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ओमप्रकाश वा्मीतक की आतमकथा है । संपूर्ण दलित जीवन की त्वीर उकेरने वाली यह आतमकथा दलित साहितय जगत की अमू्य निधि है । जाति-वयव्था के अंतर्गत निम्न्तरीय समझी जाने वाली भंगी जाति में उनका जनम हुआ । यह ब्ती गाँव की मुखय ब्ती से दूर और बेहद गंदी ब्ती थी । इनकी ब्ती के ही पास लोग शौच कर्म के लिए जाया करते थे । इनकी पूरी बिरादरी को निम्न और तुच् समझा जाता था और इनसे अपमानजनक वयवहार भी किया जाता था । वयव्था इस तरह की थी कि ये लोग नए कपड़छे नहीं पहन सकते थे और न ही जूते-चपपि पहन सकते थे । शिक्षा प्रापत करने में भी खुली छूट नहीं थी । जैसे-जैसे समाज में जागरूकता आने लगी वैसे-वैसे ही इनका परिवार भी पढ़ाई में अभिरुचि लेने लगा । परिणाम्वरूप इनके पिता ने इनका दाखिला स्कूल में करा दिया । जब ये स्कूल जाने लगे तो जातिगत तानों से इनहें अपमानित किया जाने लगा । यहाँ तक दुर्भावना से ग्र्त लोगों ने इनकी पिटाई भी की ताकि ये स्कूल जाना छोड़ दें । इनके अलावा शिक्षकों द्ारा भी इनके साथ भेदभाव और दुवय्यवहार किया जाता था । शिक्षा का अभाव सदियों से दलित वर्ग की एक बहुत बड़ी सम्या रही है । जागृति के अभाव में अ्पृशयता के कारण दलितों का जीवन दो वक़त के भोजन की वयव्था कर पाने के नितमत् को्हू के बैल की तरह शोषण की चपेट में घूमता रहा । ये स्थतियाँ दलित आतमकथा में बखूबी अभिवय्त हुई हैं ।
यथार्थ परिस्थितियों का बेबाक चित्रण
जू्ठि आतमकथा में दलितों की दयनीय स्थति का मार्मिक एवं यथार्थ चिरि देखने को मिलता है । अजमेर सिंह काजल के अनुसार , “ जू्ठि हिंदू समाज वयव्था द्ारा जातियों के अंतिम सोपान पर स्थत चूहड़ा ( जिसे आज वा्मीतक कहा जाने लगा है ) जाति के उतपीड़न- शोषण के साथ-साथ मनोवैज्ातिक रूप से दमन करने के अनेक प्रकरणों से हमारा परिचय
करवाती है । आतमकथा के प्रकरणों को पढ़ते- पढ़ते पा्ठक का मन पसीजने लगता है ।” ओमप्रकाश वा्मीतक ने जू्ठि में सम्त चूहड़ा जाति की यथार्थ परिस्थतियों का बेबाक चिरिण किया है । बरला गाँव में दलित बस्तयों को दूर बसाया जाता था । लेखक का जहाँ बचपन बीता उस परिवेश के भयावाह वातावरण के बारे में लेखक ने बेबाक टिपपणी की है । जू्ठि पूरी शिक्षा पद्धति और शिक्षकों की घिनौनी मानसिकता को पूर्णतया उजागर करती है । शिक्षकों का भयावह रूप इस आतमकथा में उजागर होता है । ओमप्रकाश वा्मीतक को अपने घर में सबसे छोरछे होने की वजह से उनके पिता ने सदैव उनहें जातिगत कायगों से दूर रखा । वह सदैव यही चाहते थे कि उनका पुरि शिक्षा प्रापत कर अपने और अपने परिवार को एक दिशा दे । इसी प्रबल इच्ा से वे ओमप्रकाश वा्मीतक को एक सरकारी स्कूल में दाखिल कर देते हैं परंतु उस विद्ािय में भी जातीय भेदभाव व छुआछूत को मानने वाले जातिवादी मानसिकता के शिक्षक मौजूद थे जो न केवल दलित बच्चों से घृणा करते बल्क उनका शोषण भी करते थे । अजमेर सिंह काजल के अनुसार , “ जू्ठि में दलित विद्ातथ्ययों के प्रति अधयापकों के क्रकूर वयवहारों का उदघारि हुआ है ।” गाँव के स्कूल का वातावरण दलित बच्चों के लिए अतयंत यातनामय था जहाँ स्कूल से बच्चों को भगाने के लिए शिक्षक तरह-तरह के हथकंडछे अपनाते थे । दलित बच्चों को शारीरिक और मानसिक रूप से इतना प्रतातड़त किया जाता ताकि वह दोबारा स्कूल का रुख ही ना करें । अपनी आतमकथा में ओमप्रकाश वा्मीतक लिखते हैं कि , “ शिक्षकों का आदर्श रूप जो मैंने देखा वह अभी तक मेरी ्मृति में मिटा नहीं है । जब भी कोई आदर्श गुरु की बात करता है तो मुझे भी तमाम शिक्षक याद आते हैं जो मां-बहन की गालियाँ देते थे । सुंदर िड़कों के गाल सहलाते थे और उनहें अपने घर बुलाकर उनसे वाहियातपन करते थे ।” यह भी एक प्रमुख कारण रहा है जिसकी वजह से दलित समाज में शिक्षा का तव्तार नहीं हो सका । दलित चिनतक सुभाष
िनद् के अनुसार- “ ओमप्रकाश वा्मीतक ने इस कथित ‘ पहचान के संकट ’ पर ‘ जातिगत ’ हीनता-बोध पर विजय पाई है । उनहोंने योगयता प्रतिभा , संघर्षशीलता से अपनी मानवीय पहचान बनाई , न कि वंशगोरि में सं्कृत निष््ठता का पुट डालकर या ‘ मुखयधारा ’ के अनय किसी पाखणड को अपनी पी्ठ पर लादकर । वा्मीतक ने इस मिथक-भ्रम को तोड़ा कि ‘ निम्न जातियों में प्रतिभा नहीं होती ’, ‘ शिक्षा-ज्ाि से उनका कोई वा्ता नहीं ।”
समाज की शर्मनाक सच्ाई बेपर्दा
ओमप्रकाश वा्मीतक ने अपनी आतमकथा में जातिवाद और कुसतसत मानसिकता के खिलाफ़ प्रतिरोध की आवाज बुलंद की है । अपनी आतमकथा में विद्ािय के हेडमा्रर की मानसिकता को उजागर करते हुए ओमप्रकाश वा्मीतक लिखते हैं , “ एक रोज हेड मा्रर कालीराम ने अपने कमरे में बुलाकर पूछा , ्या नाम है बे तेरा ?” ओमप्रकाश । चूहड़छे का है ?
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