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दलित — पिछड़े और मुस्लिम पात्ों पर के ख्रित मराठमी फिल्म ' जयंतमी '

मुख्य भूमिका में है डॉ . आं बेडकर और शिवाजी की किताबें जाति-विरोधी ससद्ांतों का व्ावहारिक पहलू दिखाती फिल्म

रवि शिंदे

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मेजन प्राइम वीडियो पर हिंदी और मरा्ठी में रीलिज हुई शैलेष नरवाडछे की मरा्ठी भाषा में बनी तफ्म जयंती देश में जाति-विरोधी तफ्मों में एक मील का पतथर है । आखिर आजादी के पुरे 38 साल बाद पहली बार किसी हिंदी तफ्म में आंबेडकर की त्वीर दिखी थी , पर अब एक पूरी तफ्म उनकी विचारधारा और किताबों को खुलकर प्रदर्शित करती है । इतना ही नहीं शायद पहली दफा किसी एक तफ्म में एससी , एसटी , ओबीसी और मुस्िम पारिों को एक साथ खुलकर इ्तेमाल किया गया है ।
महामारमी के बाद प्रदसशमित पहिमी मराठमी फिल्म
यह तफ्म कोविड — 19 की भयावह लहर के उतार के बाद ओवरसीज में थिएटरों में प्रदर्शित हुई और महामारी के बाद परदे पर दिखने वाली पहली मरा्ठी तफ्म बनी । यह करीब 50 दिनों तक थिएटरों में रही और उसकी आइएमडीबी रेटिंग 8.3 रही है । अमेरिका , कुवैत , ऑस्ट्रेलिया , कनाडा में जितने शो हुए उसमे सिनेमा हॉल खचाखच भरे रहे । नरवाडछे की पहली तफ्म होने के बावजूद जयंती ने सूर्यवंशी और अंतिम जैसे बड़े बजट की बॉलीवुड तफ्मों
से होड़ ली । यह इस मायने में जयंती की बड़ी उपलब्ध है ।
जाति-विरोिमी फिल्म में ओबमीसमी प्रमुख भूमिका में
महाराष्ट्र में ‘ जयंती ’ का मतलब दो महापुरुषों ्रिपति शिवाजी और डॉ . बी . आर . आंबेडकर के जनमतदि की वर्षगां्ठ । लेकिन अ्सर उनके अनुयायियों के बीच दरार पैदा करने की सोची- समझी कोशिशें हुई हैं । रयतेचा राजा ( जनता का राजा ) शिवाजी को महाराष्ट्र और बाकी देश में भी हिंदुतव के प्रतिक की तरह लंबे समय से पेश किया जाता रहा है । इस प्रक्रिया में मधय
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