गया । उनहें मंदिर तथा अनय वगगों के मोह्िे में प्रवेश करने से मना किया गया । अनय सामाजिक वगगों के सामने सर उ्ठा कर चलने की मनाही के साथ-साथ ऐसा ना करने पर दंड का प्रावधान किया भी गया ।
अनगिनत सवाल उठातमी आत्मकथाएँ
सामाजिक वयव्था में किस तरह समाज के एक विशाल तह्से को निम्न एवं अपमानजनक स्थति प्रदान की गई ? ्यों उसे शिक्षा के अधिकार से वंचित किया गया ? ्यों उसे मवेशी उ्ठाने , उसकी कटाई करने और उसका मांस खाने पर विवश किया गया ? ्यों सफाई करने और जू्ठा उ्ठाने का काम उसे सौंपा गया ? ्यों अच्छे कपड़े पहनने के अधिकार से वंचित कर कतरन पहनने को बाधय किया गया ? ्यों उनहें संपतत् के अधिकार से वंचित किया गया ? आखिर ्यों उसके श्रम का दिनभर शोषण होने के बाद
भी उसे भरपेट भोजन मय्सर नहीं हुआ ? ्यों उनहें अंधविशवासों और कर्मकांडों में उलझा दिया गया ? ्यों दलित महिलाओं को दोहरी-तिहरी प्रताड़िा का शिकार होना पड़ा ? दलित आतमकथाएँ इस तरह के अनगिनत सवाल उ्ठाती हैं और उनके कारण व कारक तत्वों को भी ढूंढ निकालती हैं । विमल थोरात के ि्दों में , “ दलित जीवन के सरोकारों को समेटती यह आतमकथातमक रचनाएँ भारतीय जाति वयव्था , हिंदू धर्म , जनम-सिद्धांत पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं । दलितों के सामाजिक , आर्थिक , सां्कृतिक शोषण के विरोध में अपनी आवाज बुलंद करते हुए शोषक वर्ग को अंतर् मुखी होकर सोचने के लिए बाधय करती हैं । समाज के एक तह्से को केवल अपमान , अवहेलना , दररद्ता , अभाव , वेदना और पीड़ा भोगने के लिए बाधय करके सदियों तक सुविधाएँ , संपतत् और सत्ा को अपने तह्से में रखने वाले अभिजातय वगगों की शातिर साजिशों को आज उनहीं के सामने खोला जा रहा है ।
धार्मिक , सामाजिक और सां्कृतिक मू्यों की फिर से पड़ताल करने की आवशयकता महसूस कराई जा रही है । मानवता शर्म से डूब जाए ऐसे नीति-धर्म , रीति-रूढ़ियों को बनाने और उनका संवर्धन करने वाली सोच और मानसिकता की चीर-फाड़ है दलित आतमकथनों में अभिवय्त वेदना , पीड़ा और विद्ोह ।” इसी सनदभ्य में शरणकुमार लिंबाले अपनी पु्तक दलित साहितय का सौंदर्यशा्रि में लिखते हैं- “ दलित साहितय में ‘ नकार ’ और ‘ विद्ोह ’ दलितों की वेदना के गर्भ से पैदा हुआ है । यह नकार अथवा विद्ोह अपने ऊपर लादी गई अमानवीय वयव्था के विरुद्ध है ।” ज़ाहिर है कि दलित आतमकथाएँ अमानवीयता के खिलाफ़ पुरज़ोर आवाज़ उ्ठाती हैं ।
दलित साहित्य जगत की अमूल् निधि ‘ जू्ठि ’ सुप्रसिद्ध दलित साहितयकार
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