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्वे देश के अलग-अलग भागों में फैली हतुई थीं । उनका र्वा्सतिक महत्वपूर्ण उद्ेशय ; तरिटिश औपतन्वेशिक सरकार द्ारा भूमि , जंगल और आजीत्वका से संबंधित दमनकारी कानूनों कको लागू करने के खिलाफ अपनी जनजातीय पहचान और जी्वन तथा आजीत्वका पर आधारित अपने परंपरागत अधिकारों की रक्ा करना था । आंदकोिन हमेशा समतुदाय से एक प्ेरणादायक नेता के उद्भव के साथ शतुरू हतुआ था ; एक नायक , जिनहें इस सीमा तक सममान दिया जाता था कि समतुदाय , स्वतंत्रता प्ाप्त और उसके बाद तक उनका अनतुररण करना जारी रखता था , भले की समतुदाय अलग-अलग क्ेत्रों में तन्वास कर रहे हों । जनजातीय समतुदायों ने आितुतनक हथियारों कको नहीं अपनाया और अंत तक अपने पारंपरिक हथियारों और तकनीकों के साथ संघर्ष जारी रखे । तरिटिश राज के खिलाफ बड़ी संखया में जनजातीय कांतिकारी आंदकोिन हतुए और इनमें कई आतद्वासी शहीद हतुए । शहीदों में से कुछ प्मतुख नाम हैं - तिलका मांझी , टिकेंद्रजीत सिंह , ्वीर रतुरेंद्र साई , तेलंगा खतड़या , ्वीर नारायण सिंह , सिद्धू और कानहू मतुमू , ्स रूपचंद कं्वर , लक्मण नाइक , रामजी गोंड , अलिूरी सीताराम राजू , ककोमराम भीमा , रमन नामबी , तांतिया भील , गतुंदाितुर , गंजन ककोरकू सिलपूत सिंह , रूपसिंह नायक , भाऊ खरे , चिमनजी जाि्व , नाना दरबारे , काजया नायक और गकोत्वंद गतुरु आदि ।
भगवान विरसा मुंडा : करिश्ाई जनजातीय नेता
जनजातीय शहीदों में से सबसे करिशमाई बिरसा मतुंडा थे , जको ्वत्समान झारखंड के मतुंडा समतुदाय के एक यतु्वा आतद्वासी थे । उनहोंने एक मजबूत प्तिरकोि का आधार तैयार किया , जिसने देश के साथी जनजातीय िकोगों कको औपतन्वेशिक शासन के खिलाफ लगातार िड़ने के लिए प्ेरित किया । बिरसा मतुंडा सही अथथों में एक स्वतंत्रता सेनानी थे , जिनहोंने तरिटिश औपतन्वेशिक सरकार की शकोरणकारी व्यवसथा के खिलाफ बहादतुरी से संघर्ष किया और एक किं्वदंती नायक ( लीजेंड ) बन गए । बिरसा ने जनजातीय
समतुदायों के तरिटिश दमन के खिलाफ आंदकोिन कको ताकत दी । उनहोंने जनजातियों के बीच " उलगतुिान " ( त्वद्रकोह ) का आह्ान करते हतुए आतद्वासी आंदकोिन कको संचालित किया और इसका नेतमृत्व किया । यतु्वा बिरसा जनजातीय समाज में रतुिार भी करना चाहते थे और उनहोंने उनसे नशा , अंित्वश्वास और जादू-टकोना में त्वश्वास नहीं करने का आग्ह किया और प्ाथ्सना के महत्व , भग्वान में त्वश्वास रखने ए्वं आचार संहिता का पालन करने पर जकोर दिया । उनहोंने जनजातीय समतुदाय के िकोगों कको अपनी सांसकृतिक जड़ों कको जानने और एकता का पालन करने के लिए प्रोतरातहत किया । ्वे इतने करिशमाई जनजातीय नेता थे कि जनजातीय समतुदाय उनहें ' भग्वान ' कहकर बतुिाते थे ।
जनजातीय समुदायों को मिल रहा सम्ान
हमारे प्िानमंत्री ने हमेशा जनजातीय समतुदायों के बहतुमूलय यकोगदानों , त्वशेष रूप से भारतीय स्वतंत्रता संग्ाम के दौरान उनके
बलिदानों , पर जकोर दिया है । प्िानमंत्री ने 15 अगसत 2016 कको स्वतंत्रता तद्वर के अपने भाषण में भारत के स्वतंत्रता संग्ाम में जनजातीय समतुदाय के स्वतंत्रता सेनानियों द्ारा निभाई गई भूमिका पर बल देते हतुए एक घकोरणा की थी , जिसमें जनजातीय समतुदाय के बहादतुर स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति में देश के त्वतभन्न हिसरों में सथायी समर्पित संग्हालयों के निर्माण की परिकलपना की गई थी ताकि आने ्वाली पीतढ़यां देश के लिए उनके बलिदान के बारे में जान सकें । इसी घकोरणा का अनतुररण करते हतुए , जनजातीय कार्य मंत्रालय देश के त्वतभन्न सथानों पर राजय सरकारों के सहयकोग से जनजातीय समतुदाय के स्वतंत्रता सेनानियों से संबंधित संग्हालयों का निर्माण कर रहा है । ये संग्हालय त्वतभन्न राजयों और क्ेत्रों के जनजातीय समतुदाय के स्वतंत्रता सेनानियों की यादों कको संजकोए रखेंगे । इस किसम का सबसे पहले बनकर तैयार हकोने ्वाला संग्हालय रांची का बिरसा मतुंडा स्वतंत्रता सेनानी संग्हालय है , जिसका उदघाटन इस अ्वरर पर प्िानमंत्री द्ारा किया जा रहा है ।
14 दलित आं दोलन पत्रिका fnlacj 2021