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बेरोजगारी के कगार पर आ खड़े हुए हैं जो कभी धनिक वयावसायिक वर्ग हुआ करते थे । ये ्ठीक वैसे ही है जैसे मोबाईल के आने से वाकमैन , घड़ी आदि कई उपकरण बाजार से बाहर अर्थात दलिताव्था को प्रापत हो गए । नए मोबाईल कमपिी के आने से पुराना नोकिया बाजार से बाहर अर्थात दलित हो गया । जिनकी वयवसाय आजतक चमक रही है वे आजतक दलित नहीं बने हैं जैसे सुनार जबकि अतीत में ये भी उसी वर्ग समूह से थे ।
9 . ये कथित से्युिर वामपंथी मनु्मृति की गलत वयाखया कर हिंदुओं के बीच सामाजिक खाई खड़ी करते हैं जबकि मनु ्मृति जाति आधारित वयव्था नहीं कर्म आधारित वर्ण वयव्था की बात करता है । वैदिक काल में वर्ण वयव्था कर्म आधारित था न की जनम आधारित । इस वयव्था में एक वर्ण के लोग दूसरे में अपने कर्म से ्वतः परिवर्तित हो जाते थे । जैसे विशवातमरि , अग्त , पराशर , परशुराम , दत्ारिेय , बा्मीतक , मतंग आदि जो विभिन्न जातियों से ब्ाह्मण क्षतरिय में परिवर्तित थे । सभयता के विकास के साथ जब आर्थिक क्रियाकलापों में वृद्धि हुई तो आर्थिक क्रियाओं के अनुरूप धोबी , नाई , बुनकर , बनिया , तेली , सोनार , लोहार , कुमभकार आदि कहलाने लगे , परनतु यहाँ भी ये जातिगत नहीं थी । उत्र वैदिक काल के उत्रार्द्ध से वर्ण वयव्था में विकृति आनी शुरू हुई जो महाभारत काल पशिात यानि कलियुग में जनम आधारित हो गयी । मौर्य काल से पूर्व किसी के नाम के साथ सरनेम आपने नहीं देखा होगा । जैसे दशरथ सिंह , राम सिंह , कृष्ण यादव , लव सिसोदिया , कुश कुशवाहा , परशुराम पाण्डेय आदि । मौर्य काल में भी ये शुरुआत मारि था ्योंकि अशोक और बिनदुसार मौर्य की जगह केवल बिनदुसार और अशोक नाम ही मिलता है । वर्ण वयव्था यदि आज पूर्ववत लागू होता तो भारतीय समाजिक वयव्था की दुर्गति होती ही नहीं जो जनम आधारित जाति वयव्था के कारण बर्बाद हो रही है ।
10 . दरअसल इन कथित से्युिर
वामपंथियों का सारा प्रपंच मनु्मृति के कुटिल विशिेषण , जैसा की अभी हाल ही में इतिहासकार इरफाि हबीब ने सच्चाई उजागर किया था , पर आधारित है और एक दो ब्ाह्मण ग्रनथ जैसे शतपथ ब्ाह्मण , एतरेय ब्ाह्मण आदि जिसका हिंदू धर्म से कोई ्पष्र लेना देना नहीं है , उसमे निहित छुआछूत के एक दो उद्धरण को आधार बनाकर दुष्प्रचार करते हैं और नीचता पूर्वक पूरे सनातन धर्म पर ही प्रश्न चिनह खड़ा करते हैं । इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि चंद चांडाल आज भी ब्ाह्मण के भेष में समाज में उपस्थत हैं , परनतु हिंदू समाज आज पूरी तरह उनके विरोध में खड़ा है । बिहार में हाल ही में ऐसे एक पंडछे की जमकर पिटाई पूरी जनता ने की थी । महर्षि मनु वर्णवयव्था के समर्थक थे । लेकिन वे जनम आधारित वर्ण वयव्था के नहीं बल्क कर्म आधरित वर्ण वयव्था के समर्थक थे जो कि मनु्मृति के निम्न शिोकों
से पता चलता है : - मनु्मृति 10:65 शूद्ो ब्ाह्मणात् एति , ब्ाह्मणशिैति शूद्ताम् । क्षतरियात् जातमेवं तु विद्ाद् वैशयात्थैव च ।। अर्थात : गुण , कर्म योगयता के आधार पर ब्ाह्मण शूद् बन जाता है और शूद् ब्ाह्मण । इसी प्रकार क्षतरिय और वैशय भी अपने वर्ण बदल सकते हैं । मनु्मृति 9:335 शरीर और मन से शुद्ध-पतवरि रहने वाला , उतकृष्र लोगों के सानिधय में रहने वाला , मधुरभाषी , अहंकार से रहित , अपने से उतकृष्र वर्ण वालों की सेवा करने वाला शूद् भी उत्म ब्ह्म जनम और तद्ज वर्ण को प्रापत कर लेता है ।
मनु्मृति के अनेक शिोक कहते हैं कि उच्च वर्ण का वयस्त भी यदि श्रेष्ट कर्म नहीं करता , तो शूद् ( अशिक्षित ) बन जाता है । उदाहरण :
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