूप या तको कम थे या मिले ही नहीं । इसका कारण सप्ट था कि सं्वैधानिक अथ्वा सरकारी संरक्ण के रूप में जको भी प्यास हतुए ्वह समाज के मधय आर्थिक , शैक्तणक और राजनीतिक सतर पर सत्ा में दलित समाज की भागीदारी सुनिश्चित कराने की दिशा में ही हतुआ । ्वास्तव में दलित त्वरयक समसया की जड़ आर्थिक , शैक्तणक ए्वं राजनीतिक त्वरयों से आगे सामाजिक व्यवसथा की जड़ में है ।
जब तक सामाजिक स्वरूप में परर्वत्सन नहीं आता , तब तक आर्थिक और राजनीतिक परर्वत्सन का प्यास अपूर्ण , अपया्स्त ए्वं अना्वशयक है । इसलिए हम समझ सकते हैं कि आज तक दलितकोतथान यानी जाति आधारित भेदभा्व की समसया के उनमूिन या समाधान की दिशा में किये गए हमारे प्यास क्यों अपूर्ण , अपया्स्त ए्वं अना्वशयक थे ? समाज में वया्त दलित ्वग्स के लिए प्चलित मानयताओं पर सथातपत मानसिकता में जब तक परर्वत्सन नहीं
हकोता तब तक जाति समसया के समाधान की दिशा में किये जा रहे सभी प्यास तन्रि तरद होंगे ।
िरॉ भीम रा्व राम जी आंबेडकर के त्वचारों के आिकोक में बड़ी सा्विानी से समाज कको उसी दिशा में ले जाने का प्यास किया जाना चाहिए । सामानय वयपक्त की सथातपत मानिसकता में परर्वत्सन करने की दमृप्ट से सर्वप्रथम दलित समाज कको सामाजिक सममान देने के साथ उनके स्वाभिमान की रक्ा की नीति पर काम किया जाना चाहिए । सामाजिक सममान हेततु दलित समाज कको राजयातश्त बिजली , पानी , आ्वास , शौचालय के साथ सफाई की व्यवसथा , तदतुपरांत रतुरक्ा बीमा , पेंशन यकोजना , स्वास्थय रतुरक्ा यकोजना , सशक्त उतपीड़न नियंत्रण कानून इतयातद के माधयम से सरकारों द्ारा उनके स्वाभिमान की रक्ा की दिशा में काम किया जाना आ्वशयक है । यदि िरॉ आंबेडकर जी के त्वचारों पर आधारित इन प्यासों कको ईमानदारी के साथ कार्यान्वित कर दिया जाए तको दलितकोतथान की दिशा में किये जाने ्वाले प्यास अतिमहत्वपूर्ण तरद होंगे ।
( 16 नवंबर , 2021 को काठमांडू संभार्ण से संकलित )
36 दलित आं दोलन पत्रिका fnlacj 2021