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झारखंड में स्ास्थ्य सेवा बदहाल

कोरोना काल में भी भगवान भरोसे आदिवासी

राजय सथापना के 25 ्वर्ष बाद भी स्वास्थय से्वा की लचर झारखंड

पसथति बनी हतुई है । राजय में स्वास्थय की पसथति और आंकड़े बेहद निराशाजनक हैं । जनसंखया स्वास्थय और त्वकास के संकेतक अनय राजयों की ततुिना में कमजकोर
है । स्वसथ समाज के निर्माण के लिये नागरिकों का स्वसथ हकोना जरूरी है । स्वास्थय और त्वकास एक दूसरे के पूरक हैं । आतद्वासी गां्वों में अबतक स्वास्थय से्वा नहीं पहतुंची है , आज भी खटिया में टांगकर मरीज कको असपताल लाया जाता है । ऐसे में कई बार असपताल पहतुंचने से पहले रासते में ही प्रसव पीड़ा से कराह रही गभ्स्वती महिला की मौत भी हको जाती है ।
र में ही प्रसव कराने की
मजबूरी
झारखंड में दलितों और आतद्वासी की बडी आबादी है , जको अमूमन आधारभूत रतुत्विा से ्वंचित हैं । राजय में 28 प्तिशत अनतुरूचित जनजाति और 12 प्तिशत दलित समतुदाय के िकोग रहते हैं । झारखंड की 78 प्तिशत जनसंखया लगभग 32 हजार गा्वों में तन्वास करती है जहां स्वास्थय रतुत्विा का घकोर अभा्व है । राजय में 33 जनजातियां तन्वास करती है , जिनमें संताल , उरां्व बहतुिता में पाये जाते हैं । दलितको की आबादी चतरा , पलामू , गढ्वा और लातेहार जिला में अधिकतम है । इसके अला्वा दलितों की आबादी हजारीबाग , गिरीडीह , धनबाद , बकोकारको और दे्विर जिला में भी काफी अधिक है । राजय में मातमृ ममृत्यु दर अधिक है , प्रसव के 42 दिन के भीतर प्रसव के कारणों से महिला की ममृत्यु के आंकड़े डराने्वाले हैं । पसथति यह है कि गभा्स्वसथा के दौरान महिलाएं प्रसवपू्व्स आ्वशयक स्वास्थय जांच भी नहीं करा पाती हैं । राजय में हकोने्वाले प्रसवों में लगभग 10 में 9 महिलाएं सरकारी स्वास्थय रतुत्विाओं की अनतुपि्िता के कारण घरों में ही बच्े कको जनम देती हैं । दलित और आतद्वासी महिलाओं में एनीमिया यानी खून की कमी बेहद सामानय है । अधिकतर बच्े कुपकोरण के शिकार हैं ।
सूबे में बडी समस्ा है कु पोषण
झारखंड में कुपकोरण सरकार के समक् बड़ी चतुनौती है । राजय में बच्ों में प्तिरक्ण की पसथति बहतुत चिंताजनक है । ग्ामीण क्ेत्रों के आतद्वासी बच्े अधिकतर कुपकोरण के शिकार हकोते हैं । राजय में कुपकोरण से ग्तरत बच्े में त्वकास ,
बतुतद तथा रकोग प्तिरकोिक क्मता की कमी पायी जाती हैं । गंभीर रूप से कुपकोतरत बच्ों में खसरा , निमकोतनया और सांस लेने में परेशानी पायी जाती है । हालांकि आंगनबाडी केनद्रों में सरकार की ओर से व्यवसथा की गयी है , जहां उनहें समतुतचत आहार दिया जाता है लेकिन यह नाकाफी है । कुपकोरण एक गंभीर समसया है जिसके दुष्परिणाम आगे जाकर दूर नहीं किये जा सकते हैं । झारखंड में बच्ों में भी एनीमिया की पसथति चिंताजनक है । महिलाओं और बच्ों में पकोरण की पसथति ठीक नहीं है और कुपकोरण का एक मतुखय कारण खून की कमी का हकोना है । महिलाओं में हिमकोग्लोबिन की मात्रा कम पायी जाती है , इस अ्वसथा कको खून की कमी अथ्वा एनीमिया कहते हैं । गभ्स्वती महिलाएं प्रसव पू्व्स स्वास्थय जांच भी नहीं करा पाती और गरीबी ्व रकोजी — रकोटी के संकट के कारण गभ्स्वती महिलाओं कको न्वें माह तक खेतों में काम करना पड़ता है और ्वे बासी भात खाकर अपना काम चलाती हैं । उनके पति दिहाडी मजदूरी करते हैं , ्वे पकोरणयतुक्त भकोजन कहां से दे पाएंगे । राजय में तीन चौथाई से अधिक प्रसव अरतुरतक्त हकोते हैं , दाई — माई के भरकोरे । झारखंड में महिलाओं का त्व्वाह कम उम्र में हकोने से और कच्ी उम्र में मां बन जाने से उनके स्वास्थय पर बतुरा असर पडता है । राजय में उच् शिशतु ए्वं बाल ममृत्यु दर और मातमृ ममृत्यु दर का यह एक मतुखय कारण है । राजय में निरक्र , निम्न ्व मधय्वगटीय परर्वारों की बहतुतायत है । ग्ामीण क्ेत्रों में शतुद पेयजल उपि्ि नहीं है , ्वे कालाजार सहित कई संकामक रकोगों से ग्तरत हकोते हैं । यानी समग्ता में देखें तको झारखंड जैसे आतद्वासी बहतुि राजय में स्वास्थय की रतुत्विा उपि्िता सुनिश्चित करना बड़ी चतुनौती है जिस पर प्थमिकता , गंभीरता और सं्वेदनशीलता से काम करने की जरूरत है । �
fnlacj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 33