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के बारे में ग्ामीणों कको अ्वगत कराने का दायित्व दिया जाए ताकि रतुत्विा के हिसाब से नहीं बपलक जरूरत के हिसाब से बदला्व लाया जा सके ।
मूलनिवासियों को नहीं मिल रहा अधिकार
आतद्वासी समाज की रीति रर्वाज और उनकी प्ाचीन संसकृति कको संजोंने की जरूरत है । संसद से पारित सथानीय पंचायतों कको अधिकार देने्वाला पेसा कानून कको लागू नहीं किया जाना दतुभा्सगयपूर्ण है । केनद्रीय मंत्री मतुंडा ने प्मतुख आतद्वासी बहतुि राजयों के साथ झारखंड के ग्ामीण त्वकास , आतद्वासी मामले और ्वन मंत्रालय कको आ्वशयक तनददेश दिये
हैं । केनद्रीय ग्ामीण त्वकास मंत्री गिरिराज सिंह ने भी कहा कि आतद्वासी क्ेत्रों के त्वकास के
लिये कई नीतिगत फैसले लिये गये हैं । आतद्वासी समाज ्वनों की रक्ा करते हैं और उनका जी्वन ्वन पर आधारित है । जंगलों में 125 से जयादा किसम की पेड़ पौधे पाये जाते हैं । इसके बा्वजूद झारखंड के आतद्वासी की माली हालात खराब हैं । त्वकास की दौड़ में ्वे पिछड़े हतुए हैं । जंगलों में रहने्वाले आतद्वासी समतुदाय कको ्वनाधिकार पट्टा भी नहीं दिया गया , सिर्फ खानापतुरी की गयी है । राजय में ्वनाधिकार कानून कको सही ढंग से लागू नहीं किया गया है । आतद्वासी जको ्वन क्ेत्र में रह रहे हैं , उनहें उनका अधिकार मिलना चाहिए । आतद्वासी ्वन क्ेत्र में परंपरागत रूप से रहते आ रहे हैं । ्वनाधिकार पट्टा के मिल जाने से
्वे जंगल की रक्ा बेहतर जरिके से कर पाऐंगें ।
संयुक्त वन प्रबंधन के नाम पर ठगे जा रहे आदिवासी
प्तरद त्वद्ान प्रो . बीके राय ने अपने अधययन में पाया कि जहां आतद्वासी बचे हैं , ्वहीं जंगल बचा है । ्वनभूमि पर पट्टा का अधिकार , ्वनकोपज संग्हण का अधिकार और जंगल प्बंधन का अधिकार आतद्वासी कको दिया जाना चाहिए । ्वन मंत्रालय आतद्वासी कको यह अधिकार नहीं देना चाहता । झारखंड जंगल बचाओ आंदकोिन के प्मतुख डा . संजय बरतु मलिक बताते हैं कि राजय में लगातार जंगल घट रहे हैं । ्वे बताते हैं कि राजय में पहला जंगल कानून ्वर्ष 1864 में बना था । ्वनाधिकार कानून लागू कराने के लिये आतद्वासी ने ऑदकोिन किया । ्वनाधिकार कानून कको लागू कराने के लिये यूरकोतपयन यूनियन और त्वश्व बैंक ने गहरी रूची ली । झारखंड के आतद्वासी पर ्वन त्वभाग की ओर से सैकडों केस लादे गये हैं । ्वन त्वभाग का कहना है कि उसे ही ्वनभूमि पर पट्टा मिलेगा जिसका घर जंगलों के अंदर है । आजतक ग्ाम सभा ्वनों की रक्ा करता आया है , लेकिन नियमा्विी में संयतुक्त ्वन प्बंधन श्द डाल दिया गया है । ्वनाधिकार कानून कको लागू कराने के लिये सामाजिक कार्यकर्ता त्वश्वबंितु पूरे झारखंड में प्यास कर रहे हैं । ्वे बताते हैं कि सरकार की मंशा सही नहीं है और अधिकारी काम नहीं करना नहीं चाहते हैं । संयतुक्त ्वन प्बंधन के नाम पर आतद्वासियों कको ठगा जा रहा है , असल में कमयूतनटी ररॉरेसट गर्वंनेस कको लागू किया जाना चाहिए । सामाजिक कार्यकर्ता रतुनील मिंज बताते हैं कि ्वनाधिकार कानून की जानकारी ग्ामीणों कको सरकार देना ही नहीं चाहती और ्वन त्वभाग राजय में ऐसा हकोने नही देना चाहती है । सरकार पया्स्वरण कको बचाने की जिम्मेवारी आतद्वासी समाज पर थकोप रही हैं , यानि ्वह जंगल की रक्ा करे , नये ्वन लगाये और त्वकसित करे , लेकिन ्वन पर उनहें कानूनी हक नहीं दिया जायेगा । मिंज बताते हैं कि झारखंड में अब जंगल लगभग 15 प्तिशत के आसपास ही रह गया है ।
fnlacj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 31