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बने नियम और नीतियां , वाकई में दशकों से किसी भी जमीनी सफलताओं के बिना ही रह गयीं । यहां तक कि विधानसभाओं और संसद में निर्वाचित नुमांइदे भी , आदिवासी हकों के लिये अपनी उपस्थति दर्ज करवाने में लगभग असफल ही रह गये । इसलिये बरसों से ’ नयाय और सममाि ’ के लिये संघर्षरत आदिवासी और वंचित समाज की उममीदों के अब आप ही सववोच्च प्रतिनिधि हैं । हमारा विशवास है कि 75 बरसों के बाद अब तो आपके माधयम से ’ राष्ट्रीय आदिवासी नीति ’ घोषित और पोषित होगी ।
सुशासन के लिए स्वशासन की जरूरत भारत की ्वाधीनता के बाद ’ आदिवासी
्विासन ’ के नाम पर , पांचवीं और छटवीं
अनुसूची क्षेरिों में आदिवासी समाज के अधिकारों को ्थातपत करने के लिये जो वैधानिक प्रावधान सुनिसशित किये गये थे- वो बरसों बाद भी आधे-अधूरे ही रह गये । दुर्भागय ही है कि भारत के किसी भी राजय नें पंचायत ( अनुसूचित क्षेरिों में तव्तार ) अधिनियम 1996 की नियमावली का निर्धारण और क्रियानवयन निष््ठापूर्वक नहीं किया । यही कारण है कि विशेष रूप से पांचवीं अनुसूची के क्षेरि आज- विपन्नता , शोषण , उतपीड़न और हिंसा के केंद्तबंदु बने हुये हैं । भारत के तथाकथित 50 विपन्नतम जिलों में से लगभग 38 जिले पांचवीं अनुसूची क्षेरि में हैं , जहां तमाम संवैधानिक संरक्षण के बावजूद आदिवासियों के अधिकारों का सबसे अधिक उ्िंघन हो रहा है । संविधान के अनुच्छेद 244 ( 1 ) के अंतर्गत इस पांचवीं अनुसूची क्षेरि में
‘ महामहिम ’ आप ही आदिवासियों के अधिकारों की सववोच्च संरक्षक हैं - और ’ आदिवासी ्विासन ’ की उममीदों को आप ही साकार कर सकती हैं ।
जल , जंगल , जममीन पर अधिकार की हो रक्ा
‘ महामहिम ’ - आप शायद जानती ही होंगी कि सातवें दशक में भारत सरकार के माधयम से ’ आदिवासी भूमि ह्तांतरण निषेध अधिनियम ’ लागू किया गया । इस कानून का निहितार्थ था है कि आदिवासियों की भूमि अह्तांतरणीय है - बावजूद इस कानून के आदिवासियों की लाखों एकड़ भूमि का ह्तांतरण किया अथवा बलपूर्वक छीना गया अथवा अधिग्रहण किया गया अथवा आदिवासियों को जमीनों से खदेड़ा गया । यही
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