कथित सेक्ुलर वामपंथी कहते है श्ीराम और रामायण काल्पनिक हैं परन्ु रामायण के रचयिता बाल्मीकि इतिहास पुरुष थे और दलित थे , रामायण का एक पात् शम्बर ( शम्बूक ) नामक असुर वास्तविक था और दलित था जिसका वध श्ीराम ने किया था । मतलब चित भी मेरी पट भी मेरी ?
और देवताओं तक को अपने वश में रखते थे । तीनों लोकों के ्वामी होते थे , मानव ्या देवता तक उससे भयभीत रहते थे । फिर वे शुद् अर्थात अछूत , शोषित , पीतड़त , वंचित समूह कैसे हो गए ? वैसे अब ये साबित हो चुका है कि आर्य कोई जाति समूह नहीं था बल्क आर्य प्रततष््ठा सूचक ि्द था और आयगों का आविष्कार अंग्रेजों ने अपने ्वाथ्य सिद्धि के लिए सिर्फ ढाई सौ वर्ष पूर्व किया था । और यह भी प्रमाणित तरय है की ये दानव , असुर किसी अलग प्रजाति समूह के नहीं बल्क ये सब भी हमारी तरह महर्षि कशयप के सनताि थे , जैसे देवता थे । देवता
और असुरों के बीच युद्ध सत्ा संघर्ष था , जाति संघर्ष नहीं । और यह भी की महर्षि कशयप उसी ब्ह्मा के पौरि थे जिसे ये नीच वामपंथी नहीं मानते हैं । और यह की असुर वर्तमान भारतीय भूभाग पर शासन नहीं करते थे और ना ही देवताओं से उनका युद्ध 1500 ई्वी पूर्व हुआ था । ये हजारों — लाखों वर्ष पूर्व की एतिहासिक प्राकृतिक घटना का विवरण है जो पुराणों में मिलता हैं ।
6 . अब देखिये इन कथित से्युिर वामपंथियों की धूर्तता का कुछ और नमूना : ये महातमा बुद्ध और अशोक को मूल निवासी अर्थात
दलित , शूद् अथवा असुर वंशीय , जो समझिए , मानते हैं । परनतु महातमा बुद्ध जिस क्षतरिय कुल में जनम लिए उन क्षतरियों को विदेशी , आक्रमणकारी , शोषक , उतपीड़क आदि बताते हैं । उसी तरह महान अशोक को भी ये मूलनिवासी बताते हैं और शूद्ों को गर्व से अशोक के वंशज बताते हैं , परनतु भारत के सम्राट , विशवतवजेता िनद्गुपत मौर्य जो अशोक का दादा था और मौर्य सम्राजय का कर्ताधर्ता था उसे ये सममाि की नजर से नहीं देखते । मौर्य सम्राजय के शक्त का स्ोत और िनद्गुपत मौर्य तथा अशोक को सम्राट बनाने वाले महान आचार्य चाण्य तो इनके लिए सिर्फ कुटिल ब्ाह्मण मारि हैं जिसे ये घृणा के पारि के आलावा और कुछ नहीं समझते हैं ।
7 . ये कथित से्युिर वामपंथी तो इतने धूर्त हैं कि इस देश के लिए और इस देश की जनता की सुरक्षा के लिए सदैव से मर मिटने का इतिहास रखने वाले क्षतरियों और ब्ाह्मणों को घृणा की दृष्टि से देखते हैं , उनहें आक्रमणकारी , विदेशी , शोषक , उतपीड़क आदि घोषित करते हैं जबकि सिर्फ कुछ सौ बरसों पहले भारत पर आक्रमण करने वाले मुस्िमों और चंद वर्ष पहले अंग्रेजों की गुलामी की उपज ईसाईयों को भी मूल निवासी घोषित करते हैं ।
8 . लोहार , सुनार , जुलाहा , कुमहार , बनिक , तेली , धोबी आदि प्राचीन वयावसायिक वर्ग थे जिनमे से कुछ आज वयावसायिक पतन के कारण वैशय वर्ग से तथाकथित दलित वर्ग में आ गए हैं । जैसे कुमहार को ले लीजिए । सिर्फ कुछ सौ वषगों पूर्व तक कुमहार धनी वयवसायी के रूप में जाना जाता था ्योंकि प्राचीन काल से मिट्ी का बर्तन ही खाने पीने आदि सामानों के लिए उपयोग में आनेवाली आवशयक सामग्री के ये उतपादक थे । ये वामपंथी इतिहासकार इतिहास के कालक्रम का निर्धारण और सभयता का निर्धारण प्राचीन मृदभांडों के आधार पर ही करते हैं । इतनी पहुँच थी इस वयवसाय की , परनतु धातु के बर्तनों के उपयोग में आने के साथ ही इस वयवसाय और फिर इस जाति का पतन प्रारमभ हो गया । आज जबकि दीवाली के दिए और कु्हड़ भी चीन से आयात होने लगे हैं , ये
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