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‘ जूठन ’ में निहित समाज की विद्ूप तस्वमीर उपेषिा का प्रतिरोध भी हैं दलित आत्मकथाएँ दलित चेतना के निर्माण से साहित्य का विकास

डॉ . अबदुि हासिम

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र्ण-वयव्था भारतीय समाज में प्राचीन काल से ्वीकृत रही है । इसके पी्छे सामाजिक कायगों को विभाजित करने का उद्देशय रहा है । परिवार इनहीं कायगों की वजहों से आगे के दिनों में जाति के नाम से जाना जाने लगा । सामाजिक कार्य इसी
रूप में जातिवाचक बनकर भारत में जातिवाद के फैलने का कारण बना । कार्य करने वालों के प्रति घोर सामाजिक अनयाय करना भारतीय समाज में शुरू हो गया । सामाजिक अनयाय के साथ-साथ इनहें अ्पृशय कहकर घोर अपमानित किया गया । गाँव-शहरों में उनके लिए अलग मोह्िे निर्माण कर के समाज की मुखयधारा
से दूर रखा गया । उनहें सभी अधिकारों से वंचित कर दिया गया । सामाजिक , आर्थिक , राजनीतिक विकास से इनहें दूर रखा गया । उनके मानवीय अधिकार छीनकर उनहें गुलाम समझते हुए नारकीय जीवन जीने के लिए विवश कर दिया गया । चमार , चांडाल , डोम आदि नामों से पुकार कर उनके श्रम का शोषण करना शुरू कर दिया
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