तफ्म के पो्रर में प्िवी फुले की एक किताब लिए खड़ी दिखती है । निदवेिक नरवाडछे कहते हैं , ‘ दमनकारी जातियां माधयम ( सिनेमा ) की ताकत समझती हैं और अपनी विचारधारा को आगे बढ़ािे के लिए उसका कारगर इ्तेमाल करती हैं । बहुजन उस मोिवे पर उतना कामयाब नहीं हुए हैं .. मैं हमेशा हैरान होता रहा हूं कि कुछ मैसेज देने के लिए सिर्फ आंबेडकर की फोटो ही ्यों दिखाई जाए ? तफ्मों में आंबेडकर , महातमा फुले , शाहू महाराज और शिवाजी महाराज के विचार और दर्शन ्यों न दिखाए जाएं , जब की वे अधिक प्रगतिशील हैं ।’
भारतमीय जाति व्यवस्ा की जटिलता
नरवाडछे सभी समुदायों को आईना दिखाते हैं , दलितों को भी , जो आंबेडकर जयंती मनाने को तो बढ़-चढक़र जुटते हैं लेकिन उनके राष्ट्र- निर्माण संबंधी योगदान और शिक्षा पर उनके
जोर से नावाकिफ रहते हैं । वे मधय जातियों की पुरानी पीढ़ी को भी आईना दिखाते हैं , जो जाति का विष अपने बच्चों में डाल देते हैं । संतया की मां को उसको दलित ब्ती के लडक़ों से मिलने- जुलने से मना करती है । वे आंबेडकर की किताब अपने घर में नहीं देखना चाहतीं और आखिरकार अपने लड़के को घर से बाहर निकाल देती हैं । तफ्म का वह दृशय सबसे खास है , जिसमें संतया अपनी मां से ‘ हू वेयर द शुद्ाज ?’ पढऩे की अपील करता है । नायिका प्िवी का किरदार भी बढ़िया दिखाया गया है । वह काफी पढ़ी-लिखी आंबेडकरवादी है और प्रशासकीय सेवा की तैयारी कर रही है । उसे न सिर्फ समाज सुधारकों और देश निर्माण में उनके योगदान की जानकारी है , बल्क वह सामाजिक नयाय के लिए लडऩे और सुधारकों के बारे में प्रचलित मिथकों को तोडऩे के भी काबिल है ।
मुख्यधारा के सिनेमा को राह
दिखातमी क्षेत्रीय फिल्म
जयंती की पृष््ठभूमि महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेरि है और इस जाति-विरोधी तफ्म में एक अंतरजातीय प्रेम कथा भी है , जिसमें लडक़ी दलित ( बौद्ध ) और लडक़ा ओबीसी है । यह सैराट , मसान , परियेरम पेरुमल और फैंड्ी जैसी तफ्मों में ‘ ऊंची जाति की लडक़ी और दलित लडक़े ’ की प्रेम कथा से भी अधिक ्वागतयोगय बदलाव है । वयावसायिक तफ्मों में ऐतिहासिक साक्यों और किताबों का सामाजिक सौहार्द के लिए कैसे इ्तेमाल किया जा सकता है , इसकी बेहतरीन मिसाल जयंती है । जयंती एक और क्षेरिीय तफ्म है जो मुखयधारा की हिंदी तफ्मों को जाति-विरोधी विषयों को कैसे दिखाया जाए , इसकी राह दिखाती है । ओटीटी पर हिंदी , अंग्रेजी सबटाइटिल में प्रदर्शन के जरिए तफ्म के निर्माता जयंती को समूची भारतीय जनता तक पहुंचना चाहते हैं । इसमें वे कामयाब हों , यह आवशयक भी है और अपेक्षित भी । �
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