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नहीं , अपनी जमीनों के अधिकारों के लिये अदालत से नयाय मांगने वाले आदिवासियों के पक्ष में नयायालयों ने भी बेबस और विवादित निर्णय दिये । भारत सरकार के भूमि सुधार समिति ( 2009 ) के अनुसार संबंधित नयायालयों के द्ारा मधयप्रदेश में 90 फीसदी , असम में 75 फीसदी , राज्थाि में 71 फीसदी , उड़ीसा में 70 फीसदी और छत्ीसगढ़ में 53 फीसदी प्रकरणों में आदिवासियों के भूमि अधिकारों के विरुद्ध फैसले सुनाये गये ( अथवा लंबित रखे गये )। कहना ना होगा- अपनी जमीन तलाशते उन हताश आदिवासियों की निगाहें अब आपकी ओर हैं । आप संविधान सममत ‘ भूमि अधिकार नयायाधिकरण ( तट्र्यूिि )’ के ग्ठि और संचालन को सुनिसशित करते हुए ’ अपने जमीन और जमीर ’ की प्रतीक्षा करते लाखों आदिवासियों और वंचितों को नयाय दे सकते हैं ।
विस्ापन की मार से बचाव की दरकार भारत में आजादी के बाद से अनेक विकास
परियोजनाओं के चलते लगभग 85 लाख
( नवीनतम शोधों के अनुसार लगभग 1.1 करोड़ ) आदिवासियों का तव्थापन हुआ है । विडंबना ही है कि जनहित और देश के विकास के खातिर जिस हीराकुंड बाँध , धनबाद के कोयला खदान , ब्तर के लौह अय्क के खदान और मंडला के वनय जीव अभयारणयों से आदिवासियों को खदेड़ा गया वो सदा सर्वदा के लिये गरीबी रेखा से नीचे धकेल दिये गये । आदिवासियों के अपने संसाधनों का जनहित और विकास के नाम पर अधिग्रहण करके देश और शेष समाज तो आगे बढ़ गया लेकिन , वे तव्थातपत और बेदखल आदिवासी लगभग ्थायी रूप से ’ गरीबी रेखा के सीमांतों ’ में धकेल दिये गये । महामहिम , आप का आना - उन लाखों लोगों की आँखों में एक नई रोशनी का जनम है ।
स्ानमीय रोजगार के अवसरों की जरूरत
किसी सुरक्षित आजीविका के अभाव में , आदिवासी समाज आज भी पलायन के लिये अभिशपत है । हर बरस चंबल , सुंदरगढ़ , कोडरमा
और सरगुजा के गुमनाम गांवों से शहरों की ओर पलायन करने वाले लाखों आदिवासी मजदूरों के शोषण की अनगिनत कहानियां संभव है , आपके राष्ट्रपति बनने से बदल जाए । श्रम मंरिािय की नीतियां और भारत सरकार के श्रम कानून अब तक तो लाखों आदिवासी श्रमिकों को एक सममािजनक पारिश्रमिक तक मुहैया करवा पाने में विफल ही रहे हैं । एकता परिषद द्ारा इन श्रमिकों पर किया अधययन ( वर्ष 2020-21 ) दर्शाता है कि आदिवासी मजदूरों का दैनिक वेतन , औसत मजदूरी से लगभग 20 फीसदी कम ही है । आप उन लाखों श्रमिकों को निःसंदेह एक समान और सममािजनक परिश्रमिक दिलाने में ऐतिहासिक भूमिका निभा सकते हैं , ऐसा हम सबका मानना है ।
सख्ती से लागू हो वनाधिकार कानून
आदिवासी समाज के लिये ’ जल जंगल और जमीन ’ का अधिकार कितना महतवपूर्ण है यह कदाचित आपसे बेहतर कोई दूसरा नहीं समझ सकता । वनाधिकार कानून ( 2006 ) लागू हुआ
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