eMag_Dec_2021-DA | Page 32

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थिापना के आधार से भटका झारखंड
कहने कको तको बिहार से झारखंड कको अलग करने का पूरा आंदकोिन इसी बतुतनयाद पर चला कि यहां की ्वन संपदा और खनिज संसाधनों का सथानीय िकोगों कको लाभ नहीं मिल रहा । झारखंड ्वासियों की शिकायत थी कि उसकी संपदा के दम पर ही बिहार का त्वकास हको रहा है और उनके इलाकों कको त्वकास छूकर भी नहीं गतुजर रहा । उसी बात कको बतुतनयाद बनाकर झारखंड कको बिहार से अलग करने का लंबे समय तक आंदकोिन चला और आखिरकार 15 न्वंबर 2001 कको केनद्र की ततकािीन अटल बिहारी ्वाजपेयी सरकार ने अलग झारखंड राजय का सपना साकार कर दिया । लेकिन 21 साल बाद अगर देखें तको अलग राजय के रूप में अपसतत्व में आने के बाद भी झारखंड की समसयाएं जस की तस हैं और तमाम ्वन संसाधन ्व भरपूर खनिज संपदा हकोने के बा्वजूद अब भी यह देश के पिछड़े राजयों में ही गिना जाता है । झारखंड के त्वकास के तमाम सरकारी दा्वों की पकोि सरकार की रिपोर्टें कही खकोि रही हैं जको आधिकारिक तौर पर यह दर्शाता है कि दिसमबर 2016 से 2020 तक झारखंड में भूख से 24 िकोगों की मौत भकोजन की अनतुपि्िता के कारण हतुई है ।
छू कर भी नहीं गुजर रही विकास की बयार
हालांकि यह र्व्सत्वतदत है कि सरकार की गिनती में इस तरह के मामलों कको जितना बताया जाता है उससे कहीं अधिक छिपाया जाता है । लेकिन बताए जाने ्वाले मामलों कको ही देखें तको पता चलता है कि झारखंड के आम िकोगों कको त्वकास की बयार छूकर भी नहीं गतुजर रही है । उदाहरण के तौर पर पपशचम सिहभूम के रकोनूआ प्खंड की बात करें तको यहां से मात्र 3-4 तकिकोमीटर की दूरी पर बसा है 1,800 िकोगों की आबादी ्वाला पोड़ाहाट गां्व जहां कुड़मी , कुमहार , िकोहार सहित आतद्वासी समतुदाय के
हको जनजाति के तकरीबन 500 िकोग रहते हैं । इसी गां्व का एक टकोिा है – भालूमारा जहां आधार कार्ड ्व ्वकोटर कार्ड के अला्वा इंदिरा आ्वास , प्िानमंत्री आ्वास , राशन कार्ड , त्वि्वा पेंशन , स्वास्थय कार्ड , गैस , शौचालय सरीखे सरकारी कलयाण यकोजनाओं से ्वंचितों कको आसानी से देखा जा सकता है । यहां तक कि सरकारी यकोजना के अंतर्गत आतद्वासियों के घर में मतुफत बिजली देने के तहत बिजली का कनेक्शन है और घर में बलब भी लटका है , लेकिन ्वह आजतक कभी जला नहीं , क्योंकि अभी तक इसमें बिजली की र्िाई नहीं दी गई है । पसथति यह है कि धान कटाई के सीजन में आतद्वासियों कको तीन-चार महीने का खाना मिल जाता है लेकिन बाद के दिनों में भतुखमरी की पसथति रहती है । ऊपर से कोढ़ में खाज बनकर ककोरकोना का दौर आ गया है जिसमें दैनिक मजदूरी के लाले पड़े रहते हैं । नतीजन भूख से मौत के मामलों का सामने आना स्वाभात्वक ही है । यही ्वजह है कि सरकारी आंकड़े भी इस बात की तसदीक करते हैं कि 2016 — 20 के दौरान हजारीबाग , सिमडेगा , झरिया , दे्वघर , गढ़वा , गिरिडीह , पाकुड़ , धनबाद , चतरा , जामताड़ा , रामगढ़ , पूर्वी सिंहभूम , गतुमला , दतुमका , लातेहार और बकोकारको तक में भूख से मौतें हतुई हैं ।
मूलनिवासियों के के न्द्र में रखकर बनानी होगी योजनाएं त्वगत वर्षों में झारखंड में भूख से हकोने ्वाली
मौतों की खबरें कई बार रतुतख्सयों में रही हैं । लेकिन इसके कारणों की पड़ताल करके उसका समाधान करने की दिशा में जको प्यास हकोना चाहिए था उसका कहीं अता — पता नहीं है । त्वकास के नाम पर भूमि अधिग्हण भी हको रहा है और बड़े उद्यकोगपतियों के लिए रेड कापदेट भी बिछाया जा रहा है । लेकिन जमीन पर जी्वन — मरण का संघर्ष करने्वाले आम िकोगों की रतुि लेने की किसी कको फुर्सत नहीं है । जबकि जरूरत है कि जमीन पर त्वकास की धारा अंतिम वयपक्त
तक पहतुंचाने की दिशा में काम किया जाए । रकोजगार के साधन यहां के िकोगों के हिसाब से , संसाधनों के हिसाब से उपि्ि कराने होंगे । मतलब यह कि खनिज संपदा और ्वन संपदा आधारित अर्थव्यवसथा चाहिए । महतुआ उद्यकोग चाहिए । औषधीय पौधों पर आधारित उद्यकोग चाहिए । तरह-तरह की जड़ी-बूटियों पर आधारित उद्यकोग चाहिए । पा्वर ्िांट बनने से बड़े उद्यकोगपतियों का त्वकास हकोगा , आतद्वासियों ्व मूितन्वासियों का नहीं । लिहाजा प्ाथमिकता में बदला्व करने की जरूरत है । भूख से मौत रकोकने के लिए छकोटे उद्यकोग लगाने होंगे । ककोयला , िकोहा
और यूरेनियम के खनिज के प्बंधन की जिममेदारी आतद्वासियों ्व मूितन्वासियों कको देनी हकोगी , क्योंकि सारे खनिज उनकी जमीन के नीचे है तको मालिक भी ्वही हों । यदि ऐसा नहीं हकोगा तको भूख से हकोने्वाली मौतों कको रकोका नहीं जा सकता । इसलिए आ्वशयक है कि मूल तन्वासियों कको केनद्र में रखकर यकोजनाएं बनाई जाएं और सरकार यकोजनाओं का लाभ ्वंचित िकोगों तक पहतुंचाने के लिए जिममेदारी और सं्वेदनशीलता से काम किया जाए । �
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