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जातियां हिंदुतव के नैरेटिव की ओर आकर्षित हुईं , जबकि दलितों के खिलाफ अतयािार जारी रहे । मंडल आयोग की रिपोर्ट में शामिल कई समुदाय इस तरय से वाकिफ नहीं थे कि यह उनके फायदे के लिए बनाया गया और संविधान का मसविदा तैयार करने में बाबा साहेब आंबेडकर की कड़ी मेहनत का नतीजा है । इसलिए जब मंडल रिपोर्ट आखिरकार आई तो कई लाभाथटी ओबीसी जातियों को कमंडल की राजनीति से जोडऩा आसान था । जयंती इसी टकराव की पृष््ठभूमि में बनाई गई है । लेखक- निदवेिक नरवाडछे ने जाति-विरोधी तफ्मों में परंपरागत दलित पारि के बदले ऋतुराज वानखेडछे को संतया के मुखय किरदार में उतारा , जो संखया-बहुल ओबीसी समुदाय से है । यह साहसी फैसला था । जयंती में भूमिका के लिए ऋतुराज वानखेडछे को मरा्ठी तफ्मफेयर अवार्ड भी मिला है ।
दिलचस्प है जयंतमी का कथानक
संतया ( वानखेडछे ) ्थािीय विधायक
( किशोर कदम ) का अशिक्षित कार्यकर्ता है और मुसलमानों से नफरत करता है । उसे एक पढ़ी-लिखी बौद्ध महिला प्िवी ( तितीक्षा तावडछे ) से पयार हो जाता है , मगर वह तब उसका जाति नहीं जानता है । दबंग और विधायक के लिए बुरे काम करने वाले संतया से प्िवी दूरी बनाये रखती है । लेकिन संतया की जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है , जब एक ओबीसी शिक्षक तथा सामाजिक कार्यकर्ता माली सर ( मिलिंद शिंदे ) उसका परिचय डॉ . आंबेडकर , महातमा फुले और शिवाजी की पु्तकों से कराता है । जाति की सच्चाइयां दिखाने और जाति-नाश के लिए तफ्म का इ्तेमाल करने वाले कु्छेक भारतीय निदवेिकों की अहम सफर में जयंती एक कदम और आगे जाती है । वह नागराज मंजुले , पा रंजीत और नीरज घयवान के काम को आगे बढ़ाती है ।
सिनेमा में फोटो फ्े म और किताबें जाति की सच्चाइयां दिखाने और जाति-नाश
के लिए तफ्म का इ्तेमाल करने वाले कु्छेक भारतीय निदवेिकों जैसे नागराज मंजुले , पा रंजीत और नीरज घयवान के प्रभावी कार्य को आगे बढ़ाते हुए जयंती जाति-विरोधी सिद्धांतों का वयावहारिक पहलू दिखाती है । हाल में कॉलीव सक्रियता के दस साल पूरे करने वाले निदवेिक पा रंजीत ने नयूयॉर्क में 2019 पहली दफा दलित तफ्म फेस्रवल में कहा था , ‘ मैं आंबेडकर की त्वीर तफ्मों में सिर्फ अदालतों या पुलिस थानों की दीवालों पर ही नहीं चाहता , मैं उसे हीरो के घर में देखना चाहता हूं ।’ ये सिर्फ खोखले ि्द नहीं थे , पा रंजीत ने इसे अत्ाकथी , काला , सरपट्ा परमबरै में कर दिखाया । नरवाडछे की जयंती उसी कारवां आगे ले जाती है । वे सिर्फ आंबेडकर की फोटो ही नहीं दिखाते , बल्क दर्शकों को उनकी किताब , उनके विचारों , दर्शन और विचारधारा से भी वाकिफ कराते हैं । पहली दफा हम आंबेडकर की ‘ हू वेयर शुद्ाज ?’, फुले की ‘ गुलामगीरी ’, शाहू महाराज की जीवनी , और गोविंद पनसारे की लोकप्रिय ‘ शिवजी कौन थे ’ किताबों को तफ्म में देखते हैं । दरअसल
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