हेड मा्रर का दूसरा सवाल उछला … ्ठीक है … वह जो सामने शीशम का पेड़ खड़ा है उस पर चढ़ जा और टहनियाँ तोड़कर झाड़ू बना ले । पत्ों वाली झाड़ू बणाना । और पूरे स्कूल ककू ऐसा चमका दे जैसे सीसा । तेरा तो यह खानदानी काम है । जा फटाफट लग जा काम पे ।” इस तिर्कार व अपमानजनक वयवहार के बाद भी हेडमा्रर को जरा भी पछतावा नहीं होता है और वह पूरी निर्लज्जता से ओमप्रकाश वा्मीतक को स्कूल से निकाल देने की और हाथ-पैर तोड़िे की धमकी भी देता है । दलित लेखक और चिनतक मोहनदास नैमिशराय के अनुसार- “ ओमप्रकाश वा्मीतक की आतमकथा जू्ठि से गुज़रना व्तुतः उस समाज से गुज़रना है , जिसमें घृणा भरी है , शोषण नैतिक है , दमन जायज़ है , असमानता ्वीकृत है और अतयािार का अंतहीन सिलसिला है । इन सबको दार्शनिक आधार भी प्रापत है … जू्ठि इस सनातनता की पोल खोलती है । ‘ गर्व ’ को ‘ शर्म ’ में तबदील कर देती है और दार्शनिक आधार के झू्ठछेपन को बेपर्दा कर जाती है ।” अब यह बात तब्कुि ्पष्र हो जाती है
कि दलित समाज में शिक्षा का अभाव सिर्फ उनकी अपनी कमी की वजह से नहीं है । अशिक्षा की वजह से दलित वर्ग में रूतढ़यों और अंधविशवासों का बोलबाला हो गया था जिससे उनका जीवन बदतर होता चला गया जिसकी प्रमुख वजह यह थी कि उनहें अच्ाई और बुराई में , अधिकार और शोषण में कोई फर्क नजर नहीं आता था ।
दलितों की दयनमीय स्थिति का मार्मिक चित्रण
ओमप्रकाश वा्मीतक की आतमकथा ‘ जू्ठि ’ में दलितों की दयनीय स्थति का मार्मिक एवं यथार्थ चिरिण देखने को मिलता है । इसमें सम्त ‘ चूहड़ा ’ जाति की यथार्थ परिस्थतियों का विधिवत चिरिण किया गया है । ओमप्रकाश वा्मीतक ने अपने परिवार एवं दलित समाज के वयवसाय के बारे में लिखा है । सम्त दलित परिवारों के लोग कुछ न कुछ कार्य करते परंतु दो व्त की रोटी का जुगाड़ भी कर पाना नामुमकिन था । भंगी समुदाय के लोगों का कार्य
था- दूसरों के घरों की साफ-सफाई , सड़क व सार्वजनिक शौचालयों की साफ-सफाई , मैला ढोना , बेगार करना । इन लोगों को गाली-गलौज , प्रताड़िा व घृणा का सदैव सामना करना पड़ता था । दलितों पर होने वाले जु्मों पर वा्मीतक जी ने मुखर होकर लिखा है । फसल की कटाई करने पर दलित मजदूर एक किलो से भी कम अनाज मजदूरी के तौर पर पाते थे । बेकार के रूप में कटाई के उपरांत बैलगाड़ी या भैंसों की बुगगी में लगाई , उतराई करनी पड़ती । लेखक के परिवार को भी यह सब कार्य करने पड़ते । लेखक की माँ फसलों की कटाई के साथ-साथ 8-10 घर में साफ-सफाई का कार्य भी करती थीं जिसमें बहन , भाभी , भाई सब बिना मजदूरी उनकी सहायता करते । इस जी-तोड़ मेहनत का मुआवजा केवल कुछ जू्ठि के रूप में ही मिलता , जिसको पाकर परिवार को संतुष्ट होना पड़ता था । अजमेर सिंह काजल के अनुसार , “ काम-काजी दलित समाज आर्थिक बदहाली का शिकार रहा है । यदि इनके श्रम का उचित मू्य दिया जाता तो यह समुदाय भी सममािजनक
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