eMag_Dec_2021-DA | Page 12

doj LVksjh पुंज का परि प्रियंका के नाम सियासी समीकरण के लिए दलित त्वमर्श

बलबरीर पुंज
आदरणरीय बहन वरियंका जरी ,
पिछले दिनों आप उत्र प्देश के आगरा पसथत सफाईकमटी अरुण ्वापलमकी के घर सं्वेदना प्कट करने गईं । इसके लिए आपकको साितु्वाद । दलित अतयाचार की निंदा जितनी भी की जाए , ्वह कम है । सभय समाज का कर्तवय है कि ्वह ऐसे पीतड़त परर्वारों का साथ दे । आगरा की घटना के अनतुरार , अरुण पर 25 लाख रुपये चकोरी का आरकोप लगा था , जिसकी मौत उत्र प्देश पतुतिस की हिरासत में हको गई ।
आपकी आगरा यात्रा दलित-उतपीड़न के आककोश से जनित है या फिर त्वशतुद राजनीति से प्ेरित ? यह संदेह इसलिए उठ रहा है , क्योंकि आगरा की दतुखद घटना से पहले 15 अक्तूबर कको दिलिी-हरियाणा की सिंघतु सीमा पर एक दलित मजदूर लखबीर सिंह की निहंग सिखों ने सरेआम न के्वि नमृशंस हतया कर दी , अपिततु उसके श्व कको क्त-विक्षत करके किसान आंदकोिन के मंच के पास लटका दिया था । लखबीर पर आरकोप है कि उसने बेअदबी की थी । क्या दलित लखबीर के परर्वार कको आपने या आपकी पाटटी के प्तिनिधि ने सांत्वना दी ?
बीते दिनों कशमीर में जिहादियों ने जिन निरपराधों कको तचतनित करके और गकोिी मारकर मौत के घाट उतार दिया , उसमें से एक बिहार तन्वासी दलित ्वीरेंद्र पार्वान भी था । आर्थिक तंगी के कारण परिजनों ने ्वीरेंद्र का अंतिम संसकार भागलपतुर पसथत गां्व के बजाय श्ीनगर में कर दिया । मजहब के नाम पर हिंसा के शिकार हतुए ्वीरेंद्र के परिजनों का दर्द बांटने क्या आप
या आपकी पाटटी के नेता श्ीनगर या फिर भागलपतुर गए ?
तप्यंका जी ,
भले ही यह खतुिा पत्र आपकको संबकोतित है , किंततु यह चिट्ी उस ्वग्स के लिए भी है , जको स्वयं कको ्वाम-उदार्वादी और सेक्यूलर कहलाना पसंद करता है । क्या यह सच नहीं है कि यह ्वग्स अक्सर अपराध / हिंसा का संज्ञान पीतड़त- आरकोपी के मजहब , जाति और क्ेत्र देखकर लेता है ? इस समूह ने जन्वरी , 2016 के रकोतहत ्वेमतुिा आतमहतया मामले कको ्वैश्विक बना दिया था , ्वह भी तब , जब रकोतहत दलित था ही नहीं ।
उत्र प्देश के लखीमपतुर खीरी में भीड़ द्ारा चार भाजपा कार्यकर्ताओं की हतया कको रड़क- दतुघ्सटना में हतुई किसानों की मौत से जनित आककोश की प्तततकया बताकर नयायकोतचत ठहराया जा रहा है । लेकिन ्वाम-उदार्वादी और सेक्यूलर कुनबा दलित लखबीर की निहंग सिखों द्ारा निर्मम हतया किए जाने पर मौन है , क्योंकि
लखबीर के कातिलों की पहचान / मानयता और संदर्भ ( किसान आंदकोिन ) इन िकोगों के नैरेतट्व के लिए उपयकोगी नहीं था । पकोसट मार्टम के बाद लखबीर का अंतिम संसकार रात के अंधेरे में बिना किसी रीति-रर्वाजों के और ईंधन डालकर कर दिया ।
बकौल मीडिया रिपकोट्ड , राजसथान में इस ्वर्ष सितंबर तक अनतुरूचित जाति के 11 िकोगों की हतया और बलातकार के 51 मामले सामने आ चतुके है । अकेले अगसत में ही हतया के आठ और दुष्कर्म के 49 मामले दर्ज किए गए थे । इनहीं दलित त्वरकोिी घटनाओं की शंखला में अि्वर तन्वासी दलित यकोगेश जाट्व की मुस्लिम भीड़ द्ारा पिटाई में मौत हको गई थी । इन मामलों में ्वाम-उदार्वादियों द्ारा ककोई प्दर्शन या सांत्वना यात्रा का आयकोजन नहीं हतुआ , क्योंकि यह मामला इनके द्ारा परिभाषित सेक्यूलर्वाद पर कुठाराघात नहीं था । ऐसा ही दकोहरा दमृप्टककोण इस ्वग्स का पपशचम बंगाल के हिंसक घटनाकम में भी दिखता है , जहां हतुई राजनीतिक हिंसा का दंश दलितों ने सबसे अधिक झेला था । उनका अपराध के्वि यह था कि उनहोंने चतुना्व में त्वरकोिी दल का समर्थन किया था ।
दलित हमारे समाज का अभिन्न अंग है । शर्म की बात है कि सदियों से उन पर अतयाचार हकोते रहे हैं । उससे भी अधिक शर्मनाक बात यह है कि एक त्वशेष राजनीतिक ्वग्स ऐसी प्ताड़नाओं कको रकोकने के सथान पर उनका उपयकोग सत्ा प्ाप्त हेततु सीढ़ी के रूप में कर रहा है । क्या इस पृष्ठभूमि में स्वसथ और समरसतापूर्ण समाज की कलपना संभ्व है ? �
12 दलित आं दोलन पत्रिका fnlacj 2021